Wednesday, April 21, 2010

माँ

सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था ,एक दिन पंडित जी का जवान बेटा गुज़र गया ,
बहुत बड़ी खेती थी ...अब उसे कौन देखेगा ? यही विचार उनके मन में गूंज रही थी ,
खुद भी साठ से ऊपर हो चुके थे ....उनका वंस कैसे चले गा ? बेटे के अचानक गुजर
जाने से ....उसकी पत्नी पेट से जरुर थी ....बेटे के इस तरंह गुजर जाने से ....पंडित जी
की पत्नी ....अपने आप को नहीं सभाल पायी ...और आठवे महीने में ही ....बच्चे को जन्म
दे दिया ......एक आस थी ...वंस चलने की , लगता था ....वह भी नहीं पूरा अब होगा ।
लेकिन जब दाई ने आ के बताया ...बेटा हुआ ...और ठीक हैं जच्चा और बच्चा । यह सुन कर
पंडित जी .....की खुशी सातवें आसमान जा पहुंची .....अब उनका वंस चल जाएगा .....
गाँव भर के लोगों को .....दावत दी गयी ....नाच गाना हुआ ...घर में भरा अनाज
गाँव भर बांटा गया ....बेटे के गुजरने का गम थोड़ा कम हुआ ....एक आश जगी, आने वाले कल की
उन्होंने बेटे का नाम भी सोच भी लिया .....हिरदय मड़ी ......सब कुछ तो ठीक था ....लेकिन
बच्चा... दूध माँ का नहीं पी पा रहा था .....दाई ने पंडित जी को आ कर बताया ....माँ का दूध
सूख गया है ....दाई ने कहा ...गाय का दूध पिलाने की कोशिश की लेकिन वह भी नहीं पी रहा है
अब एक ही रास्ता है ,.......किसी औरत का ही दूध पिलाया जाय......! पंडित जी
यह सुन कर कुछ समझ नहीं पाए .....दाई को कहा ....मुझे कुछ नहीं मालूम ...मेरे पोते को कुछ
नहीं होना चाहिए ।
दाई ने कहा ........अब एक ही रास्ता है .....हरखुआ की मेहरारू को बच्चा हुआ है
अब आप ही बताओ ...क्या किया जाय ....पंडित जी बोल पड़े .....हमार पोता हरखुआ की
मेहरारू का दूध पियेगा .....? गाँव छोटा था पाँच घर पंडितों का था ....दो घर बनिओं का था
और रहने वाले लोग गाँव के भर जात के थे ......और हरखुआ भर ही था ...
रात दूसरा पहर बीत रहा था .....पंडित जी का पोता .....भूख के मारे रोता ही जा रहा था
......छोटा सा गाँव था .....पंडित जी पोते की बात....सभीको पता लग गयी थी ...माँ का दूध
सूख गया है ....और पंडित जी एक भरिन के शरीर का दूध कैसे पिलायेंगें ?......गांव के बूढे -बुजूर्ग ,पंडित जी के घर के सामने इकठा हो गये थे .....सभी का यही कहना था .....हरखुआ के घर की गाय का
दूध आप पी लेंगे ... ब्च्चुआ को पिला देगें ...पर ओकर मेहरारू का दूध काहे नहीं .....?

हरखुआ की मेहरारू को बुलाया गया .....और पंडित जी के वंस को पालने के लिए
भ रिन ने अपना दूध पिलाया बच्चा चुप हो गया ....साल भर तक वह औरत पंडित जी के
पोते दूध पिलाती रही ....उसका बेटा ज्यादा दूध नहीं पी पाता था...हरखुआ का बच्चा बीमार
रहने लगा ......अब पंडित जी का बेटा .....ऊपर का दूध पीनेलगा ....और अब पंडित जी ...
पोते को ...हरखुआ के घर नहीं भेजते थे ........

इसी बीच गाँव में चेचक का रोग फ़ैल गया ....राम मिलन को भी चेचक निकली .....

और वह नहीं बच पाया ...माँ की कोख सुनी हो गयी .....वह रोई ......बहुत रोई ....उस बच्चे

को देखना चाहती थी ....जिसे उसने दूध पिलाया था ......पर पंडित जी ने ....उस दुखी माँ के

पास अपने पोते को नहीं भेजा .....

..........पंडित जी नहीं चाहते थे .....उनके पोते को किसी की नजर न लगे .....वही उनके वंस को चलाने

वाला था ....धीरे -धीरे समय बीतने लगा बच्चा पाँच वर्ष का हो गया ......इसी बीच पंडित जी

की बहु का देहांत हो गया .....यह सब देख कर बच्चा बहुत सहम गया ....और उस दूध पिलाने वाली

माँ के पास आ गया । हरखुआ की बीबी यह देख कर बहुत खुश हुई ..बहुत अर्से बाद माँ की मुराद पूरी.हुई ..पंडित जी अब हार गये .....उनका पोता फिर से वहीं पलने लगा ...बस थोड़ी देर के लिए अपने घर
एक दूध पिलाने वाली माँ को अपना बेटा मिल गया ...उसका दर्द कुछ कम हुआ ..........
समय के साथ हिरदय मड़ी बड़ा हो गया .....उसके दादा जी भी गुजर गये
......और अपनी दूध पिलाने वाली माँ के साथ रहने लगा ....समय के साथ -साथ

हिरदय मणीकी शादी हो गयी ....उसके अपने बच्चे होगये ..हरखुआ भी मर गया .हिरदय मड़ी ....
उस बूढी माँ को अपने घर ले आया .........जो पत्नी को अच्छा नहीं लगा .....
पति ने सारी कहानी बताई .....उसे जीवन देने वाली औरत उसकी माँ नहीं ...यह औरत है

.....कैसा उसका बचपना बीता......पत्नी... पति के दर्द को नहीं समझ पायी

.............पत्नी ....माँ के प्यार को बर्दाश नहीं कर पायी .....बूढी माँ ....एक दिन घर के कुएं

में गिर के मर गयी ......बेटा इस हादसे को जान गया था .....किसी से कुछ नहीं कहा और एक

शाम ......उसने सोचा वंस चलने के लिए दो बेटे थे ! .......अपने बाबा को दिया वादा पूरा

कर दिया था .....और घर छोड़ के कहाँ चला गया ,किसी को कुछ नहीं मालूम ......





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