Thursday, February 25, 2010

सत्तू

करीब महीना बीत गया काम करते हुए ,ज़ेबाजी की वज़ह से , ......इस घर का खास आदमी हो गया

.....मुझे यहीं बंगले में ही रहने को कह दिया गया था । मैंने बिरजू से माफ़ी मांग लिया था ,समझा

दिया था । अगर नौकरी करनी है तो बंगले में ही रहना पड़ेगा ,वह मुझे शक की नजर से देखने लगा था

.....पर चलते -चलते यह कहा ....हमें भूलना मत ।

अब तो .....भंडारी ,जो बेबी का मैनेजर है ,मुझसे पूछ के ही मिलने जाता है । पहले दिन जिस

तरह से डांटा था ....आज तक नहीं भूला............ । कभी -कभी डर लगता है ,इतना विस्वास कैसे करती

हैं .......? बेबी की माँ ,मुझे शक की नज़र से देखती हैं ...... ।


एक दिन ,हमारी शूटिंग फिल्म सिटी ,गोरेगांव में चल रही थी ....बेबी के हीरो शब्बीर खान

थे .......बेबी से कुछ ज्यादा ही चिपकने की कोशिश करते ....यही डर शायद बेबी को था ...मुझे हमेसा

अपने पास रखती ........खान को सब समझ में आ रहा था ..... । जब बेबी शाट दे रही थी ....खान ने मुझे

गुस्से से देखा .....और कहा ...आंटी से दूर नहीं रह सकते ?.....मैं चुप रहा ..... ।

रात को मोहन ड्राईवर की तवियत खराब हो गयी .......और बेबी से छुट्टी मांग कर घर चला

गया ..... । रात एक बजे शूटिंग पैकप हुई ....खान ने बेबी से कहा ,मैं छोड़ देता हूँ आप को ..... ... ।

कुछ सोच के बेबी ने कहा ....ठीक है । ......वैन में पहुँच कर ....बेबी ने शूटिंग के कपडे बदले ...और बेबी ने

मुझे बुलाया ....... । मैं वैन में पहुंचा ....बेबी ने मुझे ध्यान से देखा .....और कहा ,खान साहब की नियत

ठीक नहीं लग रही है ..... बोलो क्या करें ...? ........बोलो ......चुप क्यों हो ....यह अच्छा इंसान नहीं है

और मेरे साथ .....जबर्दस्ती करना चाहता है ....यह लोग परदे पे कुछ और होते है और आम जिन्दगी में

इनकी सच्चाई करीब से देख लो ......मैं सिर्फ सुन रहा था ,लग रहा था ...दो पाटों के बीच ....मैं फंस गया

दो हजार की नौकरी में .......क्या -क्या करना पड़ेगा । ..........वैन के डोर पे खटखट हुआ ......बेबी डर

गयी .....तभी खान अंदर आ गया ......ज़ेबा चलो ....चलो ...दो बार वीवी का फोन आ चुका है .....

कुछ सोच कर ,बेबी ने कहा ..दो मिनट ,आप चले मैं आती हूँ ......जाते -जाते खान कहता हुआ गया

अगली फिल्म हम लोग साथ -साथ कर रहें है ....और हाँ जल्दी आना ।

बेबी ने मुड कर मेरी तरफ देखा .......और कहा ...तुम जाओ .मैंने कुछ सोच कर कहा ...मुझे गाड़ी

चलानी आती है ......फिर इतनी देर क्यों कर रहे हो .....जाओ ले कर आओ ...

.......इतना सुनना था ......मैं कार ले कर वैन के पास आया ......पहली बार कार चला रहा था ...

खान वहीं वैन के पास ही खड़ा था ....ज़ेबा बेबी वैन से बाहर आई ....खान, उनसे कुछ बात करने लगा ॥

क्या कहा बेबी ने ....खान चला गया ....गुस्से में , ....बेबी कार में बैठीं ....और मैं ले कर चल दिया

यह बेबी की पहली जीत थी ...वह बहुत खुश थी । मैंने कार चलाते-चलाते पूछा ......बेबी आप को कार

नहीं चलानी नहीं आती ? ......आती है ,पर डर लगता .......पूछा मैंने किस बात का .....?एक्सीडेंट का

.......लेकिन एक बात बताओ ....तुम्हे भी तो नहीं चलानी नहीं आती, आज कैसे चला रहे हो ?.....

गावं में था तो जीप चलाता था ....कार नहीं चलाया था और फिर इतनी बड़ी कार ..... । फिर उन्होंने कुछ

ऐसा पूछा ....जिसकी वज़ह मैं नहीं .....जानता ........मैं हिन्दू बन सकती हूँ ?


सत्तू

करीब रात के दो बजे शूटिंग खत्म हुई , मैं हिरोइन की कार में आगे बैठ गया । ऐसा मुझे कहा गया था ,

बेबी के साथ हमेसा रहना । सुबह भी इसी तरह बेबी जेबा के साथ आया था । घर आते -आते तीन बज गये ,

वहीं बंगले में मुझे सोने को कहा गया ,मैं और ड्राईवर मोहन बंगले के नीचे के कमरे में सो गये ।

सुबह करीब पांच बजे आँख खुली ,और तेजी से बंगले के बाहर निकला ,और अपनी झोपड़ी की

तरफ तेजी से चल दिया .....घर पहुंचा ,तो करीब छे बज चुके थे .......बिरजू चाय बना रहा था ......मुझे

देख के उसके चेहरे पे चमक आगयी .....और बोल पड़ा ,.......सारी रात जागता रहा..., तुम्हारा इन्तजार

करता रहा ......अच्छा यह बता काम कैसा लगा ? ........मैं सोचने लगा ,क्या कहूँ ,समझ में नहीं आ

रहा था । काम तो ,मेहतर वाला था ....जूठे बर्तन उठाओ ,जूठा खाओ ,हमेशा उनकी नजरों के सामने खड़े

रहो ,जूते पहनाओ ,बाहर दरवाजे पे खड़े रहो ,कोई अंदर न जाने पाए । अब इतने ,सारे काम जो मैंने आज

तक किया नहीं था ,वह करना पड़ रहा है,यह सब कैसे?, बिरजू को बता दूँ .......अगर कह दूँ तो ,.यह

मुझे कल से काम पे नहीं जाने देगा ....मैंने झूठ कह दिया ,बहुत अच्छा काम है ,बस बेबी के साथ रहना

पड़ता है .......मैं किसी से मिलने नहीं दूँ । ......बिरजू खुशी से बोल पड़ा ,बहुत अच्छा कम है ।


मैं आठ बजे ,जेबा जी के बंगले पे पहुँच गया । मेरी खोज -बीन बगले पे चल रही थी ,

मैं कहाँ चला गया ? पहले तो ड्राईवर मोहन ,मुझे देख कर गुस्सा करने लगा । बता कर जाना चाहिए

बेबी जानते हो कितना गुस्सा किया .......कम से कम मुझे तो बता कर जाना चाहिए था ,जावो बेबी ने

बुलाया है तुम्हे । मैं बंगले के अंदर पहुंचा .....सीढियों से ऊपर बेबी के कमरे में गया । मुझे देख कर,

वो बोल पड़ी ,मेरे साथ काम करने वालों की मेरी जिम्मेवारी होती है ,आयन्दा ख्याल रखना । और हाँ

एक बात और तुम पंडित हो ? जी ......... । ...तो फिर ,आज से वह काम बिल्कुल मत करना जो तुम्हें

अच्छा न लगे .....समझे ...यही जूठे बर्तन उठाना ,मेरे जूते उठाना ...और ....सब ... कुछ .....

मैं नीचे पहुंचा ,पहले तो मोहन बोला .....खूब डांट पड़ी न .......? । मैं यह सुन कर हंस पड़ा ,यार

तुम लोग बेबी से इतना डरते क्यों हो ..?.मोहन कहने लगा ,......हम डरते हैं ,....एक मिनट में नौकरी से

निकाल देती हैं । अच्छा ......पर मुझे तो कुछ और ही कहा ....... । क्या कहा ? कहा जो तुम्हे अच्छा

लगे वह काम करो ......., अबे फेंक रहा है ,ऐसा तो मैंने आज तक नहीं सुना.....तु तो एक ही दिन में

फ़िल्मी हो गये हो ......... ।

Tuesday, February 23, 2010

सत्तू

हम दोनों ,घर पहुंचे ......घर क्या था ,एक टीन की चादर- छत बनी झोपडी थी । मैं बहुत खुश था ,आखिर

नौकरी मिल ही गई । बिरजू ,पता नहीं क्यों चुप था ,ऐसा लग रहा था । जैसे उसको मेरी नौकरी का मिलना

अच्छा नहीं लगा । मैंने ही पूछा ,क्या बात बिरजू तू इतना चुप क्यों है ? बस ऐसे ही ,कह के, फिर चुप हो

गया । उसकी चुप्पी मुझे सालने लगी ,एक डर मुझमें समाने लगा । फिर मैंने पूछा ......बोल न, क्या बात

है ...... । उसने मेरी तरफ देखा .....जो नौकरी तुझे मिली है .....इसमें एक डर है ,तू कर भी पायेगा या ....

नहीं ...पता नहीं । ऐसा क्यों कह रहा है तू .....? बस ऐसे ही ......एक दो दिन करना ....नहीं अच्छा लगे

.....तो छोड़ देना ...समझा । मैंने ...हूँ में सर हिला दिया .....लेकिन ....मैं सच में डर गया .....कौन सा

काम मुझसे लिया जायेगा ....... ।

सुबह तडके ही तैयार हो कर .......जुहू के बंगले पे पहुँच गया ......कल वाला ही चौकीदार था ।

मुझे पहचान कर अंदर आने दिया .....चौकीदार ही ने अंदर फोन करके बताया ....मेरे बारे में ....कुछ सुन

कर, मुझे अंदर जाने को कहा .....जावो ...अंदर बुलाया है ,और साथ ही साथ बोल पड़ा बडी किस्मत ले

कर आये हो ....... । यह सुन कर ,एक डर ,जो कल से चिपका हुआ था .....थोड़ा सा कम हुआ ।

घर में पहुंचा ,वहाँ पहले से ही कुछ लोग बैठे थे ,मुझे देख कर ,एक दुबला सा आदमी उठा और

मेरे पास आया ......और मुझे ....दूसरे कमरे में ले गया .....और गुस्से में कहने लगा । यहाँ ,तुमको

किसने भेजा ......मैं डर गया ....और बोल पड़ा ....चौकीदार ने । ...........यह जौनपुर वाले ,साले बड़े

बदमाश होते हैं । तुम भी जौनपुर के हो ...? मैंने ...हूँ कहा ....मुझे ध्यान से देखा और फिर कहने लगा

......तुम भोजपुरी फिल्मों के हीरो लगते हो .....यहाँ क्या करोगे ....बड़ी मेडम से बात हो गयी ...पैसे की

भी बात कर ली न .......फिर मैंने ....हाँ कहाऔर हाँ मेडम ने तुम्हे नये कपडे देने को कहा ......तभी पीछे

से किसी ने कहा .....अरे भंडारी जी ,आप यहाँ क्या कर रहें हैं ? मैंने और भंडारी जी ने दोनों ने साथ साथ

पीछे मुड़ के देखा ......मैं देखता रह गया ......इनकी एक ही फिल्म देखी थी .....बस पागल हो गया था

इतनी खूबसूरत जिसको बयान नहीं किया जा सकता .....मेरी आँखे खुली की खुली रह गयी । तभी

भंडारी बोल पड़ा ....बेबी यह लडका ,आज से आप का बॉय है ......तभी बेबी ने मेरी तरफ देखा ...उपर

से नीचे तक देखा .....और बोल पड़ी ...भंडारी जी कपडे तो ढंग के पहनवा दीजिये ....... । ठीक है ...आज

से भेज देता हूँ ...सब कुछ समझा दीजियेगा ......जी ठीक है .......इतना कह के बेबी जेबा जी चली गयी ,

भंडारी जी ने मुझे देखा ....और कहने लगे ...तुम्हारा नाम क्या है ? जी राजेश पाण्डेय ....... । पडित हो


......
जी ...कुछ खाते पीते हो ? नहीं साहब ....खिला तो सकते हो ....? जी ...जी ....बेबी को चिकेन

बहुत पसंद है ....और उसके साथ राईस खाती हैं यह सब तुम्हे देखना होगा .......मेरी समझ में कुछ नहीं

आ रहा था ......मुझे काम क्या करना होगा ,यही सब करना होगा ......


जेबा जी की शूटिंग देर रात तक चलती रही .....मुझे आज उनके दुसरे सहायक ने सब

कम समझा दिया .....एक औरत थी ,जो जेबा जी के बालों को झाड़ती थी ....दुसरा आदमी उनका .....

मेकप मैन.....बसंत था


Sunday, February 21, 2010

सत्तू

हम सभी को ,इस शहर में रहते हुए करीब चार महीने बीत चुके थे । कोई काम अभी तक नहीं

मिला ,बी .ए .तक की पढाई बेकार सी हो चुकी थी । कहीं भी मेरे लायक काम नहीं था ,बड़ी उम्मीद

से मुम्बई आया था । कुछ काम मिल जाएगा तो अपने परिवार का पेट पाल सकूंगा । रोज एक दिन

कल की उम्मीद में गुज़र रहा था ,मैं यहाँ अपने ही गावँ के बिरजू पे भार बना हुआ था । वह कपास बाडी

में रहता था ....एक झोपड़ी थी ,जिसमें उसका बसेरा था । गावं से चलते समय उसने कहा था ......बम्बई

में मैदान -दिशा भी समुन्द्र के किनारे जाना पड़ेगा .....पहली बार समुन्द्र को देख कर मन बहुत खुश हुआ

इतना पानी ..पानी ही पानी सब तरफ ,बहुत तेजी से समुन्द्र के किनारे गया .....थोड़ा अंदर तक पहुंचा

कुछ सोच के चुल्लू भर पानी लिया ....मुहं से लगा कर पिया , इतना नमकीन ....मैंने सोचा भी नहीं था ।


मुम्बई जैसी जिन्दगी, मैंने आज तक जिया नहीं था ...कई बार यहाँ से भाग जानेका मन भी

हुआ ,पर घर जा कर भी क्या करूंगा ,फिर वही लड़ाई रोटी की ...दोनों जगह एक ही चीज की चाह ,धन

का मिलना ....महीनों बीत चुके ,एक भी पैसा नहीं भेजा ,झूठ -मुठ का आश्वासन ,देता रहता हूँ , माँको॥


काम की तलाश जारी था ....राज साहब, सब को भगाने की बात करते .....मराठी सीखने की बात हर

भैया कर रहा था ...एक डर अंदर ....बैठ चुका था ....यादव मुझे शाम को ,एक साहब से मिलाने ले गया

जुहू के एक बंगले में .....बहुत बड़ा गेट ,एक चौकीदार खड़ा ,बिरजू को पहचान गया और उसने पूछा

साहब ने बुलाया था ,बिरजू ने हाँ में जवाब दिया । हम दोनों अंदर पहुंचे ,और बंगले के नीचे कमरे में

बैठ गए ,थोड़ी देर बैठे रहे ,मुझे किस काम की नौकरी के लिए लाया है बिरजू , मुझे नहीं मालूम ,इसी सोच

विचार में बैठा रहा, तभी एक मोटी सी औरत आयी ,हम दोनों खड़े हो गए ,उस औरत ने मुझे ध्यान से देखा

और फिर बैठने को कहा .....हम दोनों बैठ गए । ............बडी देर बाद ,उस मोटी औरत ने मुहं खोला

मेरी बेटी फिल्म की हिरोइन है ,उसके साथ रहना होगा उसका ख्याल रखना होगा ,समझ गए ।

महीने का दो हजार मिले गा दोनों वक्त का खाना भी ....ख्याल रखने का मतलब समझते हो न ,

बेटी के साथ साये की तरह रहना पडेगा । यह सुन का मैं बहुत खुश हुआ ,घर पर हर महीने पैसे भेज

सकूंगा । मैं कुछ और सोचता ,तभी वह मोटी औरत बोल पड़ी ,सुबह आठ बजे आना होगा ,रात कोई

पक्का नहीं ,बेटी को छोड़ के ही अपने घर जा पाओगे ....मैंने जी में जवाब दिया ठीक है ,काम कब से

शुरू करना होगा ? ....कल से आ जाओ ....बिरजू , नाम क्या है इसका ? और तुम्हारे विस्वास पे रखा

है ......


जारी .....





Friday, February 19, 2010

उम्र सत्तासी की दिल बचपन का

उसकी जिंदगी में बहुत सूना पन था ,उसकी लड़ाई अपनों से थी .पूरा घर भरा हुआ था ,सब अपने में मस्त थे ,बेटे ,बेटी ,बहु ,नाती ,पोते | सब तो थे फिर भी अकेला था |वक्त पे खाना मिल जाता चाय मिल जाती ,पर कोई ठीक से बात नहीं करता ,एक अखबार ही उसका साथी था जो शाम तक उसके साथ रहता |अखबार की कोई खबर उससे छूटती नहीं ,सुबह उसको पढ़ने को नहीं मिलता ,जब सब लोग पढ़ लेते ,फिर इसके पास आता ....सब से पहले वह पेज देखता जिसमें मरने वालों की खबर फोटो के

साथ छपी होती ,हर किसी को पहचनने की कोशिश करता ,बहुत देर तक इसी पन्ने को देखता .......फिर नौकरी के बारे में देखता ,कहाँ कहाँ नौकरी मिल रही है अपने लिए भी नौकरी खोजता ८७ साल से उपर इसकी उम्र है ,इस उम्र में कोई उसको नौकरी देगा भी या नहीं ?अखबार पढते पढते उसकी आँख कब लग जाती उसे पता भी नहीं चलता |

छोटी बहु के चिल्लाने से उसकी आँख खुलती ,....पापा जी खाना रखा है खा लीजिए ....इसकी सूरत सूरइया फिल्म की हिरोइन से मिलती .... मैं इसको अक्सर घूर

के देखता ...तब यह मुझसे पूछ लेती ,पापाजी आप मुझे ऐसे क्यों देखते हैं ?मैं एक झटके में बोल देता तेरी शक्ल मेरी माँ से मिलती है ,जब की यह झूठ होता ,कुछ भी हो छोटी बहु ही मेरा ख्याल रखती है | मेरे पास एक जमीन है ,उसे मैं छोटी बहु को ही दे

कर जाऊंगा .इस जमीन के बारे में किसी को पता नहीं | जब मैं पचास साल का था ,मैंने इस जमीन को खरीदा था और पत्नी ने कहा था .....जब हम बूढ़े हो जायेगें तब इस

जमीन को बेच कर अपना खर्च चलायेगें ....पत्नी तो ७१ साल में मर गई ...उसके गहने बच्चों ने आपस में बाँट लिया ,एक बार भी मुझसे नहीं पूछा ...जैसा उन पर मेरा कोई हक ही नहीं है पर जमीन की बात मैंने किसी को नहीं बताया आज तक राज ही है

अब मन सोचने लगा है अगर किसी को नहीं बताया तो .....कोई और ले जायेगा| खाना खा चुका था ,विमला नौकरानी ने आ कर बर्तन उठाया ,और उसने मुझे

एक चिट्ठी दी ......पापा जी ,मैं छुपा कर ला रहीं हूँ कोई देख लेता ...तो पहले पढता फिर आप को देता ,खुश हो कर यही कहा ,,,विमला मेरे पास देने को कुछ नहीं है |

उसने कोई जवाब नहीं दिया ....बस चली गई ,मुझे उससे पता नहीं क्यों ड़र

लगता है | उसका बस चले तो वह मुझे मार के भी बेच डाले .......अखबार फिर खोला और पढ़ना शुरू किया ...........|

Thursday, February 18, 2010

दादाजी

मधुबाला जी की फोटो ले कर ,मैं अपने दोस्तों से जा मिला और उनसे किसी उर्दू जानने वाले का पता

पूछने लगा .......तभी आसिफ बोला अबे अंधेरी वाली मस्जिद में चलते हैं ,वहाँ कोई न कोई मिल जायेगा ,

आसिफ ने पूछा ,क्या जानना है उर्दू का ? मैं चुप रहा ...और कुछ पूछने से पहले , मैंने झूंठ कह दिया ....

पापा को कुछ जानना है ।

मैं अकेला ही चला .... मस्जिद पहुँच कर ,किसी बूढ़े मुसलमान को खोजने लगा ,एक बूढ़े से

बड़ी -बड़ी दाढ़ी वाले मौलाना नजर आये ...उनसे झुक के आदाब किया और कहा ...चचा जान ,आप से

कुछ पढवाना है । क्या पढवाना है बच्चे ? कमीज के अंदर से मधुबाला जी फोटो निकाली और उलटी

तरफ जो लिखा था वह पढने को कहा ,चचा ने आखों का चस्मा निकाला और आखों पे लगा करदेखने लगे

......हिजय लगा कर पढना शुरू किया ....और कुछ इस तरह पढ़ा ......पंडित जी ,आप की यादें मेरे

जेहन में इस तरह बस गयी हैं वो पंचगनी की चांदनी रात, आज तक नहीं भूली.......मधुबाला


अरे बेटे यह ......कुछ और पूछने से पहले ,उन्होंने मधुबाला जी फोटो देख ली .....और एक लम्बी

साँस खीँच कर कहा इन्हें कहाँ लेकर घूम रहे हो ...?.और यह तो मधुबाला जी का आटोग्राफ है तुम्हें कहाँ

से मिल गया ? इनका भी ज़माना था ...हुशन की मलिका थी, हम भी इन पे मरते थे । यह पंडित जी

कौन हैं .? वोपंडित तो नहीं है ,जिसने बंटवारे में उन्हें पकिस्तान जानेसे रोक दिया था ....कमाल का

इंसान था ....मधुबाला की वजह से वह जानाजाने लगा ,पर कमाल की उर्दू जबान जानता था ...लोग

उससे उर्दू सीखने आते थे ....पर तू कौन है ? और कहाँ से यह मिला ? मैं पंडित जी का पोता हूँ ...यह

कह के मैं वहाँ से भाग निकला .....और घर पहुँच कर सांस ली .....और फोटो भी मधुबाला जी उसी

किताब में रख दी .......

दादाजी

मुझे आज तक दादा जी के नाम से ही जानते हैं ,बहुत नामचीन थे ,देश का वह ईनाम भी जीत चुके थे .......जिसे जीतने के लिए ,बहुत मेहनत करनी पड़ती है . उन्होंने बहुत सारी कहानियाँ ,गीत फिल्मों के ,कवितायें ....कहाँ नहीं छपे ...सरकार उन्हें पेंसन भी देती थी .....उनका कमरा आज भी वैसे ही रखा हुआ है सजा के ,हम सब लोगों को कुछ पैसे भी मिलजाते हैं ,जब भी न्यूज चैनल वाले आते हैं ,पिता जी ने अपना एक रेट तै था .

एक दिन ,दादा जी के कमरे की सफाई कर रहा था ,दादा जी के कमरे की सफाई करने का जिम्मा मेरा था .कमरे में रखी हर ट्राफी को चमकाना पडता था .दो रोज बाद जो आज तक ,वाले आ रहे थे . दादा जी चप्पले जुते भी साफ़ करने पड़ते थे .दादा जी बहुत शौक़ीन किस्म के थे . उनकी किताबे फाईल भी साफ़ कर के रखना पडता था ,कईबार उनकी किताबों में कुछ अलग किताबे मिल जाती थी जिनकों हम लडके छिपा कर पढते हैं . अक्सर मैं उनकी किताबों को उलट पलट कर जरूर देखता था

आज उनकी किताबों में एक फिल्म हिरोइन की फोटो मिल गई ,और फोटो को देखता रहा ,यह मधुबाला जी फोटो थी और फोटो के पीछे उर्दू में कुछ लिखा था . जिसे मैं पढ़ना चाहता था . मैंने वह फोटो छिपा के रख ली ,किसी उर्दू जानने वाले से जानूंगा

Monday, February 15, 2010

अमन की आस

रात को खाना खाते हुए ,मेरी पत्नी मेरी ही आखों में ही झांके जा रही थी । मुझसे सच जाना चाहती थी ।

मेरा खाना कम ,डर जायदा मेरे अंदर जादा भरा हुआ था । मैंने खामोशी में सारा खाना खा लिया ,हाथ मुहं

धो कर अपने बिस्तर पर जा लेटा ,आँखों में नीद नहीं थी ,सिर्फ आँखे बंद थी ....क्या सलीम ने अपना नाम

बदल लिया ....फिर मेरे मुहं से श्याम पाण्डेय क्यों निकला ....उसको बचाने के लिए या उसने अपना नाम

सच में बदल लिया ....बचपन की एक बात याद आयी ....मैं उसको श्याम कह के ही बुलाया करता था ...

जब हम बड़े हो गये ....तो एक दिन बड़े दुःख से कहा था .....इस देश में रहना हो तो अपना नाम बदल लो

फिर तो जी सकोगे वरना लोग जीने नहीं देंगें ....

अगर यह सच है तो .....उसका मिलना मुझे सबसे बड़ा दुःख दे कर गया है ....वह इतना कमजोर

हो जाएगा मुझे नहीं मालूम था । सुबह फिर पुलिस उसे ले कर आयी मेरे पास ......

हम दोनों को बीस साल की सजा हुई ....एक ही जुर्म था ....मैं हिन्दू था वह मुसलमान था ....

अमन की आस

रात को खाना खाते हुए ,मेरी पत्नी मेरी ही आखों में ही झांके जा रही थी । मुझसे सच जाना चाहती थी ।

मेरा खाना कम ,डर जायदा मेरे अंदर जादा भरा हुआ था । मैंने खामोशी में सारा खाना खा लिया ,हाथ मुहं

धो कर अपने बिस्तर पर जा लेटा ,आँखों में नीद नहीं थी ,सिर्फ आँखे बंद थी ....क्या सलीम ने अपना नाम

बदल लिया ....फिर मेरे मुहं से श्याम पाण्डेय क्यों निकला ....उसको बचाने के लिए या उसने अपना नाम

सच में बदल लिया ....बचपन की एक बात याद आयी ....मैं उसको श्याम कह के ही बुलाया करता था ...

जब हम बड़े हो गये ....तो एक दिन बड़े दुःख से कहा था .....इस देश में रहना हो तो अपना नाम बदल लो

फिर तो जी सकोगे वरना लोग जीने नहीं देंगें ....

अगर यह सच है तो .....उसका मिलना मुझे सबसे बड़ा दुःख दे कर गया है ....वह इतना कमजोर

हो जाएगा मुझे नहीं मालूम था । सुबह फिर पुलिस उसे ले कर आयी मेरे पास ......

हम दोनों को बीस साल की सजा हुई ....एक ही जुर्म था ....मैं हिन्दू था वह मुसलमान था ....


Sunday, February 14, 2010

अमन की आस

बहुत कोशिश करता हूँ ...अपने जख्मों को भूल जाऊं ,पर वो नासूर बन कर बहता ही रहता है लाख मलहम लगता हूँ ........पर ठीक ही नहीं होने देते हैं लोग ,यह कोई और नहीं हैं ,मेरे अपने ही हैं । उसका नाम सलीम था ,उसको
अपने नाम से बड़ी चिड है .....हर तीसरे का नाम जो सलीम है । हम दोनों अक्सर शाम को ,मड के बीच पे मिलते ,यहीं घंटों बैठ कर अमन की बात करते .....कोई रास्ता समझ में नहीं आता .....बात -चीत में अक्सर झगडा
हो जाया करता ......इसी बीच एक दिन ,बम्बई शहर बम्मों से दहल उठा ....सैकड़ो की तादाद में लोग मारे गये ...
पूरी कौम को गुनाह गार साबित कर दिया गया ...

सलीम , मुझसे मिलने नहीं आया ,एक दिन उसके घर गया । मैं जानता था वह भी अपने आप को मुजरिम समझने लगा है .......जहाँ वह रहता था ,पुलिस का जबरदस्त पहरा लगा हुआ था । और सलीम के
घर पर ताला लगा हुआ था ....वह डर गया था ।
दो चार दिन बाद पुलिस मेरे घर आयी और मुझे पकड के ले गयी ....मुझसे शलीम के बारे में पूछताछ
करने लगे । मैं सलीम को दस सालों से जानता था ,हमारी दोस्ती पांचवे क्लास में हुई थी । वह पढने में बहुत तेज था ,क्लाश में अव्वल आता था । पर हमारे टीचर पाण्डेय जी उससे खुश नहीं रहते थे । पर सलीम हमारी
दोस्ती से बहुत खुश था ,वह मुझ पर भी मेहनत करता ,जिससे मैं भी फ़र्स्ट आऊं ......
मैंने पुलिस को बताया ....आप जो कह रहें हैं वह ऐसा नहीं था ...वह तो गोस्त तक नहीं खाताथा ,मुझे भी
पुलिस ने मारा और कहने लगी ,जैसा हम कहते हैं वैसा कहो .....लेकिन एक दोस्त के साथ गद्दारी नहीं की ...
घर आ गया ,सभी ने डांटा इनके साथ दोस्ती करो गे इसी तरह मार खावो गे .......

दस साल बीत गये ,जब भी कहीं बम ब्लास्ट होता मुझे शलीम की याद जरुर आती ...अक्सर भीड़ में
आखें उसे खोजती ......गुस्सा इतना आता कभी मिल जाये तो उसे बहुत मरूँगा ....पर मिला नहीं । आज भी मेरा
जख्म वैसे ही रिस रहा है आज भी उसकी फोटो सब से छिपा कर रखी है जब भी पुलिस वाले किसी आतंकी को
पकड़ते हैं ,मैं सलीम की फोटो उससे जरुर मिलता हूँ ।

एक दिन पुलिस मेरे पास एक आदमी को पकड के लाई ....और मुझसे पूछने लगी आप इसे पहचानते हैं ...मैं
सलीम को पहचान गया ....मैंने कहा हाँ ...जानता हूँ ....पुलिस ने पूछा क्या नाम है इसका ?मैंने कहा श्याम पाण्डेय .....आपका दोस्त है ? हाँ कभी था ....अब नहीं ....क्यों ? पुलिस ने मुझसे पूछा ....अब मिलता नहीं है
इसलिए ......पुलिस उसे ले कर चली गयी । मेरी पत्नी ने मुझ से पूछा ,यह कब से आप का दोस्त हो गया ,आज
तक तो मैं इससे कभी मिली नहीं । यह मेरा वह जख्म है जो आज तक बह रहा था ....अब शायद पूज जाय

जारी .....

Wednesday, February 10, 2010

ससुराल

चारो तरफ अन्धकार था ,मैं आखों के सहारे नहीं चल रहा था ,मैं एक अंदाजे से पैर रखता और आगे बढ़ जाता ....यह क्रम कब तक चला मुझे नहीं मालूम ...पैर से कुछ लगा ,अँधेरे में कुछ दिख तो रहा नहीं था ...फिर भी अंदाजे से यह जानने की कोशिश की ,क्या है यह ?झुक कर हाथ से छुआ ,फिर भी कुछ समझ नहीं आया . सोचने लगा
क्या हो सकता है ,मेरी जेब माचिस थी उसको निकाला ,जला कर देखने की कोशिश की
एक लाश पड़ी थी ,किसी औरत की थी . मुहं से चीख निकलते –निकलते रह गई ......

मैं तेजी से चलने लगा ,कैसे भी कर के वहाँ से भाग जाना चाहता था ,गिरता पडता मैं वहाँ से भाग निकला .सडक पे पहुँच गया ,दूर से आती किसी गाड़ी की रोशनी में मुझे समझ में आया मैं तो लार पुर की सडक पे आ गया हूँ . थोड़ी सी हिम्मत आई
नयी –नयी शादी का यही हल होता है ....ससुराल गया था बीबी से मिलने ...और माँ ने कहा था ससुराल में रुकना मत ....माँ की बात मानी और दिन ढलते ढलते निकल लिया था . पर रास्ता भूल जाने कारण सडक तक पहुँचने में इतनी देर लग गई ....
सामने से आती रोशनी करीब आ गयी ,देखा तो रोडवेज की बस थी वगैर हाथ दिए रुक गयी .मैं उस में सवार हुआ और इत्मीनान की साँस ली (ज़ारी)