Friday, June 4, 2010

हज़पुरा

......लखनऊ में मैं ....अकेला हो गया .....मन नहीं लगता था ...बी कॉम की पढाई

शुरू की ......रतन के ख़त में कहीं ,यह जरुर लिखा होता था .....मुम्बई बहुत आगे

हर मामले में है ....रतन को गेज्बो रेस्टोरेंट में काम मिल गया .....

कुछ महीनों बाद ....रतन वापस आ गया .....रतन को मिलेट्री में कलर्क

की नौकरी मिल गयी .....फिर से हम तीनो दोस्त मिल गये .....यह वह दौर था ...फिल्मों

में कैसे प्रवेश किया जाय .....मैंने कहा हमें कुछ सीखना चाहिए ....क्या सीखा जाय ॥

रतन कहता था ...वहीं जा कर ही कुछ सीखा जा सकता है ....

मैं घर का बड़ा लडका था ....मैं भाग कर नहीं जा सकता था ........इसी दौर में

मुझे पता चला .....पूना में फिल्म की पढाई के लिए एक कालेज है .....लेकिन बी कॉम पास

होना जरूरी है .....इसी दौर मेरी पहचान राम लाल जी से हुई ....जो जाने माने लेखक थे

कहानी पढने का शौक तो बचपन से ही था .......पर कहानी लिखना ....राम लाल जी से मिलने

के बाद शुरू किया ......तभी ही रंजीत कपूर से मुलाक़ात हुई .....हमारी ही उम्र के थे ......तब तक

उन्होंने भी कुछ नहीं लिखा था .......मेरा उठना -बैठना उन लोगो से शुरू हो गया ...जो नाटक खेलते

थे .......इनमे से कोई पढाई नहीं कर रहा था ....या तो नौकरी कर रहे थे ....या खाली थी .....उस

समय लडके बारह क्लाश पास कर के ....किसी न किसी काम धंदे में लग जाते थे ...

मैंने बी कॉम पास कर लिया था ....पिता जी नौकरी की बात करने लगे थे माँ शादी के

लिए लडकियाँ ,देखने लगी ......इसी बीच मैंने पूना से एडमीशन के लिए फार्म मंगवा लिया

पूना में प्रवेश से पहले ....एक रिटेन एक्जाम होता था ......मैंने दिल्ली जा कर दिया भी ....

यह सब मैंने छिपा कर किया था .....बी कॉम तो पास हो गया .....लेकिन पूना से कोई बुलावा

नहीं आया ......मैंने यम .कॉम में एडमीशन ले लिया .....माँ शादी पे बहुत जोर दे रही थी ,पिता

जी ....नौकरी खोजने पे दबाव डाल रहे थे ......

रतन ने अपनी नौकरी का ट्रांसफर मुम्बई में ले लिया था .......सरदार दोस्त की शादी

हो गयी ......मैं अपनी पढाई करने लगा ...कहानियाँ लिखने लगा ......राम लाल जी से मिलता रहता

और उन्हें अपनी लिखी हुई चीजे सुनाता .......कहीं छपाने की हिम्मत न कर पाता इसी बीच

राज विसारिया के बारे में सुना जो अंग्रेजी प्ले करते थे ......

मैंने यह अब सोच लिया पहले पढाई पूरी करता हूँ .....फिर सोचूंगा क्या करना है

और क्या नहीं करना है ....रतन ने जो ख़त लिखा ....वह फ़िरोज़ खान के पास सहायक हो गया

मैं एक्टर फिरोज खान की बात कर रहा हूँ .......अब उसके हर ख़त में .....भर पूरफिल्मी कहानी

होती ....मैं पढाई को अधूरा नहीं छोड़ना नहीं चाहता था .......यम .कॉम .का फायनल य्ग्जाम

दिया ....और पूना का भी लीखित एग्जाम दिया ......और शुरू हो गयी ....रिजल्ट की ....एक

व्योपार भी सोचा .....प्रिंटिंग सुरु बी ........मशीन और जगह भी देख लिया ....कुल धन

लग रहा था .....करीब चालीस हजार ......

.....पूना से बुलावा आ गया ....इंटर व्यू के लिए ....अब जा कर पिता जी को

खुल कर सब कुछ बता दिया ......पिता जी ने जाने दिया ....यह पढाई भी उनकी समझ

में आ गया .....तीन साल का डिप्लोमा कोर्स था .......इस कोर्स के बाद दूरदर्शन में भी

काम मिल सकता था ....हमारे देश में ....दूरदर्शन ..............


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