रात को खाना खाते हुए ,मेरी पत्नी मेरी ही आखों में ही झांके जा रही थी । मुझसे सच जाना चाहती थी ।
मेरा खाना कम ,डर जायदा मेरे अंदर जादा भरा हुआ था । मैंने खामोशी में सारा खाना खा लिया ,हाथ मुहं
धो कर अपने बिस्तर पर जा लेटा ,आँखों में नीद नहीं थी ,सिर्फ आँखे बंद थी ....क्या सलीम ने अपना नाम
बदल लिया ....फिर मेरे मुहं से श्याम पाण्डेय क्यों निकला ....उसको बचाने के लिए या उसने अपना नाम
सच में बदल लिया ....बचपन की एक बात याद आयी ....मैं उसको श्याम कह के ही बुलाया करता था ...
जब हम बड़े हो गये ....तो एक दिन बड़े दुःख से कहा था .....इस देश में रहना हो तो अपना नाम बदल लो
फिर तो जी सकोगे वरना लोग जीने नहीं देंगें ....
अगर यह सच है तो .....उसका मिलना मुझे सबसे बड़ा दुःख दे कर गया है ....वह इतना कमजोर
हो जाएगा मुझे नहीं मालूम था । सुबह फिर पुलिस उसे ले कर आयी मेरे पास ......
हम दोनों को बीस साल की सजा हुई ....एक ही जुर्म था ....मैं हिन्दू था वह मुसलमान था ....
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