मुम्बई में रहते हुए , ठण्ड की ठण्ड भूल चुका था । मैं किसी काम से जयपुर गया था
वहां से अपने गाँव अकबर पुर जाना था ,मरुधर मेल में ए .सी .क़ा वेटिंग क़ा टिकट
ले लिया .....ट्रेन जयपुर से साढ़े तीन बजे चलनी थी ,मेरे पास एक छोटा सा सूटकेश
था ,शरीर पे एक गर्म कोट था ......ए .सी .डिब्बे में जा बैठा ......टी सी को देख कर उसकी
तरफ लपका ...पांच सौ के नोट के साथ अपना वेटिंग क़ा टिकट भी दिया .......उसने
मेरी आँखों में झांक के देखा ......जैसे वादा कर रहा हो .....उसने नोट जेब में डाला ......और आगे बढ़
गया .......मैं वहीं पास की सीट पे बैठ गया और अपने लैप टाप पे काम करने लगा ....
.......................नोट की ताकत ,मुझे मालूम थी सीट तो मुझे मिल ही जायेगी ......ए .सी .क़ा
अटेंडेंट बेड रोल बांटने लगा .......करीब एक घंटा बीत चुका था .......मैं टी .सी.के पास पहुंचा
................उसने मुझे देखा .....कहने लगा ....नहीं हो सके गा साहब .....कोई सीट खाली नहीं है
आप सेकण्ड क्लास में चले जाय .......वहां मिल जायेगी सीट आप को .......यहाँ .....कुछ नहीं
हो सकता .........क्या बताएं साहब कुछ होता तो मैं खुद ही दे देता ......पांच सौ क़ा नोट उसने
वापस किया ............
कुछ सोच के मैंने कहा ......तुम ही कह दो ... टी.सी .से .........
अरे साहब खाली चल रहा है .......आप जाइए मिल जाएगा ........
मैंने लैप टाप बंद किया .......और सेकण्ड क्लास की तरफ चल दिया
.........इंटर कनेक्टेड ट्रेन थी .........मैं दुसरे डब्बे में पहुँच के टी .सी .को खोजने लगा ,मिल
भी गया और उसने वैगर पैसे लिए सीट भी दे दी ........पच्चीस नंबर की सीट थी .....
साईड बर्थ थी......................आराम से सीट पे बैठ गया ........फिर से लैप टाप खोला और
काम करने लगा ....खिड़कियाँ तो बंद थी पर ठण्ड हवा अन्दर आ रही थी मुझे सुई की तरह
चुभ रहीं थी .............
कुछ सोच के मैं ए .सी .अटेंडेंट से मिला ,उससे कहा ......भाई एक बेड रोल दे दो ,तुम्हारा जो
बनता है वह ले लो .......वह कुछ बोला नहीं ......फिर उससे अनुरोध किया..............
साहब हमें तो गिन के बेड रोल मिलते हैं ,आप को तो मालूम ही है .....एक भी बर्थ खाली नहीं है
सब बाँट चुका हूँ .......कुछ ले लो, कम से कम एक कम्बल तो दे दो........नहीं साहब ..है ही नहीं
मैंने पांच सौ क़ा नोट दिखाया ......फिर भी मना कर दिया उस ने .......मुझे सच्चाई समझ में
आ गयी ....इसके पास है ही नहीं ,वरना पाँच सौ क़ा नोट देख के नहीं दे रहा ...मतलब है नहीं
...............मैं अपनी सीट की तरफ चल दिया ....तभी फिल्मों की तरह पीछे से आवाज दी .....
.साहब ...साहब मेरी जान में जान आयी ...चलो अपना काम बन गया ...............उसके करीब
पहुंचा उसने मुझे एक उंगली दिखाई ....मै समझा नहीं ......फिर उसने खुल के कहा ...साहब साहब
एक मिले गा ..........एक क्या ?...........साहब गाँधी जी की एक पत्ती दे दीजिये ......
मुझे यह सुन के झटका लगा ....बन्दा एक हजार मांग रहा ......गुस्से में कुछ बोलना चाह रहा था
............आगे उसकी अकड देखिये .....कहने लगा साहब रात बड़ी ठंडी होती है .....मैं गुस्से
में अपनी सीट पे आ गया ......और बैठ के सोचने लगा ....क्या करूँ ? यह सर्द रात कैसे पार
हो गी .......कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था .....सभी यात्री अपना -अपना विस्तार लगाने लगे
मैं एसे ही बैठा बाहर अँधेरे को देखने लगा ......मेरी बर्थ के ऊपर जो आदमी था ,पता नहीं क्या सोच
के बोल पड़ा .......क्यों भाई साहब ....आप क़ा विस्तार ....?मैं झूठ -मुठ मुस्करा दिया और एक
झूठ बोल दिया ....मुझे अर्जेंशी में जाना पड़ रहा है और ए .सी.में जगह नहीं मिली .....और जगह
भी मिली तो यहाँ .......वह आदमी कुछ सोच के बोल पड़ा .....मेरे पास एक कम्बल है आप ले लें
मुझे कानपुर में उतरना है ...करीब डेढ़ बजे कानपुर आता है ...तब आप दे दीजिएगा ......
..........कम्बल मिलते ही ,मैंने उसे अपने चारो तरफ लपेट लिया ....मुहं को भी ढक लिया ....
गर्माहट मिलते ही आँख लगने लगी .....एक महक जो उस कम्बल से आरही थी .....जैसे अभी
अभी अस्पताल से आ रहा हो ......डर के मारे कुछ पूछना चाह रहा था ....नहीं पूछा .....एक तो इस
ठंडक में कम्बल दिया है और ऊपर से नुकता-चीनी कर रहा हूँ
लाख सोने की कोशिश की पर नींद क़ा नाम नहीं .....कब कानपूर आ गया पता ही नहीं
चला .....एक आवाज आयी
भाई साहब कम्बल दे दीजिये ....कानपुर आने वाला है ....
यह सुन कर बैठ गया .....और ओढ़ा हुआ कम्बल उसे वापस किया .................
मैंने पूछ लिया .....इस कम्बल से अस्पताल वाली महक आ रही थी .........
कुछ सकुचाते हुए वह बोल पड़ा ...........मेरा भाई बीमार था वही ओढ़ता था .....मैंने पूछा अब ठीक
हो गया ........
...........अरे भाईसाहब बहुत ईलाज कराया .....नहीं बचा ......डेथ हो गयी ........
...........यह सुन कर मैं चुप हो गया .....एक बिमारी ने मुझे घेर लिया .......कानपुर आ गया वह
आदमी उतर गया ....मैंने सोच लिया आज की रात एसे ही गुजारुंगा ....कानपुर से ट्रेन निकल गयी
ठण्ड क़ा प्रकोप येसा की दांत बजने लगा .......
.............बाथरूम गया पेशाब किया ......मुझे ठण्ड में बहुत आती है ......ठण्ड लग जाय तो
लूज मोशन होने लगता है .......अपनी सीट पे आ कर बैग से लुंगी निकाली और कान पे बाँध के
सोने की कोशिश करने लगा ..................पता नहीं कब आँख लग गयी .......और गर्माहट
महसूस करने लगा .......और सो गया ....शायद लुंगी बहुत गर्म हो गी या कान बंद करने से .......
सपनो में खो गया ....माँ की गोद याद आने लगी ....उनके शारीर की गर्माहट मेरे शारीर में
घुश गयी .............इतना अच्छा लगने लगा ....बस इन्हीं यादों में जीना चाह रहा था .......
...................कोई मुझे जगा रहा था ......जब मैं जगा तो ....मैं एक कम्बल ओढ़े
हुए हूँ ........किसका कम्बल है मुझे नहीं मालूम ......मेरे सामने ..........एक नंग -धडंग एक
भिखमंगा खड़ा है ......इतनी ठण्ड में वैगर कपड़ों के भीख मांग रहा था .....इतनी नौटंकी ...
पैसा कमाने के लिए .......सुबह हो चुकी थी
...........मैंने कहा छुट्टा नहीं है ..............
नहीं साहब .......मुझे मेरा कम्बल चाहिए .......मेरा स्टेशन आ रहा ......
मैं उसकी तरफ देखता हुआ खामोश हो गया ........साहब ....... रात को आप को जडाते हुए देखा
............और फिर कम्बल ओढ़ के मांग नहीं सकते .न ............कोई कुछ भी नहीं देगा ............
मेरे पास ..................जवाब नहीं था ...उसको कम्बल दिया .......जैसे वह जाने लगा मैंने उसे
बुलाया और ..................पाँच सौ क़ा नोट देने लगा .............वह नोट देख कर हंसने लगा ...
नहीं साहब .... बहुत जादा है .....एक .....दस रुपया दे दीजिये ........
............मेरी आँखे भर आई .............दस क़ा नोट दिया और वह चला गया ....बाहर देखा तो
अयोध्या स्टेशन आ गया था ..............हनुमान गढ़ी को प्रणाम किया ..............चाय वाले रोका
एक चाय ली दस क़ा नोट दिया ......
साहब छुट्टा दीजिये ........थोड़ी देर बाद दूसरी चाय पिला देना ...मैंने कहा ..कच्ची मिटटी में चाय
क़ा स्वाद बहुत रंगीन होता है..................रात क़ा सफ़र सोच के बार -बार .....यही ख्याल आ रहा था
............अच्छे लोग भी ...हर रूप में ........
Monday, January 3, 2011
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