...........हमने बेटे से बात की ,वह शादी करने को तैयार हो गया
मैं छोटे वाले बेटे की बात कर रहा हूँ ,एक दिन उसको लडकी दिखा दिया
गया ....दोनों मिलने लगे ,महीने बाद दोनों का तिलक कर दिया गया
अब छोटे वाले बेटे का पूछो मत उसका आफिस से सीधे उसके घर चला जाता
शादी की तारीख तब की रखी जायेगी ,जब बड़े वाले बेटे की शादी हो जायेगी
....दिन बीतने लगे बड़े वाले की शादी की तारीख तय हो गयी ........
इसी बीच पता नहीं क्या हो गया छोट्टा बेटा कहने लगा मैं इस लडकी से शादी नहीं करूंगा
यह बात हमें तीर जैसी लगी ......बहुत पूछने पे बताया लडकी बहुत जिद्दी है ....इतनी जिद्दी
लडकी से मैं शादी नहीं करूंगा ........हमें लडकी में ऐसा कुछ नहीं लगा ......हम हार चुके थे
सगायी टूट गयी ...........हमें बहुत दुःख हुआ .......
...........इस कहानी का अगला अंश तब लिखूंगा जब कुछ वह घटे गा .......वैसा जैसा हम
चाहते हैं .....................
Wednesday, April 27, 2011
बेटी
वह मेरी बेटी तो नहीं है ,एक बार देखा था ,कोई मुझे
जबरदस्ती उसके घर ले गया था ......मामूली सा घर था ।
वह लड़की ही चाय ले कर आयी .......उसे देखने बाद लगा
मेरे घर की बहू बन जाय तो ......यही सब सोचता हुआ चाय
पीता रहा.......मेरे दो बेटे हैं और दोनों ही नौकरी भी करते हैं
बड़े बेटे से रिश्ते की बात सोची ......उस लड़की की फोटो ली
और उसे आशीर्वाद दे कर घर आ गया ..............
पत्नी ने फोटो देखी ...लडकी उन्हें भी पसंद आ गयी ......
पत्नी भी ....एक बार खुद भी देखना चाहती थी ........लेकिन इससे से पहले
बड़े बेटे ने सीधे ही इनकार कर दिया .........बहुत समझाया लेकिन उसने जिद्द
कर ली .....ना करने की ....हम क्या बोलते ......चुप रहे कुछ दिनों बाद उस लडकी की फोटो
वापस करने उनके घर गये ,साथ में पत्नी भी थी .......लडकी की फोटो वापस की
पहली बार पत्नी को लड़की बहुत पसंद आयी ....पत्नी भी उसे देख के ललचा गयी
और सोचने लगी कैसे .....कैसे इसे अपने घर ले जाय
..................वक्त बीतने लगा .......बड़े बेटे ने मुहं खोला .......उसका किसी और लडकी से प्यार है
हम चुप हो गये .....एक दिन पत्नी ने कहा क्यों ना हम छोटे कीबात की जाय ,बड़े की अभी शादी हुई नहीं
और आप छोटे की बात करने की कर रहीं है.........
...............एक दिन पत्नी ने छोटे से बात की छोटा तैयार हो गया ......अब डर एक बात क़ा था
बड़े की अभी शादी हुई नहीं छोटे की कैसे कर दें ..........बड़े की गर्ल बड़ी तेज थी वह ना नुकर कर रही
...................तै हो गयी थी.......................................
हम हार गये ....जैसे हाथ में आया कुछ फिर से खो गया करीब महीनों बाद पाठक जी आये
जो उस लडकी के घर ले गये थे ,मैंने छूटते पूछा ....हो गयी उसकी शादी ........पाठक जी कहने लगे
लडकी कहती वह शादी करेगी तो आप के घर ही में करेगी .........मैं कुछ समझा नहीं
मेरे चेहरे क़ा रंग बदल गया ..........
जबरदस्ती उसके घर ले गया था ......मामूली सा घर था ।
वह लड़की ही चाय ले कर आयी .......उसे देखने बाद लगा
मेरे घर की बहू बन जाय तो ......यही सब सोचता हुआ चाय
पीता रहा.......मेरे दो बेटे हैं और दोनों ही नौकरी भी करते हैं
बड़े बेटे से रिश्ते की बात सोची ......उस लड़की की फोटो ली
और उसे आशीर्वाद दे कर घर आ गया ..............
पत्नी ने फोटो देखी ...लडकी उन्हें भी पसंद आ गयी ......
पत्नी भी ....एक बार खुद भी देखना चाहती थी ........लेकिन इससे से पहले
बड़े बेटे ने सीधे ही इनकार कर दिया .........बहुत समझाया लेकिन उसने जिद्द
कर ली .....ना करने की ....हम क्या बोलते ......चुप रहे कुछ दिनों बाद उस लडकी की फोटो
वापस करने उनके घर गये ,साथ में पत्नी भी थी .......लडकी की फोटो वापस की
पहली बार पत्नी को लड़की बहुत पसंद आयी ....पत्नी भी उसे देख के ललचा गयी
और सोचने लगी कैसे .....कैसे इसे अपने घर ले जाय
..................वक्त बीतने लगा .......बड़े बेटे ने मुहं खोला .......उसका किसी और लडकी से प्यार है
हम चुप हो गये .....एक दिन पत्नी ने कहा क्यों ना हम छोटे कीबात की जाय ,बड़े की अभी शादी हुई नहीं
और आप छोटे की बात करने की कर रहीं है.........
...............एक दिन पत्नी ने छोटे से बात की छोटा तैयार हो गया ......अब डर एक बात क़ा था
बड़े की अभी शादी हुई नहीं छोटे की कैसे कर दें ..........बड़े की गर्ल बड़ी तेज थी वह ना नुकर कर रही
थी हम लोग एक धर्म शंकट में पड़गये ....फिर से हम चुप हो गये उस लडकी शादी कहीं और
...................तै हो गयी थी.......................................
हम हार गये ....जैसे हाथ में आया कुछ फिर से खो गया करीब महीनों बाद पाठक जी आये
जो उस लडकी के घर ले गये थे ,मैंने छूटते पूछा ....हो गयी उसकी शादी ........पाठक जी कहने लगे
लडकी कहती वह शादी करेगी तो आप के घर ही में करेगी .........मैं कुछ समझा नहीं
मेरे चेहरे क़ा रंग बदल गया ..........
Monday, January 3, 2011
सर्द रात
मुम्बई में रहते हुए , ठण्ड की ठण्ड भूल चुका था । मैं किसी काम से जयपुर गया था
वहां से अपने गाँव अकबर पुर जाना था ,मरुधर मेल में ए .सी .क़ा वेटिंग क़ा टिकट
ले लिया .....ट्रेन जयपुर से साढ़े तीन बजे चलनी थी ,मेरे पास एक छोटा सा सूटकेश
था ,शरीर पे एक गर्म कोट था ......ए .सी .डिब्बे में जा बैठा ......टी सी को देख कर उसकी
तरफ लपका ...पांच सौ के नोट के साथ अपना वेटिंग क़ा टिकट भी दिया .......उसने
मेरी आँखों में झांक के देखा ......जैसे वादा कर रहा हो .....उसने नोट जेब में डाला ......और आगे बढ़
गया .......मैं वहीं पास की सीट पे बैठ गया और अपने लैप टाप पे काम करने लगा ....
.......................नोट की ताकत ,मुझे मालूम थी सीट तो मुझे मिल ही जायेगी ......ए .सी .क़ा
अटेंडेंट बेड रोल बांटने लगा .......करीब एक घंटा बीत चुका था .......मैं टी .सी.के पास पहुंचा
................उसने मुझे देखा .....कहने लगा ....नहीं हो सके गा साहब .....कोई सीट खाली नहीं है
आप सेकण्ड क्लास में चले जाय .......वहां मिल जायेगी सीट आप को .......यहाँ .....कुछ नहीं
हो सकता .........क्या बताएं साहब कुछ होता तो मैं खुद ही दे देता ......पांच सौ क़ा नोट उसने
वापस किया ............
कुछ सोच के मैंने कहा ......तुम ही कह दो ... टी.सी .से .........
अरे साहब खाली चल रहा है .......आप जाइए मिल जाएगा ........
मैंने लैप टाप बंद किया .......और सेकण्ड क्लास की तरफ चल दिया
.........इंटर कनेक्टेड ट्रेन थी .........मैं दुसरे डब्बे में पहुँच के टी .सी .को खोजने लगा ,मिल
भी गया और उसने वैगर पैसे लिए सीट भी दे दी ........पच्चीस नंबर की सीट थी .....
साईड बर्थ थी......................आराम से सीट पे बैठ गया ........फिर से लैप टाप खोला और
काम करने लगा ....खिड़कियाँ तो बंद थी पर ठण्ड हवा अन्दर आ रही थी मुझे सुई की तरह
चुभ रहीं थी .............
कुछ सोच के मैं ए .सी .अटेंडेंट से मिला ,उससे कहा ......भाई एक बेड रोल दे दो ,तुम्हारा जो
बनता है वह ले लो .......वह कुछ बोला नहीं ......फिर उससे अनुरोध किया..............
साहब हमें तो गिन के बेड रोल मिलते हैं ,आप को तो मालूम ही है .....एक भी बर्थ खाली नहीं है
सब बाँट चुका हूँ .......कुछ ले लो, कम से कम एक कम्बल तो दे दो........नहीं साहब ..है ही नहीं
मैंने पांच सौ क़ा नोट दिखाया ......फिर भी मना कर दिया उस ने .......मुझे सच्चाई समझ में
आ गयी ....इसके पास है ही नहीं ,वरना पाँच सौ क़ा नोट देख के नहीं दे रहा ...मतलब है नहीं
...............मैं अपनी सीट की तरफ चल दिया ....तभी फिल्मों की तरह पीछे से आवाज दी .....
.साहब ...साहब मेरी जान में जान आयी ...चलो अपना काम बन गया ...............उसके करीब
पहुंचा उसने मुझे एक उंगली दिखाई ....मै समझा नहीं ......फिर उसने खुल के कहा ...साहब साहब
एक मिले गा ..........एक क्या ?...........साहब गाँधी जी की एक पत्ती दे दीजिये ......
मुझे यह सुन के झटका लगा ....बन्दा एक हजार मांग रहा ......गुस्से में कुछ बोलना चाह रहा था
............आगे उसकी अकड देखिये .....कहने लगा साहब रात बड़ी ठंडी होती है .....मैं गुस्से
में अपनी सीट पे आ गया ......और बैठ के सोचने लगा ....क्या करूँ ? यह सर्द रात कैसे पार
हो गी .......कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था .....सभी यात्री अपना -अपना विस्तार लगाने लगे
मैं एसे ही बैठा बाहर अँधेरे को देखने लगा ......मेरी बर्थ के ऊपर जो आदमी था ,पता नहीं क्या सोच
के बोल पड़ा .......क्यों भाई साहब ....आप क़ा विस्तार ....?मैं झूठ -मुठ मुस्करा दिया और एक
झूठ बोल दिया ....मुझे अर्जेंशी में जाना पड़ रहा है और ए .सी.में जगह नहीं मिली .....और जगह
भी मिली तो यहाँ .......वह आदमी कुछ सोच के बोल पड़ा .....मेरे पास एक कम्बल है आप ले लें
मुझे कानपुर में उतरना है ...करीब डेढ़ बजे कानपुर आता है ...तब आप दे दीजिएगा ......
..........कम्बल मिलते ही ,मैंने उसे अपने चारो तरफ लपेट लिया ....मुहं को भी ढक लिया ....
गर्माहट मिलते ही आँख लगने लगी .....एक महक जो उस कम्बल से आरही थी .....जैसे अभी
अभी अस्पताल से आ रहा हो ......डर के मारे कुछ पूछना चाह रहा था ....नहीं पूछा .....एक तो इस
ठंडक में कम्बल दिया है और ऊपर से नुकता-चीनी कर रहा हूँ
लाख सोने की कोशिश की पर नींद क़ा नाम नहीं .....कब कानपूर आ गया पता ही नहीं
चला .....एक आवाज आयी
भाई साहब कम्बल दे दीजिये ....कानपुर आने वाला है ....
यह सुन कर बैठ गया .....और ओढ़ा हुआ कम्बल उसे वापस किया .................
मैंने पूछ लिया .....इस कम्बल से अस्पताल वाली महक आ रही थी .........
कुछ सकुचाते हुए वह बोल पड़ा ...........मेरा भाई बीमार था वही ओढ़ता था .....मैंने पूछा अब ठीक
हो गया ........
...........अरे भाईसाहब बहुत ईलाज कराया .....नहीं बचा ......डेथ हो गयी ........
...........यह सुन कर मैं चुप हो गया .....एक बिमारी ने मुझे घेर लिया .......कानपुर आ गया वह
आदमी उतर गया ....मैंने सोच लिया आज की रात एसे ही गुजारुंगा ....कानपुर से ट्रेन निकल गयी
ठण्ड क़ा प्रकोप येसा की दांत बजने लगा .......
.............बाथरूम गया पेशाब किया ......मुझे ठण्ड में बहुत आती है ......ठण्ड लग जाय तो
लूज मोशन होने लगता है .......अपनी सीट पे आ कर बैग से लुंगी निकाली और कान पे बाँध के
सोने की कोशिश करने लगा ..................पता नहीं कब आँख लग गयी .......और गर्माहट
महसूस करने लगा .......और सो गया ....शायद लुंगी बहुत गर्म हो गी या कान बंद करने से .......
सपनो में खो गया ....माँ की गोद याद आने लगी ....उनके शारीर की गर्माहट मेरे शारीर में
घुश गयी .............इतना अच्छा लगने लगा ....बस इन्हीं यादों में जीना चाह रहा था .......
...................कोई मुझे जगा रहा था ......जब मैं जगा तो ....मैं एक कम्बल ओढ़े
हुए हूँ ........किसका कम्बल है मुझे नहीं मालूम ......मेरे सामने ..........एक नंग -धडंग एक
भिखमंगा खड़ा है ......इतनी ठण्ड में वैगर कपड़ों के भीख मांग रहा था .....इतनी नौटंकी ...
पैसा कमाने के लिए .......सुबह हो चुकी थी
...........मैंने कहा छुट्टा नहीं है ..............
नहीं साहब .......मुझे मेरा कम्बल चाहिए .......मेरा स्टेशन आ रहा ......
मैं उसकी तरफ देखता हुआ खामोश हो गया ........साहब ....... रात को आप को जडाते हुए देखा
............और फिर कम्बल ओढ़ के मांग नहीं सकते .न ............कोई कुछ भी नहीं देगा ............
मेरे पास ..................जवाब नहीं था ...उसको कम्बल दिया .......जैसे वह जाने लगा मैंने उसे
बुलाया और ..................पाँच सौ क़ा नोट देने लगा .............वह नोट देख कर हंसने लगा ...
नहीं साहब .... बहुत जादा है .....एक .....दस रुपया दे दीजिये ........
............मेरी आँखे भर आई .............दस क़ा नोट दिया और वह चला गया ....बाहर देखा तो
अयोध्या स्टेशन आ गया था ..............हनुमान गढ़ी को प्रणाम किया ..............चाय वाले रोका
एक चाय ली दस क़ा नोट दिया ......
साहब छुट्टा दीजिये ........थोड़ी देर बाद दूसरी चाय पिला देना ...मैंने कहा ..कच्ची मिटटी में चाय
क़ा स्वाद बहुत रंगीन होता है..................रात क़ा सफ़र सोच के बार -बार .....यही ख्याल आ रहा था
............अच्छे लोग भी ...हर रूप में ........
वहां से अपने गाँव अकबर पुर जाना था ,मरुधर मेल में ए .सी .क़ा वेटिंग क़ा टिकट
ले लिया .....ट्रेन जयपुर से साढ़े तीन बजे चलनी थी ,मेरे पास एक छोटा सा सूटकेश
था ,शरीर पे एक गर्म कोट था ......ए .सी .डिब्बे में जा बैठा ......टी सी को देख कर उसकी
तरफ लपका ...पांच सौ के नोट के साथ अपना वेटिंग क़ा टिकट भी दिया .......उसने
मेरी आँखों में झांक के देखा ......जैसे वादा कर रहा हो .....उसने नोट जेब में डाला ......और आगे बढ़
गया .......मैं वहीं पास की सीट पे बैठ गया और अपने लैप टाप पे काम करने लगा ....
.......................नोट की ताकत ,मुझे मालूम थी सीट तो मुझे मिल ही जायेगी ......ए .सी .क़ा
अटेंडेंट बेड रोल बांटने लगा .......करीब एक घंटा बीत चुका था .......मैं टी .सी.के पास पहुंचा
................उसने मुझे देखा .....कहने लगा ....नहीं हो सके गा साहब .....कोई सीट खाली नहीं है
आप सेकण्ड क्लास में चले जाय .......वहां मिल जायेगी सीट आप को .......यहाँ .....कुछ नहीं
हो सकता .........क्या बताएं साहब कुछ होता तो मैं खुद ही दे देता ......पांच सौ क़ा नोट उसने
वापस किया ............
कुछ सोच के मैंने कहा ......तुम ही कह दो ... टी.सी .से .........
अरे साहब खाली चल रहा है .......आप जाइए मिल जाएगा ........
मैंने लैप टाप बंद किया .......और सेकण्ड क्लास की तरफ चल दिया
.........इंटर कनेक्टेड ट्रेन थी .........मैं दुसरे डब्बे में पहुँच के टी .सी .को खोजने लगा ,मिल
भी गया और उसने वैगर पैसे लिए सीट भी दे दी ........पच्चीस नंबर की सीट थी .....
साईड बर्थ थी......................आराम से सीट पे बैठ गया ........फिर से लैप टाप खोला और
काम करने लगा ....खिड़कियाँ तो बंद थी पर ठण्ड हवा अन्दर आ रही थी मुझे सुई की तरह
चुभ रहीं थी .............
कुछ सोच के मैं ए .सी .अटेंडेंट से मिला ,उससे कहा ......भाई एक बेड रोल दे दो ,तुम्हारा जो
बनता है वह ले लो .......वह कुछ बोला नहीं ......फिर उससे अनुरोध किया..............
साहब हमें तो गिन के बेड रोल मिलते हैं ,आप को तो मालूम ही है .....एक भी बर्थ खाली नहीं है
सब बाँट चुका हूँ .......कुछ ले लो, कम से कम एक कम्बल तो दे दो........नहीं साहब ..है ही नहीं
मैंने पांच सौ क़ा नोट दिखाया ......फिर भी मना कर दिया उस ने .......मुझे सच्चाई समझ में
आ गयी ....इसके पास है ही नहीं ,वरना पाँच सौ क़ा नोट देख के नहीं दे रहा ...मतलब है नहीं
...............मैं अपनी सीट की तरफ चल दिया ....तभी फिल्मों की तरह पीछे से आवाज दी .....
.साहब ...साहब मेरी जान में जान आयी ...चलो अपना काम बन गया ...............उसके करीब
पहुंचा उसने मुझे एक उंगली दिखाई ....मै समझा नहीं ......फिर उसने खुल के कहा ...साहब साहब
एक मिले गा ..........एक क्या ?...........साहब गाँधी जी की एक पत्ती दे दीजिये ......
मुझे यह सुन के झटका लगा ....बन्दा एक हजार मांग रहा ......गुस्से में कुछ बोलना चाह रहा था
............आगे उसकी अकड देखिये .....कहने लगा साहब रात बड़ी ठंडी होती है .....मैं गुस्से
में अपनी सीट पे आ गया ......और बैठ के सोचने लगा ....क्या करूँ ? यह सर्द रात कैसे पार
हो गी .......कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था .....सभी यात्री अपना -अपना विस्तार लगाने लगे
मैं एसे ही बैठा बाहर अँधेरे को देखने लगा ......मेरी बर्थ के ऊपर जो आदमी था ,पता नहीं क्या सोच
के बोल पड़ा .......क्यों भाई साहब ....आप क़ा विस्तार ....?मैं झूठ -मुठ मुस्करा दिया और एक
झूठ बोल दिया ....मुझे अर्जेंशी में जाना पड़ रहा है और ए .सी.में जगह नहीं मिली .....और जगह
भी मिली तो यहाँ .......वह आदमी कुछ सोच के बोल पड़ा .....मेरे पास एक कम्बल है आप ले लें
मुझे कानपुर में उतरना है ...करीब डेढ़ बजे कानपुर आता है ...तब आप दे दीजिएगा ......
..........कम्बल मिलते ही ,मैंने उसे अपने चारो तरफ लपेट लिया ....मुहं को भी ढक लिया ....
गर्माहट मिलते ही आँख लगने लगी .....एक महक जो उस कम्बल से आरही थी .....जैसे अभी
अभी अस्पताल से आ रहा हो ......डर के मारे कुछ पूछना चाह रहा था ....नहीं पूछा .....एक तो इस
ठंडक में कम्बल दिया है और ऊपर से नुकता-चीनी कर रहा हूँ
लाख सोने की कोशिश की पर नींद क़ा नाम नहीं .....कब कानपूर आ गया पता ही नहीं
चला .....एक आवाज आयी
भाई साहब कम्बल दे दीजिये ....कानपुर आने वाला है ....
यह सुन कर बैठ गया .....और ओढ़ा हुआ कम्बल उसे वापस किया .................
मैंने पूछ लिया .....इस कम्बल से अस्पताल वाली महक आ रही थी .........
कुछ सकुचाते हुए वह बोल पड़ा ...........मेरा भाई बीमार था वही ओढ़ता था .....मैंने पूछा अब ठीक
हो गया ........
...........अरे भाईसाहब बहुत ईलाज कराया .....नहीं बचा ......डेथ हो गयी ........
...........यह सुन कर मैं चुप हो गया .....एक बिमारी ने मुझे घेर लिया .......कानपुर आ गया वह
आदमी उतर गया ....मैंने सोच लिया आज की रात एसे ही गुजारुंगा ....कानपुर से ट्रेन निकल गयी
ठण्ड क़ा प्रकोप येसा की दांत बजने लगा .......
.............बाथरूम गया पेशाब किया ......मुझे ठण्ड में बहुत आती है ......ठण्ड लग जाय तो
लूज मोशन होने लगता है .......अपनी सीट पे आ कर बैग से लुंगी निकाली और कान पे बाँध के
सोने की कोशिश करने लगा ..................पता नहीं कब आँख लग गयी .......और गर्माहट
महसूस करने लगा .......और सो गया ....शायद लुंगी बहुत गर्म हो गी या कान बंद करने से .......
सपनो में खो गया ....माँ की गोद याद आने लगी ....उनके शारीर की गर्माहट मेरे शारीर में
घुश गयी .............इतना अच्छा लगने लगा ....बस इन्हीं यादों में जीना चाह रहा था .......
...................कोई मुझे जगा रहा था ......जब मैं जगा तो ....मैं एक कम्बल ओढ़े
हुए हूँ ........किसका कम्बल है मुझे नहीं मालूम ......मेरे सामने ..........एक नंग -धडंग एक
भिखमंगा खड़ा है ......इतनी ठण्ड में वैगर कपड़ों के भीख मांग रहा था .....इतनी नौटंकी ...
पैसा कमाने के लिए .......सुबह हो चुकी थी
...........मैंने कहा छुट्टा नहीं है ..............
नहीं साहब .......मुझे मेरा कम्बल चाहिए .......मेरा स्टेशन आ रहा ......
मैं उसकी तरफ देखता हुआ खामोश हो गया ........साहब ....... रात को आप को जडाते हुए देखा
............और फिर कम्बल ओढ़ के मांग नहीं सकते .न ............कोई कुछ भी नहीं देगा ............
मेरे पास ..................जवाब नहीं था ...उसको कम्बल दिया .......जैसे वह जाने लगा मैंने उसे
बुलाया और ..................पाँच सौ क़ा नोट देने लगा .............वह नोट देख कर हंसने लगा ...
नहीं साहब .... बहुत जादा है .....एक .....दस रुपया दे दीजिये ........
............मेरी आँखे भर आई .............दस क़ा नोट दिया और वह चला गया ....बाहर देखा तो
अयोध्या स्टेशन आ गया था ..............हनुमान गढ़ी को प्रणाम किया ..............चाय वाले रोका
एक चाय ली दस क़ा नोट दिया ......
साहब छुट्टा दीजिये ........थोड़ी देर बाद दूसरी चाय पिला देना ...मैंने कहा ..कच्ची मिटटी में चाय
क़ा स्वाद बहुत रंगीन होता है..................रात क़ा सफ़र सोच के बार -बार .....यही ख्याल आ रहा था
............अच्छे लोग भी ...हर रूप में ........
Wednesday, June 16, 2010
हजपुरा
....मैं लखनऊ ,छोड़ के पूना आ गया ....फिल्म क़ा ज्ञान लेने
रैगिंग के डर से ....दो चार दिन अपने एक पहचान वाले घर ही रहा
पर बकरा कब तक जान बचाएगा .....एक दिन किरण कुमार और
रजा मुराद के हत्थे चढ़ गया .....बड़ी -गाली गलौज से बात की ॥
वैसे मैं भी थोड़ा सा बदमाश जरुर था ....लेकिन दोनों ही बडे लम्बे से
थे ......मैं भी डर सा गया .....मुझे पकड़ के स्वीमिंग पूल की तरफ ले गये
मुझे बहुत धमकाया .....और कहा .....हम दोनों को रोज जब भी मिलो
झुक के आदाब किया करो .....मैं उनकी हर बात में हाँ ही हाँ कह रहा था
कैसे भी कर के जान बची .......हॉस्टल में मुझे जगह मिल गयी
रूम नंबर नौ था ....और मेरा रूम पार्टनर गोस्वामी था .....पहले छे महीने में
फिल्म में कौन ..कौन से ख़ास सेक्शन होते हैं ,जो एक फिल्म को पुरी शक्ल
देतेहैं .....मैंने एडिटिंग के बारे में जाना ,साउंड रेकॉर्डिंग क्या होती है ,म्यूजिक
क्या रोल अदा करती है फिल्म के बनने में .......कैमरे के बारे में जान कारी हासिल की
.........निर्देशन क्या है ......?और फिल्म की स्क्रिप्ट क्या होती है ....?
इसी के साथ -साथ हम सभी लोग अलग अलग देशों के महान निर्देशकों की फ़िल्में भी
देखते .......समय को जैसे पंख लग गये हो ....उस तरह उड़ने लगा ..यहाँ का सुख शब्दों में नहीं कहा जा
सकता ..........दुनिया भर की फ़िल्में देखना ....उसको पढना ............उसको जानना ......
जिसको जान कर बड़ा आनन्द आ रहा था .....और एक बात हमेशा याद रहती
....अगर मैं यहाँ नहीं आता तो ........जीवन ...मिल कर भी ना मिलने जैसा होता
......यहीं पर कुछ नये दोस्त मिले ....के सी ,सतीश शर्मा ,आनन्द कर्णवाल ,आशोक घई
सुभाष डे ,यह सारे दोस्त ,आज तक हैं
एक साल की पढाई पूरी की .....कुल तीन साल का कोर्स था .....लखनऊ पहुंचा
मेरे बाबुजी बहुत खुश थे .....इस पढाई से .....भविष्य क्या होगा ,नहीं मालूम था ।
कहानी कार रामलाल जी से मिला .....वह भी बहुत खुश थे .....उन्होंने मुझे
कुछ अपनी कहानी की किताबे दी .....और मुझसे कहा ......गुलज़ार (साहब )को
दे देना ....मैं भी पहली बार गुलज़ार (साहब )क़ा नाम सुन रहा था ....फिर खुद ही राम लाल
जी ने बताया ....यह भी लेखक हैं उर्दू में लिखते हैं ....वैसे राम लाल जी भी उर्दू और हिंदी
दोनों में लिखते थे .....कहने लगे फिल्मों में गीत लिखते हैं यह सन ७० था ।
मैंने वह दोनों उनकी किताबे ली .....और उनसे वादा किया ...उन तक पहुंचा दूंगा
जून क़ा महीना था ......मैं अपने पुराने दोस्त रतन के घर आया ....वह प्रभा देवी में रहता था
अब मैं पूना जाने से पहले मुम्बई आ गया था...गुलज़ार साहब को वह किताबें जो देनी थी
उस समय बम्बई में बारिश हो रही थी .....गुलज़ार साहब क़ा पता नहीं मिल रहा था
मैं राजश्री के आफिस पहुंचा ....उनको भी गुलज़ार साहब क़ा पता नहीं मालूम था ....एक दिन रह के मुझे
पूना जाना था ......फिर उन्हीं के आफिस से जब निकल रहा था .....तभी एक आदमी ने मुझसे कहा
पाली हिल पे कोजी होम में रहते हैं ....
दुसरे दिन सुबह -सुबह पाली पहुंचा .....कोजी होम को खोजा ......चार बिल्डिंगे थी कोजी होम के
नाम से ....किस्में गुलज़ार साहब रहते हैं .....हलकी -हलकी बारिश हो रही थी ....छाता -वाता
रखने की आदत थी नहीं .....किताबे एक लिफ़ाफ़े में डाल रखी थी .....एक अजनबी शहर में कोजी होम
के कम्पाउंड में खडा भीग रहा था ......मेरे पास से एक आदमी गुजरा ,मैंने उससे पूछा गुलज़ार साहब से
मिलना था ....उसने कहा ऐ ब्लाक में चले जाओ ....निचे चौकीदार से पूछ लेना वह बता देगा .....
सच कहता हूँ ....पहली बार मैं लिफ्ट में चढ़ रहा था .....फ़्लैट नम्बर ९१ था नवा महला
यह भाषा बम्बई की है .....अब आप हजपुरा की जगह ९१ कोजी होम के नाम से पढ़ेगें .......
रैगिंग के डर से ....दो चार दिन अपने एक पहचान वाले घर ही रहा
पर बकरा कब तक जान बचाएगा .....एक दिन किरण कुमार और
रजा मुराद के हत्थे चढ़ गया .....बड़ी -गाली गलौज से बात की ॥
वैसे मैं भी थोड़ा सा बदमाश जरुर था ....लेकिन दोनों ही बडे लम्बे से
थे ......मैं भी डर सा गया .....मुझे पकड़ के स्वीमिंग पूल की तरफ ले गये
मुझे बहुत धमकाया .....और कहा .....हम दोनों को रोज जब भी मिलो
झुक के आदाब किया करो .....मैं उनकी हर बात में हाँ ही हाँ कह रहा था
कैसे भी कर के जान बची .......हॉस्टल में मुझे जगह मिल गयी
रूम नंबर नौ था ....और मेरा रूम पार्टनर गोस्वामी था .....पहले छे महीने में
फिल्म में कौन ..कौन से ख़ास सेक्शन होते हैं ,जो एक फिल्म को पुरी शक्ल
देतेहैं .....मैंने एडिटिंग के बारे में जाना ,साउंड रेकॉर्डिंग क्या होती है ,म्यूजिक
क्या रोल अदा करती है फिल्म के बनने में .......कैमरे के बारे में जान कारी हासिल की
.........निर्देशन क्या है ......?और फिल्म की स्क्रिप्ट क्या होती है ....?
इसी के साथ -साथ हम सभी लोग अलग अलग देशों के महान निर्देशकों की फ़िल्में भी
देखते .......समय को जैसे पंख लग गये हो ....उस तरह उड़ने लगा ..यहाँ का सुख शब्दों में नहीं कहा जा
सकता ..........दुनिया भर की फ़िल्में देखना ....उसको पढना ............उसको जानना ......
जिसको जान कर बड़ा आनन्द आ रहा था .....और एक बात हमेशा याद रहती
....अगर मैं यहाँ नहीं आता तो ........जीवन ...मिल कर भी ना मिलने जैसा होता
......यहीं पर कुछ नये दोस्त मिले ....के सी ,सतीश शर्मा ,आनन्द कर्णवाल ,आशोक घई
सुभाष डे ,यह सारे दोस्त ,आज तक हैं
एक साल की पढाई पूरी की .....कुल तीन साल का कोर्स था .....लखनऊ पहुंचा
मेरे बाबुजी बहुत खुश थे .....इस पढाई से .....भविष्य क्या होगा ,नहीं मालूम था ।
कहानी कार रामलाल जी से मिला .....वह भी बहुत खुश थे .....उन्होंने मुझे
कुछ अपनी कहानी की किताबे दी .....और मुझसे कहा ......गुलज़ार (साहब )को
दे देना ....मैं भी पहली बार गुलज़ार (साहब )क़ा नाम सुन रहा था ....फिर खुद ही राम लाल
जी ने बताया ....यह भी लेखक हैं उर्दू में लिखते हैं ....वैसे राम लाल जी भी उर्दू और हिंदी
दोनों में लिखते थे .....कहने लगे फिल्मों में गीत लिखते हैं यह सन ७० था ।
मैंने वह दोनों उनकी किताबे ली .....और उनसे वादा किया ...उन तक पहुंचा दूंगा
जून क़ा महीना था ......मैं अपने पुराने दोस्त रतन के घर आया ....वह प्रभा देवी में रहता था
अब मैं पूना जाने से पहले मुम्बई आ गया था...गुलज़ार साहब को वह किताबें जो देनी थी
उस समय बम्बई में बारिश हो रही थी .....गुलज़ार साहब क़ा पता नहीं मिल रहा था
मैं राजश्री के आफिस पहुंचा ....उनको भी गुलज़ार साहब क़ा पता नहीं मालूम था ....एक दिन रह के मुझे
पूना जाना था ......फिर उन्हीं के आफिस से जब निकल रहा था .....तभी एक आदमी ने मुझसे कहा
पाली हिल पे कोजी होम में रहते हैं ....
दुसरे दिन सुबह -सुबह पाली पहुंचा .....कोजी होम को खोजा ......चार बिल्डिंगे थी कोजी होम के
नाम से ....किस्में गुलज़ार साहब रहते हैं .....हलकी -हलकी बारिश हो रही थी ....छाता -वाता
रखने की आदत थी नहीं .....किताबे एक लिफ़ाफ़े में डाल रखी थी .....एक अजनबी शहर में कोजी होम
के कम्पाउंड में खडा भीग रहा था ......मेरे पास से एक आदमी गुजरा ,मैंने उससे पूछा गुलज़ार साहब से
मिलना था ....उसने कहा ऐ ब्लाक में चले जाओ ....निचे चौकीदार से पूछ लेना वह बता देगा .....
सच कहता हूँ ....पहली बार मैं लिफ्ट में चढ़ रहा था .....फ़्लैट नम्बर ९१ था नवा महला
यह भाषा बम्बई की है .....अब आप हजपुरा की जगह ९१ कोजी होम के नाम से पढ़ेगें .......
Sunday, June 13, 2010
हजपुरा
.....पहली बार ,मैं अपने शहर से ,कहीं दूर की यात्रा कर रहा था
ट्रेन में दो लडके और मिले जो .....पूना में इंटरव्यू देने जा रहे थे
.....पूना पहुँचने के बाद ......मैं अपने एक पहचान वाले घर जा
पहुंचा ।
दुसरे दिन प्रभात स्टूडियो में इंटरव्यू था ......प्रभात रोड
पे था यह स्टूडियो .......सुबह नौ बजे मैं पहुँच गया .......एक छोटा सा
आम क़ा पेड़ था ,जिसे विजडम ट्री कहते थे ......बाएँ तरफ एक कैंटीन थी
और इस पेड़ ही के बगल प्रिंसिपल जगत मुरारी क़ा आफिस था ......इसी आफिस
में हमारा इंटरव्यू भी था ...........मेरा नम्बर दोपहर के बाद आया ....जब मैं
आफिस में पहुंचा ...कुल पांच लोग बैठे थे .....जगत मुरारी जी ,ख्वाजा अहमद अब्बास
राजेन्द्र सिंह वेदी साहब दो और कोई थे ......जिन्हें मैं नहीं जानता ......मुझे बैठने को
कहा गया .....सभी लोगो ने फ़ार्म को पढ़ा ......पहला सवाल मुझ पर आया ......किसने
पूछा मुझे याद नहीं है ....यम .कॉम करने के बाद .....आर्ट लाइन में क्यों आना चाहते हैं
......कुछ सोचा नहीं और सीधा जवाब दिया .....आज तक कुछ सोचा ,,बस फिल्म,
इसके अलावा कुछ नहीं ......इतना सुनते ही ....अब्बास साहब ने पूछ लिया .....अभी हाल
में कौन सी फिल्म देखी है आप ने ?........सच कहूँ एक दस रोज पहले ही ....मैंने सात हिन्दुस्तानी
फिल्म देखी थी उसी कानाम लिया ......यह सुन कर अब्बास साहब ने कहा ......इसके अलावा
और कौन सी फिल्म देखी है ?.......कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,कौन सी फिल्म के बारे में
बताऊं .....मैंने ...एक अंग्रेजी फिल्म देखी थी .......नाम था ,ब्लो अप ......फिर अब्बास
साहब ने कहा इस फिल्म में क्या अच्छा लगा .....मैंने शार्ट में कहानी बता दिया .......
फिर जगत मुरारी जी ने जो पूछा मुझे याद नहीं है अब , फिर अब्बास साहब ने पूछा
....आप लखनऊ के हैं .....आप के शहर में कौन है ,जो अंग्रेजी प्ले करता है ?....मैंने ...
राज विसारिया जी क़ा नाम लिया ......
और मेरा .....इंटरव्यू पूरा हो गया ......मुझे जाने को कहा गया ....कल सुबह एक
लिस्ट निकले गी ......जिसमें स्क्रिप्ट रायटिंग कोर्स में चुने हुए लडकों क़ा नाम निकलेगा ॥
......सुबह क़ा इन्तजार होने लगा ॥
.......सुबह हुई .....मैं प्रभात स्टूडियो पहुंचा .......भीड़ थी ....लिस्ट निकली ......मेरा नाम था
उसमें .....ख़ुशी से भर गया ......
अब मुश्किल इस बात की थी .....बाबू जी आने देंगे या नहीं ......और अपने शहर की तरफ
चल दिया .....पिताजी को यह सब कुछ अच्छा लगा ....जाने की बात जब उठी .....
फिर पंडित जी को बुलाया गया ...मेरी कुंडली दिखाई गयी ....पंडित जी ने कहा ....अभी तो
इसको पढना ही है ....
।
...............और मैं पूना फिल्म की पढाई करने चल दिया .........
ट्रेन में दो लडके और मिले जो .....पूना में इंटरव्यू देने जा रहे थे
.....पूना पहुँचने के बाद ......मैं अपने एक पहचान वाले घर जा
पहुंचा ।
दुसरे दिन प्रभात स्टूडियो में इंटरव्यू था ......प्रभात रोड
पे था यह स्टूडियो .......सुबह नौ बजे मैं पहुँच गया .......एक छोटा सा
आम क़ा पेड़ था ,जिसे विजडम ट्री कहते थे ......बाएँ तरफ एक कैंटीन थी
और इस पेड़ ही के बगल प्रिंसिपल जगत मुरारी क़ा आफिस था ......इसी आफिस
में हमारा इंटरव्यू भी था ...........मेरा नम्बर दोपहर के बाद आया ....जब मैं
आफिस में पहुंचा ...कुल पांच लोग बैठे थे .....जगत मुरारी जी ,ख्वाजा अहमद अब्बास
राजेन्द्र सिंह वेदी साहब दो और कोई थे ......जिन्हें मैं नहीं जानता ......मुझे बैठने को
कहा गया .....सभी लोगो ने फ़ार्म को पढ़ा ......पहला सवाल मुझ पर आया ......किसने
पूछा मुझे याद नहीं है ....यम .कॉम करने के बाद .....आर्ट लाइन में क्यों आना चाहते हैं
......कुछ सोचा नहीं और सीधा जवाब दिया .....आज तक कुछ सोचा ,,बस फिल्म,
इसके अलावा कुछ नहीं ......इतना सुनते ही ....अब्बास साहब ने पूछ लिया .....अभी हाल
में कौन सी फिल्म देखी है आप ने ?........सच कहूँ एक दस रोज पहले ही ....मैंने सात हिन्दुस्तानी
फिल्म देखी थी उसी कानाम लिया ......यह सुन कर अब्बास साहब ने कहा ......इसके अलावा
और कौन सी फिल्म देखी है ?.......कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,कौन सी फिल्म के बारे में
बताऊं .....मैंने ...एक अंग्रेजी फिल्म देखी थी .......नाम था ,ब्लो अप ......फिर अब्बास
साहब ने कहा इस फिल्म में क्या अच्छा लगा .....मैंने शार्ट में कहानी बता दिया .......
फिर जगत मुरारी जी ने जो पूछा मुझे याद नहीं है अब , फिर अब्बास साहब ने पूछा
....आप लखनऊ के हैं .....आप के शहर में कौन है ,जो अंग्रेजी प्ले करता है ?....मैंने ...
राज विसारिया जी क़ा नाम लिया ......
और मेरा .....इंटरव्यू पूरा हो गया ......मुझे जाने को कहा गया ....कल सुबह एक
लिस्ट निकले गी ......जिसमें स्क्रिप्ट रायटिंग कोर्स में चुने हुए लडकों क़ा नाम निकलेगा ॥
......सुबह क़ा इन्तजार होने लगा ॥
.......सुबह हुई .....मैं प्रभात स्टूडियो पहुंचा .......भीड़ थी ....लिस्ट निकली ......मेरा नाम था
उसमें .....ख़ुशी से भर गया ......
अब मुश्किल इस बात की थी .....बाबू जी आने देंगे या नहीं ......और अपने शहर की तरफ
चल दिया .....पिताजी को यह सब कुछ अच्छा लगा ....जाने की बात जब उठी .....
फिर पंडित जी को बुलाया गया ...मेरी कुंडली दिखाई गयी ....पंडित जी ने कहा ....अभी तो
इसको पढना ही है ....
।
...............और मैं पूना फिल्म की पढाई करने चल दिया .........
Friday, June 4, 2010
हज़पुरा
......लखनऊ में मैं ....अकेला हो गया .....मन नहीं लगता था ...बी कॉम की पढाई
शुरू की ......रतन के ख़त में कहीं ,यह जरुर लिखा होता था .....मुम्बई बहुत आगे
हर मामले में है ....रतन को गेज्बो रेस्टोरेंट में काम मिल गया .....
कुछ महीनों बाद ....रतन वापस आ गया .....रतन को मिलेट्री में कलर्क
की नौकरी मिल गयी .....फिर से हम तीनो दोस्त मिल गये .....यह वह दौर था ...फिल्मों
में कैसे प्रवेश किया जाय .....मैंने कहा हमें कुछ सीखना चाहिए ....क्या सीखा जाय ॥
रतन कहता था ...वहीं जा कर ही कुछ सीखा जा सकता है ....
मैं घर का बड़ा लडका था ....मैं भाग कर नहीं जा सकता था ........इसी दौर में
मुझे पता चला .....पूना में फिल्म की पढाई के लिए एक कालेज है .....लेकिन बी कॉम पास
होना जरूरी है .....इसी दौर मेरी पहचान राम लाल जी से हुई ....जो जाने माने लेखक थे
कहानी पढने का शौक तो बचपन से ही था .......पर कहानी लिखना ....राम लाल जी से मिलने
के बाद शुरू किया ......तभी ही रंजीत कपूर से मुलाक़ात हुई .....हमारी ही उम्र के थे ......तब तक
उन्होंने भी कुछ नहीं लिखा था .......मेरा उठना -बैठना उन लोगो से शुरू हो गया ...जो नाटक खेलते
थे .......इनमे से कोई पढाई नहीं कर रहा था ....या तो नौकरी कर रहे थे ....या खाली थी .....उस
समय लडके बारह क्लाश पास कर के ....किसी न किसी काम धंदे में लग जाते थे ...
मैंने बी कॉम पास कर लिया था ....पिता जी नौकरी की बात करने लगे थे माँ शादी के
लिए लडकियाँ ,देखने लगी ......इसी बीच मैंने पूना से एडमीशन के लिए फार्म मंगवा लिया
पूना में प्रवेश से पहले ....एक रिटेन एक्जाम होता था ......मैंने दिल्ली जा कर दिया भी ....
यह सब मैंने छिपा कर किया था .....बी कॉम तो पास हो गया .....लेकिन पूना से कोई बुलावा
नहीं आया ......मैंने यम .कॉम में एडमीशन ले लिया .....माँ शादी पे बहुत जोर दे रही थी ,पिता
जी ....नौकरी खोजने पे दबाव डाल रहे थे ......
रतन ने अपनी नौकरी का ट्रांसफर मुम्बई में ले लिया था .......सरदार दोस्त की शादी
हो गयी ......मैं अपनी पढाई करने लगा ...कहानियाँ लिखने लगा ......राम लाल जी से मिलता रहता
और उन्हें अपनी लिखी हुई चीजे सुनाता .......कहीं छपाने की हिम्मत न कर पाता इसी बीच
राज विसारिया के बारे में सुना जो अंग्रेजी प्ले करते थे ......
मैंने यह अब सोच लिया पहले पढाई पूरी करता हूँ .....फिर सोचूंगा क्या करना है
और क्या नहीं करना है ....रतन ने जो ख़त लिखा ....वह फ़िरोज़ खान के पास सहायक हो गया
मैं एक्टर फिरोज खान की बात कर रहा हूँ .......अब उसके हर ख़त में .....भर पूरफिल्मी कहानी
होती ....मैं पढाई को अधूरा नहीं छोड़ना नहीं चाहता था .......यम .कॉम .का फायनल य्ग्जाम
दिया ....और पूना का भी लीखित एग्जाम दिया ......और शुरू हो गयी ....रिजल्ट की ....एक
व्योपार भी सोचा .....प्रिंटिंग सुरु बी ........मशीन और जगह भी देख लिया ....कुल धन
लग रहा था .....करीब चालीस हजार ......
.....पूना से बुलावा आ गया ....इंटर व्यू के लिए ....अब जा कर पिता जी को
खुल कर सब कुछ बता दिया ......पिता जी ने जाने दिया ....यह पढाई भी उनकी समझ
में आ गया .....तीन साल का डिप्लोमा कोर्स था .......इस कोर्स के बाद दूरदर्शन में भी
काम मिल सकता था ....हमारे देश में ....दूरदर्शन ..............
शुरू की ......रतन के ख़त में कहीं ,यह जरुर लिखा होता था .....मुम्बई बहुत आगे
हर मामले में है ....रतन को गेज्बो रेस्टोरेंट में काम मिल गया .....
कुछ महीनों बाद ....रतन वापस आ गया .....रतन को मिलेट्री में कलर्क
की नौकरी मिल गयी .....फिर से हम तीनो दोस्त मिल गये .....यह वह दौर था ...फिल्मों
में कैसे प्रवेश किया जाय .....मैंने कहा हमें कुछ सीखना चाहिए ....क्या सीखा जाय ॥
रतन कहता था ...वहीं जा कर ही कुछ सीखा जा सकता है ....
मैं घर का बड़ा लडका था ....मैं भाग कर नहीं जा सकता था ........इसी दौर में
मुझे पता चला .....पूना में फिल्म की पढाई के लिए एक कालेज है .....लेकिन बी कॉम पास
होना जरूरी है .....इसी दौर मेरी पहचान राम लाल जी से हुई ....जो जाने माने लेखक थे
कहानी पढने का शौक तो बचपन से ही था .......पर कहानी लिखना ....राम लाल जी से मिलने
के बाद शुरू किया ......तभी ही रंजीत कपूर से मुलाक़ात हुई .....हमारी ही उम्र के थे ......तब तक
उन्होंने भी कुछ नहीं लिखा था .......मेरा उठना -बैठना उन लोगो से शुरू हो गया ...जो नाटक खेलते
थे .......इनमे से कोई पढाई नहीं कर रहा था ....या तो नौकरी कर रहे थे ....या खाली थी .....उस
समय लडके बारह क्लाश पास कर के ....किसी न किसी काम धंदे में लग जाते थे ...
मैंने बी कॉम पास कर लिया था ....पिता जी नौकरी की बात करने लगे थे माँ शादी के
लिए लडकियाँ ,देखने लगी ......इसी बीच मैंने पूना से एडमीशन के लिए फार्म मंगवा लिया
पूना में प्रवेश से पहले ....एक रिटेन एक्जाम होता था ......मैंने दिल्ली जा कर दिया भी ....
यह सब मैंने छिपा कर किया था .....बी कॉम तो पास हो गया .....लेकिन पूना से कोई बुलावा
नहीं आया ......मैंने यम .कॉम में एडमीशन ले लिया .....माँ शादी पे बहुत जोर दे रही थी ,पिता
जी ....नौकरी खोजने पे दबाव डाल रहे थे ......
रतन ने अपनी नौकरी का ट्रांसफर मुम्बई में ले लिया था .......सरदार दोस्त की शादी
हो गयी ......मैं अपनी पढाई करने लगा ...कहानियाँ लिखने लगा ......राम लाल जी से मिलता रहता
और उन्हें अपनी लिखी हुई चीजे सुनाता .......कहीं छपाने की हिम्मत न कर पाता इसी बीच
राज विसारिया के बारे में सुना जो अंग्रेजी प्ले करते थे ......
मैंने यह अब सोच लिया पहले पढाई पूरी करता हूँ .....फिर सोचूंगा क्या करना है
और क्या नहीं करना है ....रतन ने जो ख़त लिखा ....वह फ़िरोज़ खान के पास सहायक हो गया
मैं एक्टर फिरोज खान की बात कर रहा हूँ .......अब उसके हर ख़त में .....भर पूरफिल्मी कहानी
होती ....मैं पढाई को अधूरा नहीं छोड़ना नहीं चाहता था .......यम .कॉम .का फायनल य्ग्जाम
दिया ....और पूना का भी लीखित एग्जाम दिया ......और शुरू हो गयी ....रिजल्ट की ....एक
व्योपार भी सोचा .....प्रिंटिंग सुरु बी ........मशीन और जगह भी देख लिया ....कुल धन
लग रहा था .....करीब चालीस हजार ......
.....पूना से बुलावा आ गया ....इंटर व्यू के लिए ....अब जा कर पिता जी को
खुल कर सब कुछ बता दिया ......पिता जी ने जाने दिया ....यह पढाई भी उनकी समझ
में आ गया .....तीन साल का डिप्लोमा कोर्स था .......इस कोर्स के बाद दूरदर्शन में भी
काम मिल सकता था ....हमारे देश में ....दूरदर्शन ..............
Wednesday, June 2, 2010
हज़पुरा
..... हाई स्कूल के बाद ......मैंने कामर्स ले कर ....आगे की पढाई शुरू की
नये दोस्त मिले ....रतन मेरा दोस्त भी पास हो गया था हम एक ही सेक्सन
में थे .....हाई स्कूल पास हो जान के बाद .....अपने आप को हीरो समझने लगा
.....एक कापी ले कर स्कूल जाना .....क्लास में ,मैं और रतन साथ -साथ बैठते
....उसके पिता सरकारी ड्राईवर थे .....मिनिस्टर की सरकारी कार चलाते थे
रतन के सात भाई थे ...रतन पांचवे नम्बर पे था .....बड़े भाई ....पहलवान किस्म
के थे .....जिनसे पूरा मोहल्ला डरता था ......रतन की दोस्ती ने मुझे भी ...दादा बना दिया
.....हम टीचर से नहीं डरते थे ....बल्कि टीचर हम से डरते थे ......
फिल्मों का देखना कम नहीं हुआ .....हम को कुछ ऐसे दोस्त मिल गये जो हमें
फ़िल्में दिखा देते थे .....कालेज के स्टुडेंट यूनियन का इलेक्शन भी हम लड़वाते थे ...
और हमारा साथी ही जीता था .....
पढाई कम हो गयी ....बाबूजी को यह सब पता चल गया ....और खूब डांट पड़ी
तभी हमें एक और दोस्त मिला .....गुरचरण सिंह ....सरदार था .......वह पढाई में अच्छा था
..जो हमें हेल्प किया करता था .....पर हम तीनों ही फिल्मों के शौकीन थे ....अब हम लोग
यह सोचने लगे कैसे मुम्बई पहुंचा जाय ....
हम तीनों ....बारह क्लास पास कर चुके थे ......रतन ने मुम्बई का रास्ता पकड़ा
उसको फिल्मों में काम करना है ....उसके बड़े भाई जगन मुम्बई ही थे ....वह वहीं नौकरी
करते थे .....सरदार गुरचरण ने पी .डव्लू .डी.में नौकरी कर ली ....
मैं अकेला हो गया.........
नये दोस्त मिले ....रतन मेरा दोस्त भी पास हो गया था हम एक ही सेक्सन
में थे .....हाई स्कूल पास हो जान के बाद .....अपने आप को हीरो समझने लगा
.....एक कापी ले कर स्कूल जाना .....क्लास में ,मैं और रतन साथ -साथ बैठते
....उसके पिता सरकारी ड्राईवर थे .....मिनिस्टर की सरकारी कार चलाते थे
रतन के सात भाई थे ...रतन पांचवे नम्बर पे था .....बड़े भाई ....पहलवान किस्म
के थे .....जिनसे पूरा मोहल्ला डरता था ......रतन की दोस्ती ने मुझे भी ...दादा बना दिया
.....हम टीचर से नहीं डरते थे ....बल्कि टीचर हम से डरते थे ......
फिल्मों का देखना कम नहीं हुआ .....हम को कुछ ऐसे दोस्त मिल गये जो हमें
फ़िल्में दिखा देते थे .....कालेज के स्टुडेंट यूनियन का इलेक्शन भी हम लड़वाते थे ...
और हमारा साथी ही जीता था .....
पढाई कम हो गयी ....बाबूजी को यह सब पता चल गया ....और खूब डांट पड़ी
तभी हमें एक और दोस्त मिला .....गुरचरण सिंह ....सरदार था .......वह पढाई में अच्छा था
..जो हमें हेल्प किया करता था .....पर हम तीनों ही फिल्मों के शौकीन थे ....अब हम लोग
यह सोचने लगे कैसे मुम्बई पहुंचा जाय ....
हम तीनों ....बारह क्लास पास कर चुके थे ......रतन ने मुम्बई का रास्ता पकड़ा
उसको फिल्मों में काम करना है ....उसके बड़े भाई जगन मुम्बई ही थे ....वह वहीं नौकरी
करते थे .....सरदार गुरचरण ने पी .डव्लू .डी.में नौकरी कर ली ....
मैं अकेला हो गया.........
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