..... हाई स्कूल के बाद ......मैंने कामर्स ले कर ....आगे की पढाई शुरू की
नये दोस्त मिले ....रतन मेरा दोस्त भी पास हो गया था हम एक ही सेक्सन
में थे .....हाई स्कूल पास हो जान के बाद .....अपने आप को हीरो समझने लगा
.....एक कापी ले कर स्कूल जाना .....क्लास में ,मैं और रतन साथ -साथ बैठते
....उसके पिता सरकारी ड्राईवर थे .....मिनिस्टर की सरकारी कार चलाते थे
रतन के सात भाई थे ...रतन पांचवे नम्बर पे था .....बड़े भाई ....पहलवान किस्म
के थे .....जिनसे पूरा मोहल्ला डरता था ......रतन की दोस्ती ने मुझे भी ...दादा बना दिया
.....हम टीचर से नहीं डरते थे ....बल्कि टीचर हम से डरते थे ......
फिल्मों का देखना कम नहीं हुआ .....हम को कुछ ऐसे दोस्त मिल गये जो हमें
फ़िल्में दिखा देते थे .....कालेज के स्टुडेंट यूनियन का इलेक्शन भी हम लड़वाते थे ...
और हमारा साथी ही जीता था .....
पढाई कम हो गयी ....बाबूजी को यह सब पता चल गया ....और खूब डांट पड़ी
तभी हमें एक और दोस्त मिला .....गुरचरण सिंह ....सरदार था .......वह पढाई में अच्छा था
..जो हमें हेल्प किया करता था .....पर हम तीनों ही फिल्मों के शौकीन थे ....अब हम लोग
यह सोचने लगे कैसे मुम्बई पहुंचा जाय ....
हम तीनों ....बारह क्लास पास कर चुके थे ......रतन ने मुम्बई का रास्ता पकड़ा
उसको फिल्मों में काम करना है ....उसके बड़े भाई जगन मुम्बई ही थे ....वह वहीं नौकरी
करते थे .....सरदार गुरचरण ने पी .डव्लू .डी.में नौकरी कर ली ....
मैं अकेला हो गया.........
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बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteआईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
ReplyDeleteआचार्य जी