Wednesday, June 16, 2010

हजपुरा

....मैं लखनऊ ,छोड़ के पूना आ गया ....फिल्म क़ा ज्ञान लेने

रैगिंग के डर से ....दो चार दिन अपने एक पहचान वाले घर ही रहा

पर बकरा कब तक जान बचाएगा .....एक दिन किरण कुमार और

रजा मुराद के हत्थे चढ़ गया .....बड़ी -गाली गलौज से बात की ॥

वैसे मैं भी थोड़ा सा बदमाश जरुर था ....लेकिन दोनों ही बडे लम्बे से

थे ......मैं भी डर सा गया .....मुझे पकड़ के स्वीमिंग पूल की तरफ ले गये

मुझे बहुत धमकाया .....और कहा .....हम दोनों को रोज जब भी मिलो

झुक के आदाब किया करो .....मैं उनकी हर बात में हाँ ही हाँ कह रहा था

कैसे भी कर के जान बची .......हॉस्टल में मुझे जगह मिल गयी

रूम नंबर नौ था ....और मेरा रूम पार्टनर गोस्वामी था .....पहले छे महीने में

फिल्म में कौन ..कौन से ख़ास सेक्शन होते हैं ,जो एक फिल्म को पुरी शक्ल

देतेहैं .....मैंने एडिटिंग के बारे में जाना ,साउंड रेकॉर्डिंग क्या होती है ,म्यूजिक

क्या रोल अदा करती है फिल्म के बनने में .......कैमरे के बारे में जान कारी हासिल की

.........निर्देशन क्या है ......?और फिल्म की स्क्रिप्ट क्या होती है ....?

इसी के साथ -साथ हम सभी लोग अलग अलग देशों के महान निर्देशकों की फ़िल्में भी

देखते .......समय को जैसे पंख लग गये हो ....उस तरह उड़ने लगा ..यहाँ का सुख शब्दों में नहीं कहा जा
सकता ..........दुनिया भर की फ़िल्में देखना ....उसको पढना ............उसको जानना ......

जिसको जान कर बड़ा आनन्द आ रहा था .....और एक बात हमेशा याद रहती

....अगर मैं यहाँ नहीं आता तो ........जीवन ...मिल कर भी ना मिलने जैसा होता

......यहीं पर कुछ नये दोस्त मिले ....के सी ,सतीश शर्मा ,आनन्द कर्णवाल ,आशोक घई

सुभाष डे ,यह सारे दोस्त ,आज तक हैं

एक साल की पढाई पूरी की .....कुल तीन साल का कोर्स था .....लखनऊ पहुंचा

मेरे बाबुजी बहुत खुश थे .....इस पढाई से .....भविष्य क्या होगा ,नहीं मालूम था ।

कहानी कार रामलाल जी से मिला .....वह भी बहुत खुश थे .....उन्होंने मुझे

कुछ अपनी कहानी की किताबे दी .....और मुझसे कहा ......गुलज़ार (साहब )को

दे देना ....मैं भी पहली बार गुलज़ार (साहब )क़ा नाम सुन रहा था ....फिर खुद ही राम लाल

जी ने बताया ....यह भी लेखक हैं उर्दू में लिखते हैं ....वैसे राम लाल जी भी उर्दू और हिंदी

दोनों में लिखते थे .....कहने लगे फिल्मों में गीत लिखते हैं यह सन ७० था ।

मैंने वह दोनों उनकी किताबे ली .....और उनसे वादा किया ...उन तक पहुंचा दूंगा

जून क़ा महीना था ......मैं अपने पुराने दोस्त रतन के घर आया ....वह प्रभा देवी में रहता था

अब मैं पूना जाने से पहले मुम्बई आ गया था...गुलज़ार साहब को वह किताबें जो देनी थी

उस समय बम्बई में बारिश हो रही थी .....गुलज़ार साहब क़ा पता नहीं मिल रहा था

मैं राजश्री के आफिस पहुंचा ....उनको भी गुलज़ार साहब क़ा पता नहीं मालूम था ....एक दिन रह के मुझे

पूना जाना था ......फिर उन्हीं के आफिस से जब निकल रहा था .....तभी एक आदमी ने मुझसे कहा

पाली हिल पे कोजी होम में रहते हैं ....


दुसरे दिन सुबह -सुबह पाली पहुंचा .....कोजी होम को खोजा ......चार बिल्डिंगे थी कोजी होम के

नाम से ....किस्में गुलज़ार साहब रहते हैं .....हलकी -हलकी बारिश हो रही थी ....छाता -वाता

रखने की आदत थी नहीं .....किताबे एक लिफ़ाफ़े में डाल रखी थी .....एक अजनबी शहर में कोजी होम

के कम्पाउंड में खडा भीग रहा था ......मेरे पास से एक आदमी गुजरा ,मैंने उससे पूछा गुलज़ार साहब से

मिलना था ....उसने कहा ऐ ब्लाक में चले जाओ ....निचे चौकीदार से पूछ लेना वह बता देगा .....

सच कहता हूँ ....पहली बार मैं लिफ्ट में चढ़ रहा था .....फ़्लैट नम्बर ९१ था नवा महला

यह भाषा बम्बई की है .....अब आप हजपुरा की जगह ९१ कोजी होम के नाम से पढ़ेगें .......

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