....मैं उन यादों को लिख रहा हूँ .....जो मेरे बचपने की वह हैं .......जिनसे
मेरे जीवन का रूप -रंग बदला ....मेरी माँ पे ....देवी माँ का साया था .....जब उन पर आता था
तब वह क्या क्या बोलती थी ......मुझे याद नहीं है ....पर वह भय...आज तक ,
मेरे अंदर छिपा बैठा है कहीं ......जब माँ ...नार्मल होती ....तब वह बहुत थकी
होती थी ....
मेरी दादी ....मुझे बहुत प्यार करती थी .....हमारे गाँव में किसी की
मौत हो गयी थी .....मैं भी जिद्द कर के चला गया था .....पहली बार किसी मरे हुए
इंसान को देखा था ....पर वह सब मेरी समझ में कुछ नहीं आया था ......मुझ में
एक आदत थी .....घर की किसी चीज को मैं ,घर के बगल जो कुआं था ....उस में फेंक
देता था ....घर की लालटेन तक फेंक दिया था ......पर मुझे डांट नहीं पडती थी ...घर का
नौकर (हरवाह ) भोला ......कुएं में घुसता और लालटेन निकाल के लाता था .......
हमारे गाँव के घर में ....चार बैल थे ....जिनसे खेती होती थी ...दो भैंस और एक जर्सी
गाय होती थी ......सुबह चरवाहा आता ....गाय और भैंस को चराने के लिए ले जाता था
.....अक्सर मैं भी उस चरवाहे के साथ जाता था ....वह मुझे किसी एक भैस पे बिठा देता
और गाँव के बाहर तक जाता ....आज जब उन घटनाओं को याद करता हूँ .....तो मुझे कान्हा
का लड़कपन याद आता है .....
बरसात के दिनों में ...गाँव के आस -पास छोटे - छोटे तलाब जो होते थे
पानी से भर जाया करते थे ......मैं अपने दोस्तों के साथ .....इन तलाबो में जाता और
तैरना सीखता था .....पानी के ऊपर एक कीड़ा बहुत तेजी से तैरता था ....जिन्हें हम सभी
भंवरा कहते थे .....दोस्त कहते थे ,इन्हें पकड के पानी के साथ पी जाएँ तो ....तैरना जल्दी
सीख जायेंगें .......यह सच है या गलत ....पर धीरे -धीरे मैं तैरना सीख गया ....
बरसात के दिनों में ....हम सभी लडके कुस्ती लड़ने का अभ्यास करते थे ....दुसरे
गाँव का एक नट आता जो हम लडकों को कुस्ती के दावं सिखाता था ......उसको दो वक्त का
खाना मिलता .....और दो महीने के बाद जब जाता .....तब उसे हर घर से अनाज मिलता ...
जिसे वह ,अपने घर ले के जाता था ......मैं बचपने में बहुत तगड़ा था ......अपने दोस्तों को
कुस्ती में हरा देता था ......इसी वजह से मेरे काफी दोस्त बन गये थे ........जो आज तक हैं
आज भी जब गाँव जाता .....सभी मिलते और उस बचपने को याद कर के खूब मजा लेते ...
भागु मेरा सबसे प्रिय दोस्त था .....आज भी वह मेरा दोस्त है .......उसके बाद ,
हिरदय मणि मेरे दोस्त थे ......गाँव में आज उनका एक कालेज है ...जिसके वह प्रिंसपल हैं
फिर राधे का नाम आता है ......हम दोनों बचपन में करेमुं नाम का एक पौधा ...जिसे शहरों
में नारी का साग कहते हैं ...तोड़ने किराहिया नाम का एक तलाब था ,जिसमें जाते थे .....
हम दोनों अपने कपडे उतार के ....तलाब के किनारे रख देते थे ,फिर उस तलाब में उतरते ...
नहाते हुए ....करेमुं का साग तोड़ते ......
आज राधे श्याम मुम्बई शहर में टैक्सी चलाते हैं .......हम लोगों का एक और दोस्त है ,जो
गाँव के कहांर का लडका है ....नाम सुरेस है ......बचपने में हम लोगों को जब दुसरे गाँव से पूड़ी की
दावत मिलती ....यह दावते अक्सर हम पंडितों को मिलती थी .....और रात को यह दावत
होती थी .....हम दोस्त सुरेस को अपने साथ ले लेते थे ....जो जात का पंडित नहीं है ....हम जब
पांत में बैठते ....उसे भी अपने बगल बिठा लेते .....उसके गले में एक जनेऊ डाल देते ,जिससे कोई
उसे ना पहचान नहीं सके ......दोस्तों में यह मेरी जिद्द का नतीजा होता ....सुरेश भी १४ से १५ साल
की उम्र में मुम्बई आ गया था ......एक पान की दूकान पे काम करता था ...कमाठीपुरा में .....२३ या
२४ उम्र में कहीं गायब हो गया .....दस से पंद्रह साल बीत गया ......पत्नी अपने दो बच्चों को ले कर
अपने गाँव चली गयी ...
फिर कई सालों बाद वह अपने गाँव आ गया .......जो उसने बताया वह कमाल का था
उसे मुम्बई में कोई साहब मिले .....जो इसको जर्मनी ले कर गया .....और इतने सालों तक वहीं ही
रहा ...जब मैंने उससे पूछा ....चिट्ठी क्यों नहीं लिखा घर में ......जो उसने बताया .....वह बहुत
अजीब है .....यह उनकी कैद में था ....घर से बाहर तक नहीं निकल सकता था ...
यह कहाँ तक सच है .....मुझे नहीं मालूम ......कुछ साल घर रहा .....फिर मुम्बई आया
और फिर से गायब हो गया .......इसकी पत्नी बच्चे अकेले हो गये ,फिर से ....इसके बेटे को .....
मेरे भाई लखनऊ ले आये ......और हमारे घर पे रहने लगा ....आज वह, यम .बी .एय .कर रहा है
पिता का पता नहीं ,फिर से इस मुम्बई में खो गया ...वह.........!
...
कुछ लोग कहते हैं , वह मछुहारों के मोहल्ले में रहता है .....एक शादी कर ली है ...क्या सच है ...
नहीं मालूम .....
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