Thursday, February 18, 2010

दादाजी

मधुबाला जी की फोटो ले कर ,मैं अपने दोस्तों से जा मिला और उनसे किसी उर्दू जानने वाले का पता

पूछने लगा .......तभी आसिफ बोला अबे अंधेरी वाली मस्जिद में चलते हैं ,वहाँ कोई न कोई मिल जायेगा ,

आसिफ ने पूछा ,क्या जानना है उर्दू का ? मैं चुप रहा ...और कुछ पूछने से पहले , मैंने झूंठ कह दिया ....

पापा को कुछ जानना है ।

मैं अकेला ही चला .... मस्जिद पहुँच कर ,किसी बूढ़े मुसलमान को खोजने लगा ,एक बूढ़े से

बड़ी -बड़ी दाढ़ी वाले मौलाना नजर आये ...उनसे झुक के आदाब किया और कहा ...चचा जान ,आप से

कुछ पढवाना है । क्या पढवाना है बच्चे ? कमीज के अंदर से मधुबाला जी फोटो निकाली और उलटी

तरफ जो लिखा था वह पढने को कहा ,चचा ने आखों का चस्मा निकाला और आखों पे लगा करदेखने लगे

......हिजय लगा कर पढना शुरू किया ....और कुछ इस तरह पढ़ा ......पंडित जी ,आप की यादें मेरे

जेहन में इस तरह बस गयी हैं वो पंचगनी की चांदनी रात, आज तक नहीं भूली.......मधुबाला


अरे बेटे यह ......कुछ और पूछने से पहले ,उन्होंने मधुबाला जी फोटो देख ली .....और एक लम्बी

साँस खीँच कर कहा इन्हें कहाँ लेकर घूम रहे हो ...?.और यह तो मधुबाला जी का आटोग्राफ है तुम्हें कहाँ

से मिल गया ? इनका भी ज़माना था ...हुशन की मलिका थी, हम भी इन पे मरते थे । यह पंडित जी

कौन हैं .? वोपंडित तो नहीं है ,जिसने बंटवारे में उन्हें पकिस्तान जानेसे रोक दिया था ....कमाल का

इंसान था ....मधुबाला की वजह से वह जानाजाने लगा ,पर कमाल की उर्दू जबान जानता था ...लोग

उससे उर्दू सीखने आते थे ....पर तू कौन है ? और कहाँ से यह मिला ? मैं पंडित जी का पोता हूँ ...यह

कह के मैं वहाँ से भाग निकला .....और घर पहुँच कर सांस ली .....और फोटो भी मधुबाला जी उसी

किताब में रख दी .......

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