Monday, April 26, 2010

भौजी

सारा गाँव ,उन्हें भौजी बुलाता था ....यह आज की बात नहीं है । यह दौर है ,

सन पचास से सन साठ का ....अभी कुछ वर्ष पहले देश आजाद हुआ था ।

गरीबी बहुत थी ...दो वक्त का खाना ,नसीब नहीं था ...बच्चे एक लगोंटी में

घूमते थे .....भौजी ही एक ही थी ....जो सभी का ख्याल रखती थीं ....उनके पति

रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर थे .....भौजी के तीन बेटे एक बेटी थी बड़े बेटे भी

रेलवे में नौकरी करते थे ....लखनऊ शहर में ...., छोटे दोनों भाई उनके साथ रह के

पढ़ते थे .....गाँव में खेत थे ....लेकिन सिचाई के साधन नहीं थे ...फसल वगैर पानी

के सूख जाती थी ......

भौजी ही एक थी ....जो गरीबों को धन से अनाज से सहायता करती थी ....किसी

गरीब के घर में शादी ब्याह पड़ा , तो भौजी को सारा इंतजाम करना पड़ता था...गिरधारी

ने अपनी बीबी को निकाल दिया तो ........भौजी ने उसे अपने घर में रख लिया ...उसके बच्चों

का ख्याल रखा .... गरीबी से तंग आ कर किसान शहर की तरफ भागता ....भौजी से किराया लेने आता

भौजी जल्दी पैसा नहीं देती ....उससे पूछती ...ए....निरहू ...तू तो जात हया शहर......यहाँ तोहरे

लडकन का के देखे ......निरहू का एक ही जवाब होता भौजी ....तू हऊ ...न ....और वह

आदमी इतना कह के रोने लगता .....अब भौजी कुछ नहीं बोलती .....और घर में से दस रुपया

निकाल के लाती ....और उसे देती .......उस समय कलकत्ता का किराया ...सात रुपया था

.........निरहू के जाते ....जायर मियां आते ...उनके सर पे एक टोकरी होती ......भौजी के सामने

उतार के रखते ...आमों से भरी टोकरी होती ......गाँव में सबसे पहले ...इनके ही पेड़ के आम

पकते थे .....जायर मियां के बच्चे खाए या ना खाएं ...भौजी के घर आम की टोकरी पहले

आती ....यह वह समय था जब आम बेचने का रिवाज नहीं था .....भौजी की बिटिया की शादी

जमींदार घराने में हुई थी ......आम के सीजन में ....जमींदार साहब आठ से दस टोकरी आमों की

भेजते थे ....जायर मियां की टोकरी घर के अन्दर चली जाती....घर में खाने वाले भौजी नाती पोते

थे ..जो शहर से गर्मिओं की छुट्टी में आते थे ......

जायर मियाँ अपनी टोकरी के इन्तजार में बैठे रहते ......भौजी पूछ लेती ....कोई चीज की

जरूरत तो नहीं है ?........जायर मियाँ धीरे से कह देते ......भौजी यह साल ...सब अरहरिया

झुराय गय.......भौजी समझ गयी ....और घर के अंदर से टोकरी में अरहर की दाल ही

आयी .....और जायर मियां ने टोकरी सर पे रखी ....और अपने घर की तरफ चल दिए

भौजी एक इशारे पे काम करने वालों की लाइन लग जाती थी .....भौजी के पति ने

जितना कमाया ....वह सब गाँव वालों पे लग जाता .....पर उनके पति ने कभी नहीं पूछा

...पैसा कहाँ जाता है ?.......समय के साथ -साथ चीजे बदलने लगी ....भौजी के पति रिटायर

हो कर घर आ गए .....सन सतावन में रिटायर हुए थे .....पति के आ जाने से ....भौजी के बांटने

में थोड़ी कमी जरूर आई .....पर रोब -दाब वही रहा .....उनके पति को सभी दादा जी कहते थे

वो घर के द्वार पे ही बैठे रहते थे ......दादा जी सरकारी नौकरी कर के आये थे ...बात -चीत शहरी

नुमा थी ......गांव के लोग डर के मारे दादा जी से दूर ही भागते थे .... अब गांव वाले भौजी से ......

मिलने पिछवाड़े से आते थे .....और भौजी भी उसी तरह बांटती धन ...अनाज .... ।

भौजी को फालिज का अटैक पड़ा .....वह शहर गयी ....बड़े बेटे के पास वहीं

उनका इलाज होने लगा ......लेकिन उनका एक अंग काम नहीं करता ......यहाँ उनकी बडी बहु

सेवा करती ......चार -छे महीने के बाद .....भौजी गांव जाने की जिद्द करने लगी .....एक दिन

भौजी के बड़े बेटे ने पूछा .....माई घर जा कर क्या करोगी .....यहाँ तो सभी हैं बेटे बहु पोते गांव

में तो कोई नहीं है .......भौजी ने कहा .....हमें तुम लोगों की इतनी मोह नहीं लगती ....जितनी

गांव वालों की याद आती है .....मुझे वहीं भेज दो ......कुछ दिनों बाद भौजी को गांव भेज दिया

गया ......सारा गांव ...उमड़ पड़ा उनकों देखने के लिए .....और अपनी आखरी सांस तक गांव

में ही रहीं ......आज भी .....हर गांव वाला अपनी तकलीफ ले के आता ......और भौजी उसको

पूरा करती ....

भौजी की मौत सन अस्सी में हो गयी .....आज भी गांव में भौजी को लोग याद करते हैं ...हर गांव वाले

के पास अपनी एक कहानी है .....कब -कब भौजी ने उसकी सहायता की थी ......आज भी भौजी

का बनाया हुआ मकान वैसा -का वैसा है ....डेढ़ गजी दीवार आज तक वैसी ही मजबूती से है .....घर के कोठे

सुने पड़े हैं ......कभी अनाज भरा रहता था .......अब सूना है .....उनके नाती पोते शहरों में रहते हैं

गांव की कोई खबर नहीं लेते .......भौजी के ही दान पुन्न से ....नाती पोते बड़े -बड़े साहब बन गए ..पर

......आम की बगिया सुनी पड़ी है ......खेत ...भौजी को सोच सोच के रोते हैं .......नहीं तो उनका

पैदा किया हुआ अनाज भूखों के पेट तक जाता था .......अब कहाँ जाता है किसो क्या मालूम

.........एक दिन जरूर आएगा ....किसी को भौजी का अंस मिले गा ....और अपने गांव की सेवा

करेगा .......

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