Tuesday, June 1, 2010

हजपुरा

सन ५२ था ,और मैं दूसरी क्लास में था ,घर से बहुत नजदीक था स्कूल

पैदल ही मैं जाता था ...मेरे साथ ...रिफूजी बैरेक में रहने वाले वह

लडके भी थे .....जो बंटवारे के बाद ,यहाँ रहने के लिए उन्हें

घर मिला था ....मेरा साथ पंजाबी लडकों के साथ बीतता .....

हर परिवार के पास एक कहानी थी ....कैसे अपना सब कुछ छोड़ के

हिदुस्तान आये ....तीसरी क्लाश में पहुँचते ...मेरे सारे दोस्त पंजाबी

लडके हो गये ....सभी पंजाबी बोलते, सभी खूब बदमासी करते ...यह सारे

गुण मुझ में भी आ गये .....खेलते बहुत थे ,घर के बगल टीन ग्राउंड था ...

जहाँ पर सारे खेल, खेले जाते थे ....मैं भी सारे खेल खेलता .....देख -देख कर

हम लडके भी सीख जाते ,और उनकी नक़ल कर के हम बड़े होने लगे
स्कूल की की जब भी ...छुट्टी होती ...मैं अपने गाँव चल देता

जहाँ मेरे दोस्त मेरा इन्तजार करते ....गरमी की छुट्टी होती, तो दो महीने

गाँव रहता ....दिन भर आम की बाग़ में घूमना .....लडकों के साथ लखनी

खेलना ....शाम होते ही ....दादी से डांट खाना ...कपडे गंदे हो जाते ....घर में

हैण्ड पाईप से नहाना .....और पानी इतना ठंडा होता ,की एक बाल्टी से ज्यादा नहा

ही नहीं पाते .....शहर में बिजली थी ....यहाँ लालटेन .....मैं शाम को तीनों लालटेन

को साफ़ करना ...उसमें मिटटी का तेल भरना ....और सब को जला देना ,मेरी इस

आदत से दादी बहुत खुश होती .....

कच्चे आम खा कर दांत इतने खट्टे हो जाते की खाना ठीक से खाया नहीं जाता

दादी इस बात से बहुत गुस्सा करती ....दो महीना बीते -बीते पता नहीं चलता ...और मुझे

पढने के लिए लखनऊ जाना पड़ता .......

फिर से पढाई शुरू ....जो सब ,अच्छा नहीं लगता .....मुझे .....मेरा मन खेती

करने में जादा लगता था....मैं पढाई से जी चुराता था ....पिता जी डांट खाना .....मैं पिता जी

और दो चाचा लोगों में ऐसा फंस गया की मुझे पढना ही पड़ता था .....इन सब से एक

फायदा हुआ ....मेरी पढाई भी अच्छी हो गयी ....और खेलने में भी अव्वल हो गया

क्लास सात में जब पहुंचा .....पहली बार मेरे स्कूल ने लखनऊ रीजन में जूनियर रेस

में मुझे भी अपने स्कूल की तरफ से भेजा गया .....मैंने आठ सौ गज की दौड़ में भाग लिया

और मै सेकण्ड आया ....इसके बाद पन्द्रह सौ गज की रेश हुई ......उसमें भी मै सेकण्ड आया

मेरे टीचर ने मुझे अपने कंधे पे उठा लिया .......और दुसरे दिन मेरा नाम लखनऊ से

निकलने वाले पेपर स्वतंत्र भारत में नाम निकला .....जिसे देख कर मेरे पिता पहली बार बहुत खुश

हुए ........आज जब मैं अपने बचपन की बाते बताता हूँ .....तो बताते समय, मैं कहता हूँ जब

मैं सातवीं क्लास में था ..........मेरे बच्चे मेरा मजाक करते हैं, पापा जब आप सातवीं क्लास

में थे तभी आप ने सब कुछ किया था ....

पहली बार , सातवीं क्लास में मैं फेल हुआ था ....सातवीं क्लास में ही मेरा बायाँ हाथ फरेक्चर हुआ था....... । सन ५७ में ही नये पैसे चलना शुरू हुआ था ....कनेडियन स्टीम इंजन भी ५७ में आया था

हमारे घर के सामने ,रहने वाले सेवादास ,मेरा हाथ देसी तरीके से बैठाने लगे .....वह दर्द का

मंजर आज भी मुझे याद है .....सन सत्तावन में मैं सातवीं क्लास में था .....मैंने सातवीं क्लास

दो बार पढ़ी .....दूसरी बार मुझे मिला ....मेरा दोस्त रतन ......जो मेरे जीवन में मुम्बई तक साथ

आया .....दोस्त तो बहुत थे ,पर जो बात रतन में थी ......वह किसी दोस्त में नहीं थी ...

मैं सातवीं क्लास से फिल्मी बातें करने लगा .....सब से पीछी वाली सीट पे बैठना ....और पढाई

से जी चुराने लगा ....कहानी सुनना और सुनाना होता .....टीचर मुझे मानते थे ,मैंने स्पोर्ट्स

में मैंने कान्यकुब्ज वोकेशनल स्कूल का नाम किया था

मैं फ़ुटबाल भी बहुत अच्छा खेलता था ..........सन सत्तावन में फिल्म मुगले आज़म रिलीज

हुई थी .....बच्चे तो बच्चे होते हैं ...मैं मुस्करा के ...चुप हो जाता

2 comments:

  1. sir aap mahan hai aap ki story padhkar koi bhi aashman tak ja sakta hai.

    aaj mai bhi aap ke ghyan se mai bhi bhi yahn tak pahucha hoon
    Thanku Sir

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  2. THANKU VERY MUCH

    NEERAJ MISHRA

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