Wednesday, February 10, 2010

ससुराल

चारो तरफ अन्धकार था ,मैं आखों के सहारे नहीं चल रहा था ,मैं एक अंदाजे से पैर रखता और आगे बढ़ जाता ....यह क्रम कब तक चला मुझे नहीं मालूम ...पैर से कुछ लगा ,अँधेरे में कुछ दिख तो रहा नहीं था ...फिर भी अंदाजे से यह जानने की कोशिश की ,क्या है यह ?झुक कर हाथ से छुआ ,फिर भी कुछ समझ नहीं आया . सोचने लगा
क्या हो सकता है ,मेरी जेब माचिस थी उसको निकाला ,जला कर देखने की कोशिश की
एक लाश पड़ी थी ,किसी औरत की थी . मुहं से चीख निकलते –निकलते रह गई ......

मैं तेजी से चलने लगा ,कैसे भी कर के वहाँ से भाग जाना चाहता था ,गिरता पडता मैं वहाँ से भाग निकला .सडक पे पहुँच गया ,दूर से आती किसी गाड़ी की रोशनी में मुझे समझ में आया मैं तो लार पुर की सडक पे आ गया हूँ . थोड़ी सी हिम्मत आई
नयी –नयी शादी का यही हल होता है ....ससुराल गया था बीबी से मिलने ...और माँ ने कहा था ससुराल में रुकना मत ....माँ की बात मानी और दिन ढलते ढलते निकल लिया था . पर रास्ता भूल जाने कारण सडक तक पहुँचने में इतनी देर लग गई ....
सामने से आती रोशनी करीब आ गयी ,देखा तो रोडवेज की बस थी वगैर हाथ दिए रुक गयी .मैं उस में सवार हुआ और इत्मीनान की साँस ली (ज़ारी)

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