......मैं और बिरजू , ज़ेबा जी के बंगले के पास ही पहुंचे थे ,
तभी ज़ेबा जी अपनी कार से बाहर निकली शूटिंग पे जाने
के लिए ....उनकी कार हमारे सामने से गुजरी .....और हम से
कुछ दूरी पे जा कर रुक गयी ।
मैं घबरा गया ,बिरजू भी डर गया ,हम दोनों तेजी से
आगे बढ़ गये ....तभी पीछे से किसी के बुलाने की आवाज आयी
.....हम दोनों डर के रुक गये । हमारे पास ,मोहन ड्राइवर ज़ेबा जी
का भागता हुआ आया ,और कहने लगा .......भाई राजेश जी आप को
मेडम बुलाती है .....
मैं डरा हुआ .....ज़ेबा जी कार के पास पहुंचा ....मेरी कुछ समझ में नहीं
आ रहा था ...क्यों बुलाया है मुझको ...? अब तो इनसे बहुत डर भी लगने लगा
है ,जब से यह जाना की ये डान की बहन हैं ....
कार की खिडकी खुली , ज़ेबा जी ने बाहर झांक कर मुझसे कहा , कार में
बैठो ......मैं डर के मारे खड़ा ही रहा ,फिर गुस्से में कहा ...... सुनाई नहीं देता .....!
मैं डर के ..कार मैं बैठ गया ,मेरे साथ बिरजू भी बैठने लगा ,यह देख कर ज़ेबा जी
बोल पड़ी ........तुम बिरजू , यहीं बंगले में बैठो ....इसको मैं शूटिंग पे ले जा रही हूँ
......शाम तक आ जाएगा ...इतना कह कर , मुझे उड़ा कर अपने साथ ले कर गयी
गाड़ी में मुझसे कुछ भी बात नहीं की ........कार महबूब स्टूडियो पहुंची ....
कार रुकी मैं जल्दी से कार से बाहर निकला ....पास खड़ी वैन में ज़ेबा जी गयी
उनके और स्टाफ के लोग भी वैन में गये ....मुझसे कोई भी बात नहीं कर रहा था
दस मिनट तक मैं ...वैन से बाहर ही खड़ा रहा .........मुझे क्यों लाया गया ?
मेरी समझ ...कुछ नहीं आ रहा था । क्या करूं यहाँ खड़ा हो कर ...बहुत मुश्किल
में जिन्दगी हो गयी ...
तभी वैन से ज़ेबा जी का स्टाफ बाहर आया और मुझे अंदर जाने को कहा ...
...मैं धीरे -धीरे डरा हुआ ,वैन में पहुंचा .....ज़ेबा जी बहुत बड़े आईने के सामने बैठी
थी ....मुझे देख कर बैठने को कहा , मैं पास रखी कुर्सी पे बैठ गया .....शीशे में से मुझे
देख कर पूछा ,कैसे हो राजेश ? सुना ऑटो ...और उस दिन ...जब तुम मेरी ........
कार से टकराए थे ...तुमने मुझे देखा था न ....?फिर ..फिर पुलिस को झूठ क्यों कहा ?
.........मैं सोच में .... पड़ गया , ....क्या कहूँ इनसे ....और यह सच भी ...मैंने
उस दिन जान बूझ कर इनका नाम नहीं लिया था ...
.......बोलो .....झूठ मत बोलना ...फिर से ज़ेबा जी ने कहा .......
...मेरे पास अब सच बोलने के अलावा कोई जवाब नहीं था .....जी मैंने ...पुलिस को झूठ बोला
था ,जान बूझ के ..... ।
...वजह क्या थी ...मुझे क्यों बचाना चाहते थे .....?
....बस ...आप का नमक खाया था .......!
..यह सुन कर जोरों से हंस पड़ी .......सीख गये बोलना ...अच्छी बात है ...
खान को क्या सजा दोगे .....? ...बोलो .....!
......यही तो मैं और बिरजू चार दिन से सोच रहें हैं ......? कुछ समझ नहीं आ रहा है
....भाई जान ने जो कहा था .......वह भी रास्ता बुरा तो नहीं .....?.काम करो ....भाई जान बचा लेंगे
.......जानते हो .....तुम्हारे जाने के बाद .....दो बार खान ने ........मुझ से जबर्दस्ती करनी चाही
और उस दिन ...जब तुमको मैंने उड़ाया था ....उस दिन भी ...खान ने .......उस दिन तुम पर
बहुत गुस्सा आया ......पर क्या करती ....अब बताओ .......मुझे क्या करना चाहिए ?...है कोई जवाब ?
ज़ेबा की बातें सुन कर ....मुझे लगा .....खान की सजा मौत ही है ...
...ज़ेबा जी ने ...कहा क्या सोचने लगे .....एक बार कुछ रोज पहले ...किसी को सुपारी दी थी ....पर येन
वक्त पे उसकी पिस्तौल चोरी हो गयी .....उसके आदमी फिल्म सिटी तक आये थे ....जहां पिस्तौल रखी
थी ....कोई उठा ले गया .....उस दिन खान मेरे साथ शूटिंग कर रहा था .......उन लोगों का कहना है ,कोई
ऑटो चलाने वाला ले गया ......कौन है ? उसकी तलाश जारी है ....
एक रास्ता बताऊं .....मेरे साथ काम करो ....और मेरे पास पिस्तौल भी है ....फिर किसी दिन
मौक़ा देख कर ....खान को शिकार बना लेना .....और तुम्हे बचाने के लिए मेरा सारा स्टाफ होगा
....क्यों रास्ता कैसा है .....वैसे मैं और भी रास्ते अपना सकती हूँ ......
मैं उसको सजा ...इस तरह देना चाहती हूँ .....जिससे कोई भी आदमी किसी लड़की को
जबरदस्ती अपनी हवस का शिकार ना बना सके ....
मुझे जेबा जी की बात जम गयी .....और मैंने हाँ कह दिया .....
Tuesday, March 30, 2010
Monday, March 29, 2010
सत्तू
..................हम दोनों डान की कैद से जरुर निकल आये ....
अब ...क्या , क्या मैं ,जो वादा डान से कर के आया हूँ ,
उसे पूरा कर पाउँगा ? इसी सोच में दो दिन गुज़र गया ....
.....मैं अपनी झोपड़ी से निकला ही नहीं .....बिरजू ,मेरा दोस्त
इतना डरा हुआ था ,बस एक ही रट , हमें गाँव भाग जाना चाहिए
.......पर मुझे मालूम है , वह इंसान जिससे वादा कर के आयें हैं
वह हमें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा ....
हम हीरो खान को क्या सजा दे सकते हैं जो मौत से बत्तर हो ,
यह सब मैं झूठ ही बोल के आया था ......भलाई इसी में थी की मैं , ज़ेबा जी
से एक बार मिल के ,अपनी इस झूठी हरकत से निजात पा सकूँ ....
बिरजू को अपने मन की बात बताई ....और उससे कहा ,पहली बार
भी तुमने मुझे ज़ेबा जी के यहाँ काम लगवाया था ....इस बार भी तुम फिर लेकर
चलो ....और मेरी झूठी हरकत .......जो मैं डान के सामने कर के आया हूँ ...
उन्हें सच्चाई से अवगत कराओ......
वह चुप ही रहा ...कुछ बोला ही नहीं । मैंने फिर से कहा ...चुप रहने से कुछ भी
नहीं होगा ...इस बार उसने सिर्फ मेरी तरफ देखा .....लेकिन कुछ बोला नहीं ...
" देख बिरजू ...एक बार तू मुझे ,ज़ेबा जी से मिला दे ......मैं उनको समझा लूंगा
और हम ...इस जंजाल से पार हो जायेंगे ....इस बार बिरजू बोला ठीक है ....मैं बंगले के
अंदर तक पहुंचा दूंगा ,, आगे का काम तुम्हारा ....ठीक है ...मैंने कहा ....
सुबह का इंतजार ...होने लगा , कुछ सोच के मैं माँ काली के मंदिर गया
माँ की भव्य की मूर्ती इतनी डरावनी थी .....एकटक एक मिनट से ज्यादा नहीं देख सका
वहीं बैठ गया ....और मन ही मन कहने लगा माँ ....इस मुसीबत से पार करा दो ...यही
प्रार्थना करता रहा .....मंदिर बंद होने का वक्त हो गया ....एक पुजारी मेरे पास आया ,और
मुझे जाने को कहने लगा ....मैं चुप चाप मंदिर से बाहर निकल आया ...
पास एक जूस की दूकान थी ....भूख लगी थी ...जेब में हाथ डाला ...कई नोट हाथ में
आ गये ....ख्याल आया यह तो डान के दिए हुए पैसे है ....कुल बीस हजार दिया था ....यह धन
भी हमारे लिए भय का कारण है ।
जूस पी कर मैं घर की तरफ चल दिया ......
घर जब पहुंचा तो , बिरजू कहने लगा हमें यह जगह छोडनी है ,
क्यों ......मैंने पूछा ।
डान का हुक्म है ...हमें एक घर दिया गया ...अभी ही चलना होगा ...मैं तुम्हारा ही
इंतजार कर रहा था ....और हमें वहीं रहना होगा आज के बाद ....मैं कुछ बोला नहीं
और चल दिया बिरजू के साथ ......सडक से एक ऑटो किया ....और बिरजू ही ने कहा
यारी रोड चलो ....
ऑटो उसी बिल्डिंग के सामने जा कर खड़ा हुआ...जहाँ से बार बाला आती थी ...
मैं कुछ समझा नहीं .....बिरजू के पीछे पीछे चल दिया .... पहले हमें चौकीदार ने रोक लिया
और बिरजू ने उससे कुछ कहा ,फिर उसने हमे जाने दिया ...लिफ्ट से हम लोग सोलवहीं मंजिल
पे पहुंचे .....बिरजू के पास चाभी थी .....घर खोला .....हम अंदर पहुंचे ........ ,।
घर यह मुझे पहचाना सा लगा ......जैसे मैं यहाँ पहले आ चुका हूँ ......एक बार ख्याल
आया बिरजू से कहूँ .....कुछ सोच के मैं चुप ही रहा ...घर में सब कुछ था एक बेड रूम था ,किचेन
में सब कुछ था ...ऐसा लगा जैसे ....एक गेस्ट हॉउस है ......तभी एक लडका आया ,जिसे मैंने पहले
देखा था इसी घर में .....वह मुझे देख कर थोड़ा सा डर गया ....हम लोग वहीं हाल में बैठ गये...
वह लडका हमारे पास आया ....आप लोगो का इन्तजार बहुत देर से कर रहा था
खाना बन चुका है ,कहें तो लगा दूँ .....बिरजू बोल पड़ा ...हाँ लगा दो .....डायनिंग टेबल पे हम लोग
बैठ कर खाना खाने लगे ....खाना खाते हुए बार बार यही ख्याल आ रहा था ...हम लोग जा कहाँ रहें हैं
एक डर बैठ गया .....हम दोनों एक बकरे की तरह हैं जो काटने से पहले खूब खिला पिला के
तैयार किया जा रहा है ....अभी तक कुछ, सब कुछ झूठ सा लग रहा था .......अब सब बिलकुल सच
लगने लगा ......खाने में क्या नहीं था ....खाया तो सब कुछ ...पर जान नहीं पड़ा क्या क्या खाया
....बिरजू के चेहरे पे अब डर नहीं था ...हम दोनों एक ही बेड पे सोये ....मेरी आँखों में नीद नहीं थी
रात में कब सो गया ......पता ही नहीं चला .....
सुबह जब आँख खुली ....बिरजू बगल में नहीं था ...मैं डर गया ...कहीं यह मुझे छोड़ के भाग तो
नहीं गया । जब मैं हाल में आया , तो देखा बिरजू चाय पी रहा है .... मेरा डर दूर हुआ ...बिरजू ही कहने
लगा ....नौ बज रहा है , चलना नहीं है ज़ेबा जी के यहाँ ....? .....हाँ हाँ ...चलना तो है ,
.......तो फिर तैयार हो जा .....नहीं तो वह शूटिंग के लिए निकल जाएँगी ...........
अब ...क्या , क्या मैं ,जो वादा डान से कर के आया हूँ ,
उसे पूरा कर पाउँगा ? इसी सोच में दो दिन गुज़र गया ....
.....मैं अपनी झोपड़ी से निकला ही नहीं .....बिरजू ,मेरा दोस्त
इतना डरा हुआ था ,बस एक ही रट , हमें गाँव भाग जाना चाहिए
.......पर मुझे मालूम है , वह इंसान जिससे वादा कर के आयें हैं
वह हमें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा ....
हम हीरो खान को क्या सजा दे सकते हैं जो मौत से बत्तर हो ,
यह सब मैं झूठ ही बोल के आया था ......भलाई इसी में थी की मैं , ज़ेबा जी
से एक बार मिल के ,अपनी इस झूठी हरकत से निजात पा सकूँ ....
बिरजू को अपने मन की बात बताई ....और उससे कहा ,पहली बार
भी तुमने मुझे ज़ेबा जी के यहाँ काम लगवाया था ....इस बार भी तुम फिर लेकर
चलो ....और मेरी झूठी हरकत .......जो मैं डान के सामने कर के आया हूँ ...
उन्हें सच्चाई से अवगत कराओ......
वह चुप ही रहा ...कुछ बोला ही नहीं । मैंने फिर से कहा ...चुप रहने से कुछ भी
नहीं होगा ...इस बार उसने सिर्फ मेरी तरफ देखा .....लेकिन कुछ बोला नहीं ...
" देख बिरजू ...एक बार तू मुझे ,ज़ेबा जी से मिला दे ......मैं उनको समझा लूंगा
और हम ...इस जंजाल से पार हो जायेंगे ....इस बार बिरजू बोला ठीक है ....मैं बंगले के
अंदर तक पहुंचा दूंगा ,, आगे का काम तुम्हारा ....ठीक है ...मैंने कहा ....
सुबह का इंतजार ...होने लगा , कुछ सोच के मैं माँ काली के मंदिर गया
माँ की भव्य की मूर्ती इतनी डरावनी थी .....एकटक एक मिनट से ज्यादा नहीं देख सका
वहीं बैठ गया ....और मन ही मन कहने लगा माँ ....इस मुसीबत से पार करा दो ...यही
प्रार्थना करता रहा .....मंदिर बंद होने का वक्त हो गया ....एक पुजारी मेरे पास आया ,और
मुझे जाने को कहने लगा ....मैं चुप चाप मंदिर से बाहर निकल आया ...
पास एक जूस की दूकान थी ....भूख लगी थी ...जेब में हाथ डाला ...कई नोट हाथ में
आ गये ....ख्याल आया यह तो डान के दिए हुए पैसे है ....कुल बीस हजार दिया था ....यह धन
भी हमारे लिए भय का कारण है ।
जूस पी कर मैं घर की तरफ चल दिया ......
घर जब पहुंचा तो , बिरजू कहने लगा हमें यह जगह छोडनी है ,
क्यों ......मैंने पूछा ।
डान का हुक्म है ...हमें एक घर दिया गया ...अभी ही चलना होगा ...मैं तुम्हारा ही
इंतजार कर रहा था ....और हमें वहीं रहना होगा आज के बाद ....मैं कुछ बोला नहीं
और चल दिया बिरजू के साथ ......सडक से एक ऑटो किया ....और बिरजू ही ने कहा
यारी रोड चलो ....
ऑटो उसी बिल्डिंग के सामने जा कर खड़ा हुआ...जहाँ से बार बाला आती थी ...
मैं कुछ समझा नहीं .....बिरजू के पीछे पीछे चल दिया .... पहले हमें चौकीदार ने रोक लिया
और बिरजू ने उससे कुछ कहा ,फिर उसने हमे जाने दिया ...लिफ्ट से हम लोग सोलवहीं मंजिल
पे पहुंचे .....बिरजू के पास चाभी थी .....घर खोला .....हम अंदर पहुंचे ........ ,।
घर यह मुझे पहचाना सा लगा ......जैसे मैं यहाँ पहले आ चुका हूँ ......एक बार ख्याल
आया बिरजू से कहूँ .....कुछ सोच के मैं चुप ही रहा ...घर में सब कुछ था एक बेड रूम था ,किचेन
में सब कुछ था ...ऐसा लगा जैसे ....एक गेस्ट हॉउस है ......तभी एक लडका आया ,जिसे मैंने पहले
देखा था इसी घर में .....वह मुझे देख कर थोड़ा सा डर गया ....हम लोग वहीं हाल में बैठ गये...
वह लडका हमारे पास आया ....आप लोगो का इन्तजार बहुत देर से कर रहा था
खाना बन चुका है ,कहें तो लगा दूँ .....बिरजू बोल पड़ा ...हाँ लगा दो .....डायनिंग टेबल पे हम लोग
बैठ कर खाना खाने लगे ....खाना खाते हुए बार बार यही ख्याल आ रहा था ...हम लोग जा कहाँ रहें हैं
एक डर बैठ गया .....हम दोनों एक बकरे की तरह हैं जो काटने से पहले खूब खिला पिला के
तैयार किया जा रहा है ....अभी तक कुछ, सब कुछ झूठ सा लग रहा था .......अब सब बिलकुल सच
लगने लगा ......खाने में क्या नहीं था ....खाया तो सब कुछ ...पर जान नहीं पड़ा क्या क्या खाया
....बिरजू के चेहरे पे अब डर नहीं था ...हम दोनों एक ही बेड पे सोये ....मेरी आँखों में नीद नहीं थी
रात में कब सो गया ......पता ही नहीं चला .....
सुबह जब आँख खुली ....बिरजू बगल में नहीं था ...मैं डर गया ...कहीं यह मुझे छोड़ के भाग तो
नहीं गया । जब मैं हाल में आया , तो देखा बिरजू चाय पी रहा है .... मेरा डर दूर हुआ ...बिरजू ही कहने
लगा ....नौ बज रहा है , चलना नहीं है ज़ेबा जी के यहाँ ....? .....हाँ हाँ ...चलना तो है ,
.......तो फिर तैयार हो जा .....नहीं तो वह शूटिंग के लिए निकल जाएँगी ...........
Thursday, March 25, 2010
सत्तू
.....दोपहर को ,बिरजू मेरे लिए खाना ले कर आया ,मेरा डरा हुआ चेहरा देख कर ,
उसने पूछा .......क्या बात है ?....चेहरा तेरा इतना मुरझाया हुआ क्यों है ?यह डान,
मुझे कातिल बनाना चाहता है ....उस हीरो खान से मेरी क्या दुश्मनी है ? बता तू,बोल
...बोल ना चुप क्यों है ? बिरजू मेरी तरफ एक -टक देखता रहा .....,देख ...यह डान हमें
उस जुर्म में फसाना चाहता है ,जो हम करना नहीं चाहते हैं .........,और अगर एक बार
गुनाह कर दिया .....फिर हम उस दलदल में फंस जायेंगे ,जिसमें से फिर निकलना नामुमकिन
हो जाएगा .....
बिरजू ने कहा , देख राजेश ......यहाँ से निकलना है तो , हमें वही करना होगा ,
जो यह कह रहा है ....वरना यह हमें मार देगा , तू यह खाना खा ....मैं सोचता हूँ , कोई रास्ता
मिलता है , या नहीं .......
बिरजू खाना रख के चला गया ......खाना खाने का मन नहीं कर रहा था ......बस यहाँ
से भाग निकलने का रास्ता खोज रहा था .....यही सब सोच रहा था ,तभी खिडकी से देखा ......
एक कार अंदर आ रही थी ....इस कार को देख कर ,मैं पहचान गया ....यह तो ज़ेबा जी कार है !
......लेकिन .......यहाँ ..क्यों ... ? कहीं इन्होने ...तो नहीं ...खान को मरवाने के लिए ....यह सब
खेल किया हो .....और मैं ...जो नराज हो कर इन्हें छोड़ आया .....मुझसे बदला तो नहीं .....ले रहीं
है ........,
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ,मैं तो इस कमरे में कैद था ,बाहर निकलने की इजाजत
नहीं है ....जेबा का और डान से कोई रिश्ता तो नहीं है ? ...मैं अपने आप से ,बहुत सारे सवाल कर
रहा था । पर जवाब न था, मेरे पास ,बिरजू मेरे पास आया और कहने लगा ....राजेश तुम्हे
नीचे बुलाया गया है ....मैं फिर डर गया ....कुछ सोच के बिरजू के साथ नीचे चल दिया ....
नीचे हाल में .....डान बैठा हुआ था ....पास रखे हुक्के को पी रहा था ...डान को देख के
डान कम अवध का बादशाह लग रहा था ....मैं उसके पास पहुँच के, मैंने उसे सलाम किया
....सलाम का जवाब न देकर ,सिर्फ बैठने को कहा । ......मैं डरते हुए पास रखे सोफे पे बैठ गया ,
...कुछ देर बाद ,जेबा जी आयीं ...और डान ने जेबा जी को बहन कह के बुलाया ....वह डान के
बगल बैठ गयी ....जेबा जी ने मेरी तरफ देखा ...बस मुस्करा दिया ......राजेश ,खान को नहीं मालूम
जेबा मेरी बहन है .....और उसको इस बात सजा मिलेगी .....मैंने भी समझाया ....पर वह समझना
नहीं चाहता ....तुम्हे इस लिए चुना गया .......यह जेबा की इच्छा थी ....यह काम तुम करो ....
....तुम बोलते कुछ नहीं हो .....हमें धोखा तो नहीं दोगे ....?.और हमारे धर्म में धोखा देने वाले को क्या
सजा मिलती है , मालूम है क्या ? ....मैंने डरते हुए डान की तरफ देखा ..... ।
....... मेरी जबान ,तलवे से जा लगी थी ......हकलाते हुए कहना शुरू किया ....हीरो खान
को ..मौत की सजा देना ही क्या वाजिब है ..?.किसी और ढंग से ,क्या नहीं समझाया जा सकता ...
यह सुन कर ....डान ने खुश हो कर कहा .....बिल्कुल...क्यों नहीं .......फिर डान ने ज़ेबा की तरफ
देखा और ....पूछा क्या कहती हो ज़ेबा ? भाई जान ,जैसा आप ठीक समझते हैं !...वैसे मैं तो
इतना तंग आ चुकी हूँ की ......उसका मरना ही जरुरी है .....
इतनी नफरत ....ज़ेबा जी का .. ......खान के लिए ......इतना गंदा इंसान है वो ....
मुझमे जैसे कहीं से .... हिम्मत आ गयी ....और बोल पड़ा मैं .....नहीं, इसकी सजा मौत से बत्तर होनी
चाहिए ...और वह मैंने सोच लिया है ,वह मुझ पर छोड़ दीजिये ....किस तरह दूंगा ...पर यहाँ रह कर
नहीं ....मैं अपनी कपास बाडी में रह कर दूंगा .........
डान बोल पड़ा .....हमसे दगा मत करना .... वरना मौत की सजा .....तुम्हें मिलेगी
.....साहब जी मुझे मंजूर है .....
....ठीक है ...तुम जा सकते हो ....अपने घर .....जावो तुम आजाद हो ....और कुछ सोच के ...डान ने दो
गड्डी सौ -सौ का मेरी तरफ .बढाया ...यह रख लो काम आयेगा ....और हाँ ..कल से सब काम शुरू कर
दो .......
मैं और बिरजू , कपास बाडी की अपनी झोपड़ी में आ गये ....हम दोनों इस तरह सोये ,
जैसे लोग गदहे......बेच कर सोते हैं ....पूरा दिन सोते रहे ...पूरी रात सोते रहे ....
जब अगले दिन आँख खुली ......डान के सामने ,एक वादा कर के आ गये हैं ......अब उस सजा को
खोजने लगे जो .....हीरो खान को देनी थी ........ ।
उसने पूछा .......क्या बात है ?....चेहरा तेरा इतना मुरझाया हुआ क्यों है ?यह डान,
मुझे कातिल बनाना चाहता है ....उस हीरो खान से मेरी क्या दुश्मनी है ? बता तू,बोल
...बोल ना चुप क्यों है ? बिरजू मेरी तरफ एक -टक देखता रहा .....,देख ...यह डान हमें
उस जुर्म में फसाना चाहता है ,जो हम करना नहीं चाहते हैं .........,और अगर एक बार
गुनाह कर दिया .....फिर हम उस दलदल में फंस जायेंगे ,जिसमें से फिर निकलना नामुमकिन
हो जाएगा .....
बिरजू ने कहा , देख राजेश ......यहाँ से निकलना है तो , हमें वही करना होगा ,
जो यह कह रहा है ....वरना यह हमें मार देगा , तू यह खाना खा ....मैं सोचता हूँ , कोई रास्ता
मिलता है , या नहीं .......
बिरजू खाना रख के चला गया ......खाना खाने का मन नहीं कर रहा था ......बस यहाँ
से भाग निकलने का रास्ता खोज रहा था .....यही सब सोच रहा था ,तभी खिडकी से देखा ......
एक कार अंदर आ रही थी ....इस कार को देख कर ,मैं पहचान गया ....यह तो ज़ेबा जी कार है !
......लेकिन .......यहाँ ..क्यों ... ? कहीं इन्होने ...तो नहीं ...खान को मरवाने के लिए ....यह सब
खेल किया हो .....और मैं ...जो नराज हो कर इन्हें छोड़ आया .....मुझसे बदला तो नहीं .....ले रहीं
है ........,
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ,मैं तो इस कमरे में कैद था ,बाहर निकलने की इजाजत
नहीं है ....जेबा का और डान से कोई रिश्ता तो नहीं है ? ...मैं अपने आप से ,बहुत सारे सवाल कर
रहा था । पर जवाब न था, मेरे पास ,बिरजू मेरे पास आया और कहने लगा ....राजेश तुम्हे
नीचे बुलाया गया है ....मैं फिर डर गया ....कुछ सोच के बिरजू के साथ नीचे चल दिया ....
नीचे हाल में .....डान बैठा हुआ था ....पास रखे हुक्के को पी रहा था ...डान को देख के
डान कम अवध का बादशाह लग रहा था ....मैं उसके पास पहुँच के, मैंने उसे सलाम किया
....सलाम का जवाब न देकर ,सिर्फ बैठने को कहा । ......मैं डरते हुए पास रखे सोफे पे बैठ गया ,
...कुछ देर बाद ,जेबा जी आयीं ...और डान ने जेबा जी को बहन कह के बुलाया ....वह डान के
बगल बैठ गयी ....जेबा जी ने मेरी तरफ देखा ...बस मुस्करा दिया ......राजेश ,खान को नहीं मालूम
जेबा मेरी बहन है .....और उसको इस बात सजा मिलेगी .....मैंने भी समझाया ....पर वह समझना
नहीं चाहता ....तुम्हे इस लिए चुना गया .......यह जेबा की इच्छा थी ....यह काम तुम करो ....
....तुम बोलते कुछ नहीं हो .....हमें धोखा तो नहीं दोगे ....?.और हमारे धर्म में धोखा देने वाले को क्या
सजा मिलती है , मालूम है क्या ? ....मैंने डरते हुए डान की तरफ देखा ..... ।
....... मेरी जबान ,तलवे से जा लगी थी ......हकलाते हुए कहना शुरू किया ....हीरो खान
को ..मौत की सजा देना ही क्या वाजिब है ..?.किसी और ढंग से ,क्या नहीं समझाया जा सकता ...
यह सुन कर ....डान ने खुश हो कर कहा .....बिल्कुल...क्यों नहीं .......फिर डान ने ज़ेबा की तरफ
देखा और ....पूछा क्या कहती हो ज़ेबा ? भाई जान ,जैसा आप ठीक समझते हैं !...वैसे मैं तो
इतना तंग आ चुकी हूँ की ......उसका मरना ही जरुरी है .....
इतनी नफरत ....ज़ेबा जी का .. ......खान के लिए ......इतना गंदा इंसान है वो ....
मुझमे जैसे कहीं से .... हिम्मत आ गयी ....और बोल पड़ा मैं .....नहीं, इसकी सजा मौत से बत्तर होनी
चाहिए ...और वह मैंने सोच लिया है ,वह मुझ पर छोड़ दीजिये ....किस तरह दूंगा ...पर यहाँ रह कर
नहीं ....मैं अपनी कपास बाडी में रह कर दूंगा .........
डान बोल पड़ा .....हमसे दगा मत करना .... वरना मौत की सजा .....तुम्हें मिलेगी
.....साहब जी मुझे मंजूर है .....
....ठीक है ...तुम जा सकते हो ....अपने घर .....जावो तुम आजाद हो ....और कुछ सोच के ...डान ने दो
गड्डी सौ -सौ का मेरी तरफ .बढाया ...यह रख लो काम आयेगा ....और हाँ ..कल से सब काम शुरू कर
दो .......
मैं और बिरजू , कपास बाडी की अपनी झोपड़ी में आ गये ....हम दोनों इस तरह सोये ,
जैसे लोग गदहे......बेच कर सोते हैं ....पूरा दिन सोते रहे ...पूरी रात सोते रहे ....
जब अगले दिन आँख खुली ......डान के सामने ,एक वादा कर के आ गये हैं ......अब उस सजा को
खोजने लगे जो .....हीरो खान को देनी थी ........ ।
Wednesday, March 24, 2010
सत्तू
....गाडी , बहुत बड़ी थी ....एक ड्राईवर ,सफ़ेद कपड़ों में था । जो उस गाडी को चला रहा था।
कहाँ ले कर मुझे जा रहा है ? मुझे नहीं मालूम ....पर डर था , मुझसे क्या कराना चाहते हैं ?
गाड़ी चली जा रही थी ,मैं अपने विचारों में खोया ...एक -एक पलडर से गुज़र रहा था ।
करीब डेढ़ बजे ,यह कार, एक बंगले के अंदर गयी ,बहुत ही खूबसूरत बँगला ,कई वाचमैन ,बड़े -बड़े
कुत्तों के साथ ,टहल रहे थे । मुझे अंदर चलने को कहा गया , मैं एक खूबसूरत से हाल में पहुंचा ,
मैं डरा हुआ ,इधर -उधर देखता रहा ......तभी एक अधेड़ किस्म का आदमी लखनवी अंदाज़
में ,चिकेन के कपडे पहने हुए ,मेरे पास आया ,उसके रोबीले चेहरे में किसी खूंखार राजा का खौफ
भरा था ..... ।
पूछा उसने ..........राजेश ....यही नाम है तुम्हारा ,मैंने डर के उनकी तरफ देखा ......अब
इसी जगह रहना होगा .....समझे .......अभी तक मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था ,तभी उस आदमी
ने आवाज दे कर किसी को बुलाया .........मैं बिरजू को ,एक नौकर के रूप में देख के डर गया
........देखो तुम्हारे दोस्त को भी बुला लिया .....ठीक है ना ,क्यों राजेश ? और एक बात ,यहाँ से भागने की कोशिश मत करना ........इतना कहा के ,बिरजू को अपने पास बुलाया ......और कहा .....
राजेस को ऊपर का कमरा दे दो रहने के लिए ....और हाँ किसी बात की तकलीफ न होने देना इसको
.......और इतना कह के वह आदमी चला गया ।
हम दोनों दोस्त एक दुसरे को देखते रहे .....
जिन्दगी के किस खेल में फंस गये , बिरजू मुझसे कुछ नहीं बोला ,और चलने को कहा ।
मैं उसके साथ चलने लगा ,मैं बिरजू से बात करने लगे .....वह सिर्फ हूँ हाँ में जवाब देने लगा ...एक
दोस्त से मिलने की खुशी नहीं थी .....उसे ...... ।
मुझे एक बहुत ही खूबसूरत कमरे में ले कर गया ......और कहने लगा ......यह आप का
कमरा है ,आज से आप इसी में रहें गे ......और दूसरी बात मैं आप का दोस्त नहीं हूँ ...मैं सिर्फ एक
नौकर हूँ आप का ....मुझे ठीक ठाक देखना चाहते हैं तो दोस्ती का रिश्ता भूल जाओ ....इसी में
हमारी भलाई है .... ... ।
बिरजू मुझे कमरे में छोड़ कर चला गया .....मेरी कुछ समझ में नहीं आरहा था ॥
यह सब क्या हो रहा है । कौन यह सब कर रहा है और क्यों ? एक बहुत बड़े बिस्तर पे बैठ गया
इस तरह के बिस्तर पे मैं आज तक बैठा नहीं था ,आज सोना पड़ेगा ....
सुबह हो गयी ...पर एक पल को नहीं सोया ....किन -किन ख्यालों में खोया रहा
रात भर ...मुझे हलाल होने वाले बकरे का ख्याल आता था ......खूब खिलाया जाता है
बच्चे इतना प्यार करते ....जैसे जिन्दगी भर का साथी मिल गया हो ....
दरवाजे पे नाक हुआ ,मैंने उठ कर दरवाज़े को खोला ........सामने बिरजू खड़ा था
उसके हाथ में चाय की एक पुरी ट्रे थी ,जैसा मैं फिल्मों में देखा था, किसी अमीर आदमी को चाय
पीते ...वैसे ही बिरजू चाय को ले कर आया था ......मैंने पूछा ,बिरजू यह सब क्या नौटंकी है ?
.......बिरजू चुप ही रहा ....उसने मुझे चाय बना कर दिया । फिर मैंने पूछा ...बिरजू तू मेरी
किसी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहा है? ....साहब मैं नौकर हूँ, और आप डान साहब के मेहमान
.......मुझे ....एक दोस्त की खातिर ...माफ़ करें ,जैसा आप चाहते हैं ,वैसा कुछ नहीं हो सकता
और मुझे वह सब करने दे, जो मैं कर रहा हूँ .......! यह सुन कर , मैं चुप हो गया .....अब क्या
...जानू ....बिरजू कुछ बताना ही नहीं चाहता ......
......इस बंगले में रहते हुए .....करीब तीन बीत चुका था ...मैं बिरजू के अलावा किसी से
बात भी नहीं कर सकता था ....सच कहता हूँ ,मैं इस जिन्दगी से ऊब चुका था ...मुझसे यह लोग क्या
चाहते हैं ,यही मेरी समझ में नहीं आ रहा था ......बिरजू भी मेरी कुछ हेल्प नहीं कर पा रहा था
.....वह भी इन लोगों के चंगुल में फंसा हुआ था ,एक रात मेरे कमरे में डान आया
और कहने लगा ....कैसा लग रहा है ? किसी तरह की तकलीफ तो नहीं है ?
......मेरा जवाब क्या होता .....डर के मारे ,सब ठीक ही बताया ,उस आदमी ने कहा तुम्हे एक
आदमी को मरना होगा .....आज तुम्हें सब कुछ बता दिया जाएगा ....किसे मारना होगा और कैसे
मारना होगा ....हथियार क्या होगा ? समय क्या होगा ,सब कुछ बता दिया जाएगा ......
मैं शाम का इन्तजार करने लगा ......एक आदमी आया ,उसने एक आदमी की फोटो दिखाया
यह फोटो किसी और की नहीं .......हीरो खान की फोटो थी ....फिर उस अजनबी आदमी ने कहा
अगले सोमवार को वह फिल्म सिटी में मंदिर के लोकेशन पे शूटिंग करेगा ...... फाईट सीन की शूटिंग
है ......और तुम्हे इसी मौके का फायदा उठाना होगा ..... गोली से उड़ा देना होगा ...
......यह काम करने के बाद वहीं पे एक वैन खडी होगी ,बस उसमें जा कर बैठ जाना होगा
....... इस काम के बाद ...तुम और बिरजू अपने गाँव जा सकते हो ..........एक साल बाद
फिर तुम्हे मुम्बई आना होगा .....इस काम का तुम्हे दस लाख मिलेगा ....कम तो नहीं है
यह सब सुन कर मेरी सिट्टी - पिट्टी गुम हो गयी .........
कहाँ ले कर मुझे जा रहा है ? मुझे नहीं मालूम ....पर डर था , मुझसे क्या कराना चाहते हैं ?
गाड़ी चली जा रही थी ,मैं अपने विचारों में खोया ...एक -एक पलडर से गुज़र रहा था ।
करीब डेढ़ बजे ,यह कार, एक बंगले के अंदर गयी ,बहुत ही खूबसूरत बँगला ,कई वाचमैन ,बड़े -बड़े
कुत्तों के साथ ,टहल रहे थे । मुझे अंदर चलने को कहा गया , मैं एक खूबसूरत से हाल में पहुंचा ,
मैं डरा हुआ ,इधर -उधर देखता रहा ......तभी एक अधेड़ किस्म का आदमी लखनवी अंदाज़
में ,चिकेन के कपडे पहने हुए ,मेरे पास आया ,उसके रोबीले चेहरे में किसी खूंखार राजा का खौफ
भरा था ..... ।
पूछा उसने ..........राजेश ....यही नाम है तुम्हारा ,मैंने डर के उनकी तरफ देखा ......अब
इसी जगह रहना होगा .....समझे .......अभी तक मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था ,तभी उस आदमी
ने आवाज दे कर किसी को बुलाया .........मैं बिरजू को ,एक नौकर के रूप में देख के डर गया
........देखो तुम्हारे दोस्त को भी बुला लिया .....ठीक है ना ,क्यों राजेश ? और एक बात ,यहाँ से भागने की कोशिश मत करना ........इतना कहा के ,बिरजू को अपने पास बुलाया ......और कहा .....
राजेस को ऊपर का कमरा दे दो रहने के लिए ....और हाँ किसी बात की तकलीफ न होने देना इसको
.......और इतना कह के वह आदमी चला गया ।
हम दोनों दोस्त एक दुसरे को देखते रहे .....
जिन्दगी के किस खेल में फंस गये , बिरजू मुझसे कुछ नहीं बोला ,और चलने को कहा ।
मैं उसके साथ चलने लगा ,मैं बिरजू से बात करने लगे .....वह सिर्फ हूँ हाँ में जवाब देने लगा ...एक
दोस्त से मिलने की खुशी नहीं थी .....उसे ...... ।
मुझे एक बहुत ही खूबसूरत कमरे में ले कर गया ......और कहने लगा ......यह आप का
कमरा है ,आज से आप इसी में रहें गे ......और दूसरी बात मैं आप का दोस्त नहीं हूँ ...मैं सिर्फ एक
नौकर हूँ आप का ....मुझे ठीक ठाक देखना चाहते हैं तो दोस्ती का रिश्ता भूल जाओ ....इसी में
हमारी भलाई है .... ... ।
बिरजू मुझे कमरे में छोड़ कर चला गया .....मेरी कुछ समझ में नहीं आरहा था ॥
यह सब क्या हो रहा है । कौन यह सब कर रहा है और क्यों ? एक बहुत बड़े बिस्तर पे बैठ गया
इस तरह के बिस्तर पे मैं आज तक बैठा नहीं था ,आज सोना पड़ेगा ....
सुबह हो गयी ...पर एक पल को नहीं सोया ....किन -किन ख्यालों में खोया रहा
रात भर ...मुझे हलाल होने वाले बकरे का ख्याल आता था ......खूब खिलाया जाता है
बच्चे इतना प्यार करते ....जैसे जिन्दगी भर का साथी मिल गया हो ....
दरवाजे पे नाक हुआ ,मैंने उठ कर दरवाज़े को खोला ........सामने बिरजू खड़ा था
उसके हाथ में चाय की एक पुरी ट्रे थी ,जैसा मैं फिल्मों में देखा था, किसी अमीर आदमी को चाय
पीते ...वैसे ही बिरजू चाय को ले कर आया था ......मैंने पूछा ,बिरजू यह सब क्या नौटंकी है ?
.......बिरजू चुप ही रहा ....उसने मुझे चाय बना कर दिया । फिर मैंने पूछा ...बिरजू तू मेरी
किसी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहा है? ....साहब मैं नौकर हूँ, और आप डान साहब के मेहमान
.......मुझे ....एक दोस्त की खातिर ...माफ़ करें ,जैसा आप चाहते हैं ,वैसा कुछ नहीं हो सकता
और मुझे वह सब करने दे, जो मैं कर रहा हूँ .......! यह सुन कर , मैं चुप हो गया .....अब क्या
...जानू ....बिरजू कुछ बताना ही नहीं चाहता ......
......इस बंगले में रहते हुए .....करीब तीन बीत चुका था ...मैं बिरजू के अलावा किसी से
बात भी नहीं कर सकता था ....सच कहता हूँ ,मैं इस जिन्दगी से ऊब चुका था ...मुझसे यह लोग क्या
चाहते हैं ,यही मेरी समझ में नहीं आ रहा था ......बिरजू भी मेरी कुछ हेल्प नहीं कर पा रहा था
.....वह भी इन लोगों के चंगुल में फंसा हुआ था ,एक रात मेरे कमरे में डान आया
और कहने लगा ....कैसा लग रहा है ? किसी तरह की तकलीफ तो नहीं है ?
......मेरा जवाब क्या होता .....डर के मारे ,सब ठीक ही बताया ,उस आदमी ने कहा तुम्हे एक
आदमी को मरना होगा .....आज तुम्हें सब कुछ बता दिया जाएगा ....किसे मारना होगा और कैसे
मारना होगा ....हथियार क्या होगा ? समय क्या होगा ,सब कुछ बता दिया जाएगा ......
मैं शाम का इन्तजार करने लगा ......एक आदमी आया ,उसने एक आदमी की फोटो दिखाया
यह फोटो किसी और की नहीं .......हीरो खान की फोटो थी ....फिर उस अजनबी आदमी ने कहा
अगले सोमवार को वह फिल्म सिटी में मंदिर के लोकेशन पे शूटिंग करेगा ...... फाईट सीन की शूटिंग
है ......और तुम्हे इसी मौके का फायदा उठाना होगा ..... गोली से उड़ा देना होगा ...
......यह काम करने के बाद वहीं पे एक वैन खडी होगी ,बस उसमें जा कर बैठ जाना होगा
....... इस काम के बाद ...तुम और बिरजू अपने गाँव जा सकते हो ..........एक साल बाद
फिर तुम्हे मुम्बई आना होगा .....इस काम का तुम्हे दस लाख मिलेगा ....कम तो नहीं है
यह सब सुन कर मेरी सिट्टी - पिट्टी गुम हो गयी .........
Monday, March 22, 2010
सत्तू
पुलिस ,पूछ पाछ के चली गयी ,मैं पुलिस के व्योहार से मैं डर गया ।
इसी सोच में पड़ा रहा ,क्या सच में किसी चंगुल में फंस रहा हूँ ?
मुझे यहाँ से भागने में समझदारी लगी ,सब कुछ था तो ,पैसा टिकट ,
फिर एक ख्याल आया ,मेरे जाने से ,पुलिस का शक पक्का न हो जाय ।
की मैं ही गुनाहगार हूँ .......यही सब सोच कर मैंने जाने ईरादा कैंसिल किया
रात हो गयी ,बिरजू भी आ गया था ,मैंने उससे कहा ,मेरा मन यहाँ
लग नहीं रहा है ......यह सुन कर ,बिरजू बोला ... गाँव जाने का मन हो रहा है ?
........मैंने सर हिला कर जवाब दिया ......फिर कहने लगा ....अभी कैसे जा सकते हो !
पुलिस ...से पूछ कर जाना पड़ेगा ,वरना उनका शक पक्का हो जाएगा ,और मैं भी
तुम्हारे साथ लपेटे में आ जाउंगा ....तो मैं क्या करूं .....कुछ दिन इन्तजार करो ,बिरजू ने
कहा .......
मुम्बई आये थे काम की तलाश में ......और किस जंजाल में फंस गये ,पूरी रात
इसी विचार में गुजर गयी ......सुबह आँख खुली तो बंगाली औरत चाय ले कर खड़ी थी ,अब मैं
हर किसी से डर लगने लगा .....कमरे में बिरजू भी नहीं था ,बंगाली औरत मेरे डर को भांप गयी
.......मुझे चाय देते हुए .....पूछा उसने ....इतना डरा हुआ क्यों है तू ?
......मैंने डरते हुए कहा ...मुझे यहाँ से भेज दो ......गाँव जावो गे ....?
.....मैंने डरते हुए ...हाँ कहा ...
....क्या हो गया ... बोलो ...डरो मत ..मैं कोई रास्ता निकालूंगी ।
.....मुझ में हिम्मत आयी ...मैंने सब कुछ सच -सच बता दिया ... । यह सब सुन कर ,वह औरत
सोचने लगी ......फिर कुछ सोच के बोली ....कोई तुम्हे अपने गैंग में शामिल करना चाहता है ।
....अब तो एक ही रास्ता है ....तुम दोनों को मुम्बई छोड़ के जाना होगा ,वरना तुमको किसी बुरी लाईन
में फंसना पड़ेगा ,और वही करना पड़ेगा जो वह लोग चाहेंगे ....
मैंने पूछा .....पर यह लोग कौन हैं ?
इसका जवाब भी उस बंगाली औरत के पास नहीं था ......
कुछ देर तक वह सोचती रही ....और एक झटके में उठी ....चली गयी । मैं भी कुछ ,समझ नहीं पाया
...फिर मैं कमरे में अकेला रह गया ...तभी एक लडका गली का आया ,और मुझे एक मोबाईल दे कर
चला गया ...मैं कुछ पूछता ....तब तक वह भाग गया .....
मोबाईल देख ही रहा था ....तभी उसकी घंटी बज उठी .....मैं कुछ समझ ही नहीं पाया ...फोन मिलते
ही घंटी बज उठी ,.....फिल्मों की तरह सब हो रहा था ,और मेरे चेहरे का रंग भी उसी तरह बदलने
लगा .... डर के फोन को उठाया .....हेलो बोला था की उधर से ,किसी औरत ने मेरा नाम ले कर ,कहा
.....कैसी तवियत है राजेश ?.....मैं कुछ बोलूँ....इससे पहले वह फिर से बोल पड़ी ,राजेश मैं तुम्हारे
एहसानों को भूल नहीं सकती .....मैंने तुम्हारे लिए एक घर खरीदा है ....उसमें तुम आ कर रह सकते
हो ...आज रात में तुम्हारे पास एक गाड़ी आएगी ,तुम्हे लेने के लिए ....आ जाना वरना जबर्दस्ती
उठवा लुंगी ..... यह सब सुन कर मैं डर गया .....सच में मैं किसी गैंग में फंस गया । अब निकलना
मुश्किल ही है । अब जैसा वह लो कह रहें हैं ,मान लो .....यह सब कुछ मैंने अपने मन से कहा ,नहीं तो
....और किसी बवाल में फंस सकता हूँ ....
पूरा दिन ...गुज़र गया भूख भी मर चुकी थी , मैं किस राह पे जा रहा हूँ ? मैं जीवन में क्या
करने जा रहा हूँ ...क्या मैं गुंडा बदमाश बनने जा रहा हूँ ?.......फिर एक सवाल मेरे मन में उभरने
लगा ....क्या गुंडे बदमाश इसी तरह लोगों को बनाया जाता है ?
वह बंगाली औरत भी मेरा हाल पूछने नहीं आयी ...... शायद वह भी डर गयी ।
बिरजू भी घर ...रात में नहीं आया ......कहाँ है वह ,क्यों अभी तक नहीं आया ?
...मेरी हालत वैसी ही थी ,जैसे किसी बकरे को हलाल करने के लिए ले जा रहें हो ,और वह बकरा
मैं हूँ ....बकरा तो जानवर होता है , मैं तो इंसान हूँ ....मैं भाग भी नहीं सकता ...बस चुप चाप ,देखते
जावो ,किस तरह तुम्हारे साथ पेश आते हैं ,और फिर मुझमें ऐसा क्या मिल गया उन्हें ?
मैंने भी जी को कड़ा कर लिया , एक कहावत मेरी माँ कहा करती थी, जब सर दिया ओखली में
तो मूसलों का क्या डर ,यही सोच लिया मैंने भी ....अब डरना क्या ,देखा जाएगा जो होगा ।
रात करीब एक बजे ,मेरे पास एक आदमी आया और मुझे चलने को कहने लगा .....मैंने उस आदमी
को ध्यान से देखा ...और अपना कुछ समान लिया ,सत्तू की पोटली भी ली ,और उस आदमी के साथ चल
दिया .......
इसी सोच में पड़ा रहा ,क्या सच में किसी चंगुल में फंस रहा हूँ ?
मुझे यहाँ से भागने में समझदारी लगी ,सब कुछ था तो ,पैसा टिकट ,
फिर एक ख्याल आया ,मेरे जाने से ,पुलिस का शक पक्का न हो जाय ।
की मैं ही गुनाहगार हूँ .......यही सब सोच कर मैंने जाने ईरादा कैंसिल किया
रात हो गयी ,बिरजू भी आ गया था ,मैंने उससे कहा ,मेरा मन यहाँ
लग नहीं रहा है ......यह सुन कर ,बिरजू बोला ... गाँव जाने का मन हो रहा है ?
........मैंने सर हिला कर जवाब दिया ......फिर कहने लगा ....अभी कैसे जा सकते हो !
पुलिस ...से पूछ कर जाना पड़ेगा ,वरना उनका शक पक्का हो जाएगा ,और मैं भी
तुम्हारे साथ लपेटे में आ जाउंगा ....तो मैं क्या करूं .....कुछ दिन इन्तजार करो ,बिरजू ने
कहा .......
मुम्बई आये थे काम की तलाश में ......और किस जंजाल में फंस गये ,पूरी रात
इसी विचार में गुजर गयी ......सुबह आँख खुली तो बंगाली औरत चाय ले कर खड़ी थी ,अब मैं
हर किसी से डर लगने लगा .....कमरे में बिरजू भी नहीं था ,बंगाली औरत मेरे डर को भांप गयी
.......मुझे चाय देते हुए .....पूछा उसने ....इतना डरा हुआ क्यों है तू ?
......मैंने डरते हुए कहा ...मुझे यहाँ से भेज दो ......गाँव जावो गे ....?
.....मैंने डरते हुए ...हाँ कहा ...
....क्या हो गया ... बोलो ...डरो मत ..मैं कोई रास्ता निकालूंगी ।
.....मुझ में हिम्मत आयी ...मैंने सब कुछ सच -सच बता दिया ... । यह सब सुन कर ,वह औरत
सोचने लगी ......फिर कुछ सोच के बोली ....कोई तुम्हे अपने गैंग में शामिल करना चाहता है ।
....अब तो एक ही रास्ता है ....तुम दोनों को मुम्बई छोड़ के जाना होगा ,वरना तुमको किसी बुरी लाईन
में फंसना पड़ेगा ,और वही करना पड़ेगा जो वह लोग चाहेंगे ....
मैंने पूछा .....पर यह लोग कौन हैं ?
इसका जवाब भी उस बंगाली औरत के पास नहीं था ......
कुछ देर तक वह सोचती रही ....और एक झटके में उठी ....चली गयी । मैं भी कुछ ,समझ नहीं पाया
...फिर मैं कमरे में अकेला रह गया ...तभी एक लडका गली का आया ,और मुझे एक मोबाईल दे कर
चला गया ...मैं कुछ पूछता ....तब तक वह भाग गया .....
मोबाईल देख ही रहा था ....तभी उसकी घंटी बज उठी .....मैं कुछ समझ ही नहीं पाया ...फोन मिलते
ही घंटी बज उठी ,.....फिल्मों की तरह सब हो रहा था ,और मेरे चेहरे का रंग भी उसी तरह बदलने
लगा .... डर के फोन को उठाया .....हेलो बोला था की उधर से ,किसी औरत ने मेरा नाम ले कर ,कहा
.....कैसी तवियत है राजेश ?.....मैं कुछ बोलूँ....इससे पहले वह फिर से बोल पड़ी ,राजेश मैं तुम्हारे
एहसानों को भूल नहीं सकती .....मैंने तुम्हारे लिए एक घर खरीदा है ....उसमें तुम आ कर रह सकते
हो ...आज रात में तुम्हारे पास एक गाड़ी आएगी ,तुम्हे लेने के लिए ....आ जाना वरना जबर्दस्ती
उठवा लुंगी ..... यह सब सुन कर मैं डर गया .....सच में मैं किसी गैंग में फंस गया । अब निकलना
मुश्किल ही है । अब जैसा वह लो कह रहें हैं ,मान लो .....यह सब कुछ मैंने अपने मन से कहा ,नहीं तो
....और किसी बवाल में फंस सकता हूँ ....
पूरा दिन ...गुज़र गया भूख भी मर चुकी थी , मैं किस राह पे जा रहा हूँ ? मैं जीवन में क्या
करने जा रहा हूँ ...क्या मैं गुंडा बदमाश बनने जा रहा हूँ ?.......फिर एक सवाल मेरे मन में उभरने
लगा ....क्या गुंडे बदमाश इसी तरह लोगों को बनाया जाता है ?
वह बंगाली औरत भी मेरा हाल पूछने नहीं आयी ...... शायद वह भी डर गयी ।
बिरजू भी घर ...रात में नहीं आया ......कहाँ है वह ,क्यों अभी तक नहीं आया ?
...मेरी हालत वैसी ही थी ,जैसे किसी बकरे को हलाल करने के लिए ले जा रहें हो ,और वह बकरा
मैं हूँ ....बकरा तो जानवर होता है , मैं तो इंसान हूँ ....मैं भाग भी नहीं सकता ...बस चुप चाप ,देखते
जावो ,किस तरह तुम्हारे साथ पेश आते हैं ,और फिर मुझमें ऐसा क्या मिल गया उन्हें ?
मैंने भी जी को कड़ा कर लिया , एक कहावत मेरी माँ कहा करती थी, जब सर दिया ओखली में
तो मूसलों का क्या डर ,यही सोच लिया मैंने भी ....अब डरना क्या ,देखा जाएगा जो होगा ।
रात करीब एक बजे ,मेरे पास एक आदमी आया और मुझे चलने को कहने लगा .....मैंने उस आदमी
को ध्यान से देखा ...और अपना कुछ समान लिया ,सत्तू की पोटली भी ली ,और उस आदमी के साथ चल
दिया .......
Sunday, March 21, 2010
सत्तू
......मुझे ठीक होते - होते चार दिन लग गया ,बिरजू मेरा बहुत ख्याल रखता ।
मेरे खाने पीने का पूरा ध्यान रखता ,सुबह वह खाना बना कर , खुद खा कर
और मेरे लिए रख कर चला जाता । मैं अपनी तीन दिन की बेहोशी को अभी
तक समझ नहीं पा रहा हूँ । क्या मैं सच में बेहोश था , क्या मेरे साथ कोई खेल
हो रहा है .... ?
वैसे इस शहर से ,अब तो डर लगने लगा ...पैसा तो है ...इंसानियत भी है
पर एक मशीन की तरह जिन्दगी है .....मशीन की तरह जीना है तो .....यहाँ रह लो
......खाने को जरुर मिलेगा ....पर शौचालय नहीं मिलेगा ,सडक के फूटपाथ ,पर सुबह लोग
बैठे मिल जायेगें । सोने की जगह भी नहीं मिलती ....परिवार से दूर रहो .... ।
हर कोई किसी न किसी को फंसाना चाहता है .... कैसे फंसा रहा , आप को पता नहीं
चलेगा ,कुछ महीनो बाद आप जानेगें .....आप एक मकड़ी के जाल में फंस चुके हैं ,अब
निकलना मुश्किल है .....जैसे मुझे ज़ेबा जी फंसाना चाहती हैं ,बार बाला मुझे बंधुआ मजदूर बनाना
चाहती हैं .....बंगाली चाय बेचने वाली ....रिश्ते बना कर ,मुझे लूटना चाहती है ..... ।
मैं सब जानते हुए भी .... उसमें भी अच्छाई देख रहा हूँ ....यह मेरी मजबूरी है ...पैर
जमाने के लिए हम चुप रहते हैं ...अपने आप को हम ठगने देते हैं ...यही सब सोचते हुए ,मेरा
समय बीतता । अब फिर से नौकरी की तलाश होगी .....खाली एक दिन नहीं रह सकते ...किसी
पे भार बनना मेरी फितरत नहीं है .......
वह बंगाली चाय बेचने वाली औरत ,मेरी खोली में आयी ....मेरे लिए जूस ले कर.......
......और आते ही डांटने लगी ..... समझाने लगी ....रात को देख का चलाने की बात ...यह जूस पीओ
यह रिक्शा चलाने का धंदा - बंद करो ....कोई और काम खोजो ....न मिले तो मेरे को बताओ ...मैं
देखूं ....किधर - किधर चोट लगी है ?मैंने कमर की तरफ बताया ...वो बेझिजक हो कर देखने
लगी ...तुझे तो अंदर की चोट लगी है ....मेरे पास मालिश का तेल है ,शाम में मालिश कर दूंगी ...
सब ठीक हो जाएगा ...और अब रिक्शा मत चलाओ ? ......... यह जूश पी कर ख़तम कर ,
.....यहकह कर वह चल दी ......मैं इसके बारे में सोचने लगा ....कमाल की औरत है ,इतना हक़ तो
मेरी माँ ने मुझ पे नहीं दिखाया अभी तक .....
मेरा मोबाईल भी खो चुका था .....माँ से बात करने मन कर रहा था ...बिरजू ने कहीं मेरे
इस एक्सिडेंट के बारे में बता न दिया हो ...वरना वह सुन कर मर जायेगी ...बिरजू से मुझे बात करनी
पड़ेगी ....यही सब सोच रहा था ,तभी मेरी झोपड़ी में भंडारी साहब ,जेबा जी के मैनेजर आये ।
उन्हें देख कर सकते में आ गया ....उन्होंने मुझे कुछ रूपये दिया ....और हवाई जहाज का
टिकट दिया .....कहा यह सब जेबा जी ने दिया है ....और कहा, कुछ दिन के लिए घर चले जाओ .....
फिर जब मन कहे तब आ जाना ,और जेबा जी के पास ही आ कर काम करना ....ऐसा उन्होंने कहा है ।
इतना कह कर वो चले गये .....मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,यह सब क्या है ?
मैं इतना खाश कैसे हो गया ?....जिसके लिए प्लेन का टिकट आ रहा है ....वैगर बात के पैसे दिए जा
रहें हैं ,कोई तो बात है ?........
मैं अपने से बात करता रहा ......कुछ देर बाद एक सादी ड्रेस में पुलिस का आदमी आया
मुझसे पूछने लगा .......क्या ..क्या पूछा जिसका जवाब मेरे पास नहीं था .....मुझे किसी गैंग से मेरा
नाम जोड़ दिया ...पिस्तौल की बात इन्हें कैसे मालूम हो गयी ...?मैं चुप रहा ,सब बातों से मैं अनभिज्ञ
रहा ....
मेरे खाने पीने का पूरा ध्यान रखता ,सुबह वह खाना बना कर , खुद खा कर
और मेरे लिए रख कर चला जाता । मैं अपनी तीन दिन की बेहोशी को अभी
तक समझ नहीं पा रहा हूँ । क्या मैं सच में बेहोश था , क्या मेरे साथ कोई खेल
हो रहा है .... ?
वैसे इस शहर से ,अब तो डर लगने लगा ...पैसा तो है ...इंसानियत भी है
पर एक मशीन की तरह जिन्दगी है .....मशीन की तरह जीना है तो .....यहाँ रह लो
......खाने को जरुर मिलेगा ....पर शौचालय नहीं मिलेगा ,सडक के फूटपाथ ,पर सुबह लोग
बैठे मिल जायेगें । सोने की जगह भी नहीं मिलती ....परिवार से दूर रहो .... ।
हर कोई किसी न किसी को फंसाना चाहता है .... कैसे फंसा रहा , आप को पता नहीं
चलेगा ,कुछ महीनो बाद आप जानेगें .....आप एक मकड़ी के जाल में फंस चुके हैं ,अब
निकलना मुश्किल है .....जैसे मुझे ज़ेबा जी फंसाना चाहती हैं ,बार बाला मुझे बंधुआ मजदूर बनाना
चाहती हैं .....बंगाली चाय बेचने वाली ....रिश्ते बना कर ,मुझे लूटना चाहती है ..... ।
मैं सब जानते हुए भी .... उसमें भी अच्छाई देख रहा हूँ ....यह मेरी मजबूरी है ...पैर
जमाने के लिए हम चुप रहते हैं ...अपने आप को हम ठगने देते हैं ...यही सब सोचते हुए ,मेरा
समय बीतता । अब फिर से नौकरी की तलाश होगी .....खाली एक दिन नहीं रह सकते ...किसी
पे भार बनना मेरी फितरत नहीं है .......
वह बंगाली चाय बेचने वाली औरत ,मेरी खोली में आयी ....मेरे लिए जूस ले कर.......
......और आते ही डांटने लगी ..... समझाने लगी ....रात को देख का चलाने की बात ...यह जूस पीओ
यह रिक्शा चलाने का धंदा - बंद करो ....कोई और काम खोजो ....न मिले तो मेरे को बताओ ...मैं
देखूं ....किधर - किधर चोट लगी है ?मैंने कमर की तरफ बताया ...वो बेझिजक हो कर देखने
लगी ...तुझे तो अंदर की चोट लगी है ....मेरे पास मालिश का तेल है ,शाम में मालिश कर दूंगी ...
सब ठीक हो जाएगा ...और अब रिक्शा मत चलाओ ? ......... यह जूश पी कर ख़तम कर ,
.....यहकह कर वह चल दी ......मैं इसके बारे में सोचने लगा ....कमाल की औरत है ,इतना हक़ तो
मेरी माँ ने मुझ पे नहीं दिखाया अभी तक .....
मेरा मोबाईल भी खो चुका था .....माँ से बात करने मन कर रहा था ...बिरजू ने कहीं मेरे
इस एक्सिडेंट के बारे में बता न दिया हो ...वरना वह सुन कर मर जायेगी ...बिरजू से मुझे बात करनी
पड़ेगी ....यही सब सोच रहा था ,तभी मेरी झोपड़ी में भंडारी साहब ,जेबा जी के मैनेजर आये ।
उन्हें देख कर सकते में आ गया ....उन्होंने मुझे कुछ रूपये दिया ....और हवाई जहाज का
टिकट दिया .....कहा यह सब जेबा जी ने दिया है ....और कहा, कुछ दिन के लिए घर चले जाओ .....
फिर जब मन कहे तब आ जाना ,और जेबा जी के पास ही आ कर काम करना ....ऐसा उन्होंने कहा है ।
इतना कह कर वो चले गये .....मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,यह सब क्या है ?
मैं इतना खाश कैसे हो गया ?....जिसके लिए प्लेन का टिकट आ रहा है ....वैगर बात के पैसे दिए जा
रहें हैं ,कोई तो बात है ?........
मैं अपने से बात करता रहा ......कुछ देर बाद एक सादी ड्रेस में पुलिस का आदमी आया
मुझसे पूछने लगा .......क्या ..क्या पूछा जिसका जवाब मेरे पास नहीं था .....मुझे किसी गैंग से मेरा
नाम जोड़ दिया ...पिस्तौल की बात इन्हें कैसे मालूम हो गयी ...?मैं चुप रहा ,सब बातों से मैं अनभिज्ञ
रहा ....
Thursday, March 18, 2010
सत्तू
......बेला जी की बिल्डिंग के पास खड़े -खड़े ग्यारह बज गया ,लगा अब वह
नहीं आयेंगी .....या चली गयी होंगी ?कुछ देर बाद एक सवारी मिली उसको
फिल्म सिटी जाना था ....,एक पल को सोचा , ..क्या करूं ... जाऊं ....या ..मना
कर दूँ ......लेकिन ..यह कब तक ....... । तभी पैसेंजर बोल पड़ा ,....वो भाई..चलो गे
क्या सोच रहे हो ...डबल पैसा ले लेना ! ....कुछ सोच के कहा , बैठो साहब .....और मैं
रिक्शा ले कर चल दिया ।
फिल्म सिटी के अंदर चलने को कहा पैसेंजर ने ,मैं अंदर पहुंचा .....उस पैसेंजर
ने किसी से बात की ....फिर मुझसे कहने लगा .....हेली पैड चलो ....यह जगह पहाड़ी के बिलकुल
टाप पे है ....ऊपर पहुँचने पे पूरा मुम्बई दिखता है ....जैसे चारो तरफ दिवाली मनाई जा रही है
.....एक सेट जंगल का लगा था ....जिसमे एक पुरानी हबेली बनी है ...वहीं पे शूटिंग चल रही थी
पैसेंजर ने मुझे पैसे दिए ....उसने मीटर से डबल ही पैसा दिया ...फिर मुझसे कहा यहाँ थोड़ी देर
इन्तजार कर लो शायद कोई पैसेंजर मिल जाय ? ....कुछ सोच कर रिक्शा वहीं खड़ा कर के ....
शूटिंग देखने लगा ....यह शूटिंग वाले लोग भी बहुत कमाल के होते हैं ....जब तक शूटिंग चलती
कमाल का काम करते हैं ...जो साहब आये थे ,मेरे साथ, वह सहायक निर्देशक थे ...उनकी वजह से मुझे
चाय भी पीने को मिल गयी ....और वहीं यूनिट के साथ खड़ा हो कर शूटिंग देखने लगा .....
अभी कुछ ही देर हुई थी ,तभी एक स्पाट बॉय आया और मुझे गोरेगावं तक चलने को कहने लगा
......मैंने उसे रिक्शे में बैठाया और चल दिया ....जब हम लोग हेली पैड से उतर रहे थे ...तभी मैंने
हीरो खान की गाड़ी खडी देखी ...तभी स्पाट बॉय बोल पड़ा ....हमारी लाईन जितनी अच्छी है ,
उतनी ही खराब .....अब इन खान साहब को देखो .....इनको रोज एक नई लडकी चाहिए ...अब भी
किसी लडकी की इज्जत से खेल रहेहोंगे .... मैं तभी बोल पड़ा ... तुम लोग कुछ नहीं कहते .....
क्या कहें ? हीरो है ....इनका ही जमाना है ,सब कुछ करने का इनको हक़ है ....वैसे एक बात और
कहूँ ...लडकियाँ भी वैसी हैं ....अब जेबा जी को देख लीजिये ....उनको कोई तिरछी नज़र से
नहीं देख सकता ...यह सुन कर मैं ,मन ही मन खुश हो गया ।
मेरा रिक्शा ,फिल्म सिटी के गेट के पास ही पहुंचा था ....तभी तेजी से ,आती हुई कर
ने मुझे टक्कर मारा ....मेरा रिक्शा उलट गया .....उसके बाद मुझे याद ही नहीं ....जब आँख खुली
मैं हास्पिटल में था ....सर पैर में पट्टी बंधी थी ......मेरे पास डाक्टर आया और मेरा पता पूछने
लगा ....मैंने सब कुछ बताया .....डाक्टर से ही पता चला ....वह स्पाट बॉय ...एक्सिडेंट में नहीं बचा
.......मैं सोचने लगा .....इंसान की क्या कीमत है .....? पुलिस आयी ...मेरा बयान लेने ...मुझसे
एक्सिडेंट के बारे में पूछने लगी .....मैंने कहा ....ढाल थी ,मुझसे ब्रेक नहीं लगा ...और एक्सिडेंट
हो गया .... । मुझे फिर नीद आ गयी ,और शाम पाँच बजे आँख खुली ......अब मैं अस्पताल में नहीं
था ....और न ही अपनी झोपडी में ....कहाँ हूँ ....यही समझ में नहीं आ रहा था .।
एक नौकर ...मुझे खाना दे गया ....एक डाक्टर आया मुझे चेक कर गया ,और कुछ
दवाई खाने को दिया ...मैंने डाक्टर से पूछा मैं कहाँ हूँ ? डाक्टर ने मुझे चेक करते हुए कहा ,अपने घर
में .....यह सुन कर ...मैं डर गया .....कहीं मैं ....मर तो नहीं गया .....डाक्टर चला गया ,मैं अपने आप
से बात करने लगा ...पास रखे शीशे में अपने आप को देखा .....मैं वही हूँ जिसके रिक्शे का एक्सिडेंट
हुआ था । पास ही बाथरूम था ...मैं बाथरूम में गया ....मेरे पैर में चोट नहीं लगी थी ,चलने में मुझे
तकलीफ नहीं थी .......मैं सोचने लगा ,यह घर किसका है ? मुझे यहाँ क्यों रखा गया है ?
......मैं यहाँ से भाग जाना चाहता था ,,लेकिन बाहर जाने का दरवाज़ा बाहर से बंद था ,
मैं कैद में था ...किसने मुझे कैद किया है मुझे नहीं मालूम ,क्यों किया यह भी पता नहीं ।
क्या चाहता है मुझसे ? सुबह का इन्तजार करने लगा ,बिस्तर पे जा कर लेट गया ,बिरजू भी
मुझे खोज रहा होगा ....
...सुबह जब आँख खुली ...मैं उसी कमरे में था ,एक नर्श नुमा लडकी आयी , मुझे चेक
करने लगी ...मैंने उससे पूछा ,मैं कहाँ हूँ ?.....सर आप अपने घर में है ,यह सुन कर मुझे गुस्सा
आ गया ......तुम लोगो ने झूठ बोलने की कसम खा ली है क्या ...सच क्यों नहीं बताते ....सच कह
रही हूँ आप अपने घर में हैं .....चलो यहाँ से जाओ ...बात -बात में झूठ बोल रहे हो .....मैंने चिल्ला
कर कहा .....यह सुन कर वह भाग गयी ....फिर मैं बाहर निकलना चाहा ...पर दरवाजा बाहर
से बंद है ......सच कह रहा हूँ ,मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ,कहीं मैं किसी चक्कर में तो नहीं
फंस गया हूँ । मैं यहाँ से ,निकलूंगा कैसे ....कहीं उस पिस्तौल और पैसे का चक्कर तो नहीं है ...?
........किस खेल में मैं फंस गया हूँ ....एक तो मर ही गया है ....और मै बचा हूँ ,कोई गैंग तो नहीं
है .....पता नहीं क्यों ....माँ की याद बहुत आने लगी ...बस मन करने लगा कैसे भी कर के मैं अपनी माँ
के पास पहुँच जाऊं ...... ।
अब एक ही रास्ता है ,यहाँ से कैसे भी भाग जाऊं ......उसके लिए मैं रास्ता खोजने लगा
रात का इंतजार करने लगा ......अब मैं इस तरह रहने लगा जैसे यह मेरा ही घर हो ..... ।
...शाम को एक डाक्टर आया ,मुझे चेक किया .....फिर उसने मुझे एक इंजेक्शन दिया ...थोड़ी देर
बाद मैं सो गया ......
सुबह जब मेरी आँख खुली .....मैं यह देख कर दंग हो गया ...मैं अपनी झोपडी ,कपास बाडी
में था ,मेरे बगल बिरजू खड़ा था ....मैं उसे देख कर ...सकते में आ गया ...मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था
....बिरजू से कुछ पूछता ,वह खुद ही कहने लगा .....आज तुम्हे होश आया है तीन दिन बाद .....
मैं था कहाँ ? तीन दिन ...! अस्पताल में .....यह तो जेबा जी की मेहरबानी थी ,जो समय पे तुम्हारा
इलाज हो गया ......मुझे सब झूठ लगने लगा ,बिरजू भी मुझसे झूठ बोलने लगा है .....क्या वजह ,
नहीं मालूम .....या यह भी हो सकता है ....मैं सच में तीन दिन बेहोश ही रहा हूँ ......
.................मैंने सोच लिया है ....अब इस मुम्बई शहर में नहीं रहूँगा ...बस ठीक हो जाऊं एक बार
......जारी ...........
नहीं आयेंगी .....या चली गयी होंगी ?कुछ देर बाद एक सवारी मिली उसको
फिल्म सिटी जाना था ....,एक पल को सोचा , ..क्या करूं ... जाऊं ....या ..मना
कर दूँ ......लेकिन ..यह कब तक ....... । तभी पैसेंजर बोल पड़ा ,....वो भाई..चलो गे
क्या सोच रहे हो ...डबल पैसा ले लेना ! ....कुछ सोच के कहा , बैठो साहब .....और मैं
रिक्शा ले कर चल दिया ।
फिल्म सिटी के अंदर चलने को कहा पैसेंजर ने ,मैं अंदर पहुंचा .....उस पैसेंजर
ने किसी से बात की ....फिर मुझसे कहने लगा .....हेली पैड चलो ....यह जगह पहाड़ी के बिलकुल
टाप पे है ....ऊपर पहुँचने पे पूरा मुम्बई दिखता है ....जैसे चारो तरफ दिवाली मनाई जा रही है
.....एक सेट जंगल का लगा था ....जिसमे एक पुरानी हबेली बनी है ...वहीं पे शूटिंग चल रही थी
पैसेंजर ने मुझे पैसे दिए ....उसने मीटर से डबल ही पैसा दिया ...फिर मुझसे कहा यहाँ थोड़ी देर
इन्तजार कर लो शायद कोई पैसेंजर मिल जाय ? ....कुछ सोच कर रिक्शा वहीं खड़ा कर के ....
शूटिंग देखने लगा ....यह शूटिंग वाले लोग भी बहुत कमाल के होते हैं ....जब तक शूटिंग चलती
कमाल का काम करते हैं ...जो साहब आये थे ,मेरे साथ, वह सहायक निर्देशक थे ...उनकी वजह से मुझे
चाय भी पीने को मिल गयी ....और वहीं यूनिट के साथ खड़ा हो कर शूटिंग देखने लगा .....
अभी कुछ ही देर हुई थी ,तभी एक स्पाट बॉय आया और मुझे गोरेगावं तक चलने को कहने लगा
......मैंने उसे रिक्शे में बैठाया और चल दिया ....जब हम लोग हेली पैड से उतर रहे थे ...तभी मैंने
हीरो खान की गाड़ी खडी देखी ...तभी स्पाट बॉय बोल पड़ा ....हमारी लाईन जितनी अच्छी है ,
उतनी ही खराब .....अब इन खान साहब को देखो .....इनको रोज एक नई लडकी चाहिए ...अब भी
किसी लडकी की इज्जत से खेल रहेहोंगे .... मैं तभी बोल पड़ा ... तुम लोग कुछ नहीं कहते .....
क्या कहें ? हीरो है ....इनका ही जमाना है ,सब कुछ करने का इनको हक़ है ....वैसे एक बात और
कहूँ ...लडकियाँ भी वैसी हैं ....अब जेबा जी को देख लीजिये ....उनको कोई तिरछी नज़र से
नहीं देख सकता ...यह सुन कर मैं ,मन ही मन खुश हो गया ।
मेरा रिक्शा ,फिल्म सिटी के गेट के पास ही पहुंचा था ....तभी तेजी से ,आती हुई कर
ने मुझे टक्कर मारा ....मेरा रिक्शा उलट गया .....उसके बाद मुझे याद ही नहीं ....जब आँख खुली
मैं हास्पिटल में था ....सर पैर में पट्टी बंधी थी ......मेरे पास डाक्टर आया और मेरा पता पूछने
लगा ....मैंने सब कुछ बताया .....डाक्टर से ही पता चला ....वह स्पाट बॉय ...एक्सिडेंट में नहीं बचा
.......मैं सोचने लगा .....इंसान की क्या कीमत है .....? पुलिस आयी ...मेरा बयान लेने ...मुझसे
एक्सिडेंट के बारे में पूछने लगी .....मैंने कहा ....ढाल थी ,मुझसे ब्रेक नहीं लगा ...और एक्सिडेंट
हो गया .... । मुझे फिर नीद आ गयी ,और शाम पाँच बजे आँख खुली ......अब मैं अस्पताल में नहीं
था ....और न ही अपनी झोपडी में ....कहाँ हूँ ....यही समझ में नहीं आ रहा था .।
एक नौकर ...मुझे खाना दे गया ....एक डाक्टर आया मुझे चेक कर गया ,और कुछ
दवाई खाने को दिया ...मैंने डाक्टर से पूछा मैं कहाँ हूँ ? डाक्टर ने मुझे चेक करते हुए कहा ,अपने घर
में .....यह सुन कर ...मैं डर गया .....कहीं मैं ....मर तो नहीं गया .....डाक्टर चला गया ,मैं अपने आप
से बात करने लगा ...पास रखे शीशे में अपने आप को देखा .....मैं वही हूँ जिसके रिक्शे का एक्सिडेंट
हुआ था । पास ही बाथरूम था ...मैं बाथरूम में गया ....मेरे पैर में चोट नहीं लगी थी ,चलने में मुझे
तकलीफ नहीं थी .......मैं सोचने लगा ,यह घर किसका है ? मुझे यहाँ क्यों रखा गया है ?
......मैं यहाँ से भाग जाना चाहता था ,,लेकिन बाहर जाने का दरवाज़ा बाहर से बंद था ,
मैं कैद में था ...किसने मुझे कैद किया है मुझे नहीं मालूम ,क्यों किया यह भी पता नहीं ।
क्या चाहता है मुझसे ? सुबह का इन्तजार करने लगा ,बिस्तर पे जा कर लेट गया ,बिरजू भी
मुझे खोज रहा होगा ....
...सुबह जब आँख खुली ...मैं उसी कमरे में था ,एक नर्श नुमा लडकी आयी , मुझे चेक
करने लगी ...मैंने उससे पूछा ,मैं कहाँ हूँ ?.....सर आप अपने घर में है ,यह सुन कर मुझे गुस्सा
आ गया ......तुम लोगो ने झूठ बोलने की कसम खा ली है क्या ...सच क्यों नहीं बताते ....सच कह
रही हूँ आप अपने घर में हैं .....चलो यहाँ से जाओ ...बात -बात में झूठ बोल रहे हो .....मैंने चिल्ला
कर कहा .....यह सुन कर वह भाग गयी ....फिर मैं बाहर निकलना चाहा ...पर दरवाजा बाहर
से बंद है ......सच कह रहा हूँ ,मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ,कहीं मैं किसी चक्कर में तो नहीं
फंस गया हूँ । मैं यहाँ से ,निकलूंगा कैसे ....कहीं उस पिस्तौल और पैसे का चक्कर तो नहीं है ...?
........किस खेल में मैं फंस गया हूँ ....एक तो मर ही गया है ....और मै बचा हूँ ,कोई गैंग तो नहीं
है .....पता नहीं क्यों ....माँ की याद बहुत आने लगी ...बस मन करने लगा कैसे भी कर के मैं अपनी माँ
के पास पहुँच जाऊं ...... ।
अब एक ही रास्ता है ,यहाँ से कैसे भी भाग जाऊं ......उसके लिए मैं रास्ता खोजने लगा
रात का इंतजार करने लगा ......अब मैं इस तरह रहने लगा जैसे यह मेरा ही घर हो ..... ।
...शाम को एक डाक्टर आया ,मुझे चेक किया .....फिर उसने मुझे एक इंजेक्शन दिया ...थोड़ी देर
बाद मैं सो गया ......
सुबह जब मेरी आँख खुली .....मैं यह देख कर दंग हो गया ...मैं अपनी झोपडी ,कपास बाडी
में था ,मेरे बगल बिरजू खड़ा था ....मैं उसे देख कर ...सकते में आ गया ...मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था
....बिरजू से कुछ पूछता ,वह खुद ही कहने लगा .....आज तुम्हे होश आया है तीन दिन बाद .....
मैं था कहाँ ? तीन दिन ...! अस्पताल में .....यह तो जेबा जी की मेहरबानी थी ,जो समय पे तुम्हारा
इलाज हो गया ......मुझे सब झूठ लगने लगा ,बिरजू भी मुझसे झूठ बोलने लगा है .....क्या वजह ,
नहीं मालूम .....या यह भी हो सकता है ....मैं सच में तीन दिन बेहोश ही रहा हूँ ......
.................मैंने सोच लिया है ....अब इस मुम्बई शहर में नहीं रहूँगा ...बस ठीक हो जाऊं एक बार
......जारी ...........
Wednesday, March 17, 2010
सत्तू
.....मैं अपने आप से , बार -बार पूछने लगा ,जो कुछ मैं कर रहा हूँ
इसका अंजाम क्या होगा ?........क्या मैं गुनाह की चादर ओढ़ रहा हूँ ?
इसी उधेड़ -बुन में बैठा रहा ........कुछ सोच के, नोट जो अभी निकाले थे ,
दुबारा उसी झोले में रख दिया ......और आँखे बंद कर के सोने की कोशिश
करने लगा ,पर नीद का कोसों तक पता नहीं था । फिर सोचा मैं इस झोले
को किसी मंदिर में रख देता हूँ .....फिर ख्याल आया ,काली मंदिर जाउंगा
वहीं दान पेटी में डाल दूंगा ...यही सोच के सोने कोशिश की ....और सच कहता हूँ
कब आँख लग गयी ,पता ही नहीं चला ।
शाम को करीब छे बजे आँख खुली .....दोपहर को खाना भी नहीं खाया था ।
भूख भी ,जोरो से लगी थी ......और मन भी कहीं न जाने का कर रहा था । तभी याद आया
माँ का दिया हुआ ,सत्तू का ख्याल आया ...पास ही टंगे झोले को उठाया ,एक कपडे की पोटली
में था ,खोल के देखा लेकिन ,अभी ख़राब नहीं हुआ था । एक थाली ली ,उसमें थोड़ा सा लिया ,
पानी मिला कर सान लिया ,थोड़ा सा नमक डाल लिया ,एक हरी मिर्च ली और खाना शुरू
किया .....बहुत दिनों बाद माँ के हाथ का बना कुछ खा रहा था ,सच कहता हूँ ...माँ के हाथ
में अमृत होता है ,खूब मन से खाया ,बाकी सत्तू उसी कपडे में बांध के रख दिया । फिर कभी
खाऊंगा .....तभी ख्याल आया ,जेबा जी को भी सत्तू खिलाने का वादा किया था ,नहीं खिला
पाया उन्हें ,अब तो साथ भी छूट गया ।
रात आठ बजे मैं काली मंदिर पहुंचा ,पहले मैंने ,एक काली माँ की फोटो खरीदी ,मेरे
हाथ में झोला था ,उसे भी दान पेटी में डालना था ,लेकिन दान पेटी का मुहं बहुत छोटा था ,
नोट तो चला गया ,लेकिन पिस्तौल का क्या करूं ....वह कहाँ रखूं ? यही सोचता हुआ ,मंदिर से
बाहर आ गया ......पास ही एक नाला बह रहा था ,इतना गंदा पानी था उसका , गंदगी को गंदगी
में फेंक दिया .....इसके बाद इतना हल्का हो गया ,जैसे कोई भार मैं ढो रहा था अभी तक ।
मंदिर में दुबारा गया माँ के सामने खड़ा हो ,माफ़ी मांगी और कहा ....आज के बाद कभी भी
लालच नहीं करूंगा ....माँ कल से आज तक ठीक से सो नहीं पाया ...अब ..मन इतना निश्चिंत था
जिसको मैं बयान नहीं कर सकता ...जैसे मैं मुड़ा मेरी नजरे किसी खूबसूरत लडकी से जा मिली
वो भी ...मेरी आँखों में झांक रही थी .....दुसरे पल हम दोनों एक दुसरे को पहचान गये .....यह जेबा थी
मैं चुप -चाप वहाँसे चल दिया । फिर मैंने अपने आप से पूछा ...जेबा जी मंदिर में ?
तेजी से मैं अपने ऑटो के पास आया .....और सीधा यारी रोड की तरफ चल दिया ,रास्ते में कई
पैसेंजर मिले ,पर मैंने किसी को नहीं लिया .....पहले मैं अपनी खोली की तरफ मुड़ा ,काली माँ की फोटो
मैंने चाय वाली बंगाली औरत को दिया ....वह मेरे इस अंदाज से बहुत खुश हुई ...और फिर बोल पड़ी
इतनी जल्दी नहीं थी ....फिर भी तू ले आया ....खूब भालो कह के , फिर माँ जी को उसने प्रणाम किया॥
और हां ....सुन कोई दो आदमी खोजने आये थे ....मैं एक पल को डर गया .....
मैं कुछ बोला नहीं ...और वहाँ से निकल लिया ....मेरे मन में यही ख्याल आ रहा था ..
कौन मुझे खोजने आया था ? रिक्शा ले कर यारी रोड पहुंचा ....बेला जी की बिल्डिंग के सामने लगा
दिया और इन्तजार करने लगा बार बाला का ......
इसका अंजाम क्या होगा ?........क्या मैं गुनाह की चादर ओढ़ रहा हूँ ?
इसी उधेड़ -बुन में बैठा रहा ........कुछ सोच के, नोट जो अभी निकाले थे ,
दुबारा उसी झोले में रख दिया ......और आँखे बंद कर के सोने की कोशिश
करने लगा ,पर नीद का कोसों तक पता नहीं था । फिर सोचा मैं इस झोले
को किसी मंदिर में रख देता हूँ .....फिर ख्याल आया ,काली मंदिर जाउंगा
वहीं दान पेटी में डाल दूंगा ...यही सोच के सोने कोशिश की ....और सच कहता हूँ
कब आँख लग गयी ,पता ही नहीं चला ।
शाम को करीब छे बजे आँख खुली .....दोपहर को खाना भी नहीं खाया था ।
भूख भी ,जोरो से लगी थी ......और मन भी कहीं न जाने का कर रहा था । तभी याद आया
माँ का दिया हुआ ,सत्तू का ख्याल आया ...पास ही टंगे झोले को उठाया ,एक कपडे की पोटली
में था ,खोल के देखा लेकिन ,अभी ख़राब नहीं हुआ था । एक थाली ली ,उसमें थोड़ा सा लिया ,
पानी मिला कर सान लिया ,थोड़ा सा नमक डाल लिया ,एक हरी मिर्च ली और खाना शुरू
किया .....बहुत दिनों बाद माँ के हाथ का बना कुछ खा रहा था ,सच कहता हूँ ...माँ के हाथ
में अमृत होता है ,खूब मन से खाया ,बाकी सत्तू उसी कपडे में बांध के रख दिया । फिर कभी
खाऊंगा .....तभी ख्याल आया ,जेबा जी को भी सत्तू खिलाने का वादा किया था ,नहीं खिला
पाया उन्हें ,अब तो साथ भी छूट गया ।
रात आठ बजे मैं काली मंदिर पहुंचा ,पहले मैंने ,एक काली माँ की फोटो खरीदी ,मेरे
हाथ में झोला था ,उसे भी दान पेटी में डालना था ,लेकिन दान पेटी का मुहं बहुत छोटा था ,
नोट तो चला गया ,लेकिन पिस्तौल का क्या करूं ....वह कहाँ रखूं ? यही सोचता हुआ ,मंदिर से
बाहर आ गया ......पास ही एक नाला बह रहा था ,इतना गंदा पानी था उसका , गंदगी को गंदगी
में फेंक दिया .....इसके बाद इतना हल्का हो गया ,जैसे कोई भार मैं ढो रहा था अभी तक ।
मंदिर में दुबारा गया माँ के सामने खड़ा हो ,माफ़ी मांगी और कहा ....आज के बाद कभी भी
लालच नहीं करूंगा ....माँ कल से आज तक ठीक से सो नहीं पाया ...अब ..मन इतना निश्चिंत था
जिसको मैं बयान नहीं कर सकता ...जैसे मैं मुड़ा मेरी नजरे किसी खूबसूरत लडकी से जा मिली
वो भी ...मेरी आँखों में झांक रही थी .....दुसरे पल हम दोनों एक दुसरे को पहचान गये .....यह जेबा थी
मैं चुप -चाप वहाँसे चल दिया । फिर मैंने अपने आप से पूछा ...जेबा जी मंदिर में ?
तेजी से मैं अपने ऑटो के पास आया .....और सीधा यारी रोड की तरफ चल दिया ,रास्ते में कई
पैसेंजर मिले ,पर मैंने किसी को नहीं लिया .....पहले मैं अपनी खोली की तरफ मुड़ा ,काली माँ की फोटो
मैंने चाय वाली बंगाली औरत को दिया ....वह मेरे इस अंदाज से बहुत खुश हुई ...और फिर बोल पड़ी
इतनी जल्दी नहीं थी ....फिर भी तू ले आया ....खूब भालो कह के , फिर माँ जी को उसने प्रणाम किया॥
और हां ....सुन कोई दो आदमी खोजने आये थे ....मैं एक पल को डर गया .....
मैं कुछ बोला नहीं ...और वहाँ से निकल लिया ....मेरे मन में यही ख्याल आ रहा था ..
कौन मुझे खोजने आया था ? रिक्शा ले कर यारी रोड पहुंचा ....बेला जी की बिल्डिंग के सामने लगा
दिया और इन्तजार करने लगा बार बाला का ......
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