Monday, May 17, 2010

हजपुरा

हजपुरा ..........मेरे गाँव का नाम है .....उत्तर प्रदेश में ...अयोध्या नाम का एक शहर है

उससे चालीस मील पूरब में जिला आंबेडकर नगर है .....कचहरी से जलाल पुर की तरफ

एक सडक जाती है .......उसी सडक पे करीब सोलह मील पे सडक के किनारे ...हजपुरा गाँव

है ......यहीं मैं सन १९४५ में पैदा हुआ था .....जुलाई का महीना था ......उस शाम खूब बारिश

हुई थी ....तारीख थी १७ ...और मैं इस संसार में आया था ॥

मेरा भरा पूरा परिवार था कई दादी थी कई बुआ थीं ....कई बाबा थे दो चाचा थे जो मुझसे

सिर्फ दस बर्ष बड़े थे ,,,,,मेरे दादा जी पैसे वाले थे ......घर का पहला नाती आया था .....खूब ढोल -ताशे बजे

घर में सभी पढ़े - लिखे थे ....दोनों चाचा होस्टल में रह के पढ़ते थे ......मेरे पिता लखनऊ में रेलवे में नौकरी

करते थे .....मेरे दादा भी रेलवे में स्टेशन मास्टर थे .......

मेरे दादा जी के दादा जी ने दो शादियाँ की थी .....पहली शादी से मेरे बाबा जी के पिता थे

सरजू प्रसाद मिश्र थे ......दूसरी शादी से उनकों चार बेटे हुए .....और मैंने बचपने में उनकी पत्नी को देखा था

हम लोग उन्हें बैहरो दद्दी कहते थे .....उनका रंग सावंला था ....काफी बूढी थी ......लेकिन उनके चारो

बेटो को एक -एक बेटी हुई .....लेकिन बेटा नहीं हुआ ........

जब मैं छोटा था .....पूरा परिवार मुझे बहुत प्यार करते थे, दो घर थे .....मैं कभी इस दादी

के साथ खेलता था .....घर के बाहर इतनी चारपाई लगती थी .....जैसा आधा गाँव सो रहा हो .....कभी इस

घर में खाना खाता था ....कभी अपने घर में .......मैं दिप्पन दादी को बहुत प्यार करता था ....वह बहुत सुंदर

थी ....गोरा रंग था उनकों एक बेटी थी उनकी शादी हो गई थी .....एक दूसरी दादी थी उनकों लूटना दादी

कहता था ....उनकों भी एक बेटी थी ....जो मुझसे तीन साल बड़ी थी ...मैं उनके साथ और अपनी बड़ी बहन

के साथ खेलता था ....हमारी एक आम की बाग़ थी ......खूब आम लगते थे उसमें ...

आज जब भी अपना बचपना याद करता हूँ .....एक कहानी की तरह सब कुछ लगता है .......मैंने चलना

कब सीखा मुझे याद नहीं .......माँ मेरी पढ़ी -लिखी नहीं थी ......मैं उनका पहला बेटा था ......मेरी मालिस

करने के लिए .....कौली को रखा था ....जितनी बार कौली मालिश करती ....वह माँ को आ के बताती ...माँ

दीवार पे कोयेले से दीवार पे एक लाईन खींच देती थीं ....और शाम को गिनवाती थी .....

करीब ....दो साल का जब हुआ .....तब मुझे चेचक निकली ....मेरा एक और छोटा भाई हुआ था ...जिसकी

मौत इसी चेचक में हो गयी .....करीब तीन साल का जब हुआ .....हमारे घर में चोरी हुई ......पहली याद

मुझे इसी बात की है ......हमारे घर के आँगन में घुसने के लिए ....तीन दीवालों को छेद करना पड़ता ....गाँव की

भाषा में सेंध लगाना कहते हैं ....इसको

पुलिस आई .......और कुछ नहीं याद है

अपनी बहन के साथ ....गाँव के स्कूल में जाता था ......

दादी मुझे अपनी गोद में ले लेती थी और भैंस का दूध निकालते समय मेरा मुहं ....भैंस के थन से निकलता

हुआ दूध मेरे मुहं की तरफ कर देती थी .......मुंह में गुदगुदी लगती थी ...........

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