.......धन्नों बुआ ....गाँव भर की बुआ थी ....पांच भाईओं की बहन
सभी भाई अपना -अपना परिवार ले कर अलग अलग रहते हैं ... ॥
धन्नों बुआ को भी दो कमरे दे दिया था ....तीन बीघा जमीन दे दिया था
उसी से उनका गुजारा होता था .....करीब आठ से दस साल की थी ,
तभी उनका विवाह हो गया था ....और गौना करीब तेरह साल में
.......जब अपने घर पहुंची ,बहुत बड़ा परिवार था ,पाँच भाईओं की दुलारी थी
यहाँ आ कर इतने बड़े परिवार में अपने पति को खोजना ....बड़ा मुश्किल काम
था .......इतना बड़ा घूँघट करना पड़ता था की जमीन के अलावा कुछ नहीं दिखाई
पड़ता था ..दो दिन तक बुआ अपनी सास के साथ सोती रहीं ....पति के दर्शन तक
नहीं हुआ ,उस जमाने में लडकियाँ अपने पति के बारे में कुछ नहीं पूछ पाती थी
बुआ ने कहा, उनके भाई चौथी ले कर आये .....मैंने सोच लिया था ...मैं अपने
भाईओं के साथ अपने गाँव चली जाउंगी .....और मुझे मालूम था मेरी बात मेरे भाई जरुर
मान जायेगें .....जब मैं अपने भाईओं से मिली .....उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी ....पहली
बार मुझे अपने भाईओं पे बहुत गुस्सा आया । उन्होंने ही मुझे बताया गौरी शंकर जेल में बंद हैं
........मुझे तब तक जेल का ,क्या मतलब होता है मुझे नहीं मालूम था । और जेल भी गये हैं देश
को आजाद कराने के लिए ....कब आयेंगे किसी को कुछ नहीं मालूम था .....गौरी शंकर मेरे पति थे
महीना बीत गया .....इसीबीच पुलिस आयी और हमारे घर की कुडकी हो गयी ....मुझे मेरे
घर पहुंचा दिया गया ...अपने परिवार से मिल कर बहुत खुश हुई और मैंने यह सोच लिया था
अब मैं कभी भी ...अपने ससुराल नहीं जाउंगी ........करीब दो महीने बाद ....मैं विधवा भी
हो गयी ......भैया ने बताया ,गौरी शंकर की मौत जेल में हो गयी .....मुझे मेरी माँ ने सफेद
साड़ी पहनने को दिया..तब मुझे सफेद और रंग दार में बहुत ज्यादा फर्क नजर नहीं आता था
माँ और पिता के मरने के बाद ....भाई लोग अलग हो गये ,मेरा लगाव सब से
छोटी भाभी से था ......मुझे भी हिस्से में जमीन मिली और आम की बाग़ में से तीन पेड़ भी
मिले ......मैं ...बुआ ने बताया ...उनका अलग रहना ....भाईओं को अच्छा नहीं लगता था
हर कोई यही चाहता था ..मैं उनके साथ रहूँ ......मैं आजाद रहना चाहती थी ....और वही
किया ....बुआ कहती थी उनके खेतों में खूब पैदावार होता था .....और मेरे आम के पेड़ों में भी
खूब आम लगते थे .....अकेली जान इतने आम कैसे खाऊं आम को उस समय बेचने की रवायत
नहीं थी .......मैं आमों को गाँव में बाँट देती थी .......अनाज का भी यही करती थी .....तभी से राज
कुमारी से मैं धन्नों बुआ हो गयी ।
वक्त के साथ -साथ दिन बीतने लगे .....बुआ चालीस पार कर चुकी थी देश आजादहो गया था
एक दिन एक अजनबी आदमी इनके घर आया और अपने आप को गौरी शंकर बताने लगा ......
बुआ ने उसे पहचाने से मना कर दिया ....और सीधे ही कह दिया .....मैं बिधवा की तरह जीती रही
अब मैं सोहागन बन के नहीं जीना चाहती .......भाईओं ने भी समझाया .....पर धन्नों बुआ जो जिन्दगी
जी रहीं थी ....उसको अब छोड़ना नहीं चाहती थी ......
गौरी शंकर चले गये .......उसके बाद कभी नहीं आये ......और न ही बुआ का हाल
जाना ......सन पचास था ...मैं करीब चार या पाँच साल का था .....मैं जब शहर से गाँव आता
था ...मैं धन्नों बुआ के पास सोता था ....उस समय वह करीब साढ़ के करीब थी ...मुझे बहुत
प्यार करती थी ....दो महीने इनके साथ रहता था ....आमों का मौसम होता ....मुझे आम रस
देती थी उसके साथ रोटी ........ अक्सर मुझसे कहती .....जब मैं मरूँ मुझे चन्दन की
लकड़ी पे जलाना .....और मैं पूरा वादा करता ....वैसा ही करूंगा ...जैसा वह कह रहीं है ......
......पर मेरे वादे सब झूठे हो गये ....सत्तर साल की उम्र में उनका देहांत हो गया .....मै जा भी नहीं
पाया उनकी जमीन पेड़ हम लोगों को मिल गये ......
धन्नों बुआ जब मरी .....हम लोगो ने गौरी शंकर जी को बुलाया .....लेकिन उन्होंने बहुत कहने
पे मुखाग्नी दी .........धन्नों बुआ की एक छोटी सी बक्सी थी ......उसे जब खोल के देखा गया
उसमें एक लाल रंग की साड़ी थी ...जिसे पहनके उनकी शादी हुई थी .....
वह शादी का जोड़ा ....मेरी माँ ले आई थी ....और मेरी पत्नी को दिया था .....और एक ही
बात कही थी .....जीना तो .....धन्नों बुआ की तरह जीना .......
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very good
ReplyDeletesee this
http://godlove2011.blogspot.com/
अच्छा लिखा आपने, दर अशल मैं भी बुआ के बारे में लिख आरहा था लगभग ऐसी ही कहानी ..| लगता है उस समय परिस्थितिय कुछ ऐसी ही रही होंगी |
ReplyDeleteअछे लेख के लिए आभार |