बहुत कोशिश करता हूँ ...अपने जख्मों को भूल जाऊं ,पर वो नासूर बन कर बहता ही रहता है लाख मलहम लगता हूँ ........पर ठीक ही नहीं होने देते हैं लोग ,यह कोई और नहीं हैं ,मेरे अपने ही हैं । उसका नाम सलीम था ,उसको
अपने नाम से बड़ी चिड है .....हर तीसरे का नाम जो सलीम है । हम दोनों अक्सर शाम को ,मड के बीच पे मिलते ,यहीं घंटों बैठ कर अमन की बात करते .....कोई रास्ता समझ में नहीं आता .....बात -चीत में अक्सर झगडा
हो जाया करता ......इसी बीच एक दिन ,बम्बई शहर बम्मों से दहल उठा ....सैकड़ो की तादाद में लोग मारे गये ...
पूरी कौम को गुनाह गार साबित कर दिया गया ...
सलीम , मुझसे मिलने नहीं आया ,एक दिन उसके घर गया । मैं जानता था वह भी अपने आप को मुजरिम समझने लगा है .......जहाँ वह रहता था ,पुलिस का जबरदस्त पहरा लगा हुआ था । और सलीम के
घर पर ताला लगा हुआ था ....वह डर गया था ।
दो चार दिन बाद पुलिस मेरे घर आयी और मुझे पकड के ले गयी ....मुझसे शलीम के बारे में पूछताछ
करने लगे । मैं सलीम को दस सालों से जानता था ,हमारी दोस्ती पांचवे क्लास में हुई थी । वह पढने में बहुत तेज था ,क्लाश में अव्वल आता था । पर हमारे टीचर पाण्डेय जी उससे खुश नहीं रहते थे । पर सलीम हमारी
दोस्ती से बहुत खुश था ,वह मुझ पर भी मेहनत करता ,जिससे मैं भी फ़र्स्ट आऊं ......
मैंने पुलिस को बताया ....आप जो कह रहें हैं वह ऐसा नहीं था ...वह तो गोस्त तक नहीं खाताथा ,मुझे भी
पुलिस ने मारा और कहने लगी ,जैसा हम कहते हैं वैसा कहो .....लेकिन एक दोस्त के साथ गद्दारी नहीं की ...
घर आ गया ,सभी ने डांटा इनके साथ दोस्ती करो गे इसी तरह मार खावो गे .......
दस साल बीत गये ,जब भी कहीं बम ब्लास्ट होता मुझे शलीम की याद जरुर आती ...अक्सर भीड़ में
आखें उसे खोजती ......गुस्सा इतना आता कभी मिल जाये तो उसे बहुत मरूँगा ....पर मिला नहीं । आज भी मेरा
जख्म वैसे ही रिस रहा है आज भी उसकी फोटो सब से छिपा कर रखी है जब भी पुलिस वाले किसी आतंकी को
पकड़ते हैं ,मैं सलीम की फोटो उससे जरुर मिलता हूँ ।
एक दिन पुलिस मेरे पास एक आदमी को पकड के लाई ....और मुझसे पूछने लगी आप इसे पहचानते हैं ...मैं
सलीम को पहचान गया ....मैंने कहा हाँ ...जानता हूँ ....पुलिस ने पूछा क्या नाम है इसका ?मैंने कहा श्याम पाण्डेय .....आपका दोस्त है ? हाँ कभी था ....अब नहीं ....क्यों ? पुलिस ने मुझसे पूछा ....अब मिलता नहीं है
इसलिए ......पुलिस उसे ले कर चली गयी । मेरी पत्नी ने मुझ से पूछा ,यह कब से आप का दोस्त हो गया ,आज
तक तो मैं इससे कभी मिली नहीं । यह मेरा वह जख्म है जो आज तक बह रहा था ....अब शायद पूज जाय
जारी .....
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बहुत अच्छी कहानी है । अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा। धन्यवाद्
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ReplyDeleteभंगार जी !
ReplyDeleteआप ने बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर बेहद खूबसूरत तरीके से प्रकाश डाला है.....इस कहानी की शैली में भी यह बात अपनी झलक देती है कि आप ने ज़िन्दगी में बहुत कुछ देखा और इन सारे झमेलों में गुलज़ार साहिब जैसे महान शायर का साथ भी प्राप्त किया...इस खुशकिस्मती के लिए और इतनी बढ़िया सी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...!
shubhkaamnayen....
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनाएं यूं ही खूबसूरत रचनाआें को पोस्ट करते रहें।
ReplyDeleteAnek shubhkamnayen!
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