Thursday, March 4, 2010

सत्तू

बेबी का बेड रूम ,पहले महले पे था ,मैं डरा हुआ सीढियॉ चढ़ने लगा । ऊपर से उतरते हुए बेबी की माँ मिली

मुझे देख कर मुस्करा दिया ,जैसे कह रहीं हो ,जाओ ....हलाल होने । मैं बेबी के कमरे के बाहर ,जा कर खड़ा

हो गया । मुझे देख कर ,अंदर बुलाया .....अंदर आ जाओ । मैं झिझकते हुए अंदर गया ...सर झुका कर खड़ा

हो गया ,हर साँस के साथ ,एक डाँट की उम्मीद करने लगा । वह मेरे करीब आ गयी ,शायद उन्होंने मुझे पढ़

लिया ,मेरे डर को जान लिया .......वो खामोश थीं ...जब मैंने उनकी तरफ देखा ,वो तो एकटक मुझे ही

देख रहीं थी । जब मेरी आँखे उनसे मिली तो ....वो जोर हंस पडी , फिर कहने लगी ,क्यों घबरा गए हो ?

.......मैं चुप ही रहा ,फिर कहने लगी ....सत्तू कब खिला रहे हो ?.....फिर भी मैं चुप रहा । बोलो चुप क्यों

हो ?..........मैंने हकलाते हुए कहा .....मैं .....छुट्टी चाहता हूँ । ......यह सुन कर ,कुछ समझी नहीं ,फिर

से पूछा ...छुट्टी ....छुट्टी क्यों ?....मैं आप का ........मैं ...आगे मैं बोल नहीं पाया ।

मतलब काम नहीं करना ,नहीं चाहते हो ?

.....जी ।

॥जा सकते हो ,मैं नहीं रोकूंगी ....हाँ अपनी तनख्वाह ...भंडारी जी से ले लेना । अब तुम जा सकते हो

मैं मुडा और चल दिया ,.....तभी फिर से एक बार ,उन्होंने मुझे बुलाया ......राजेश एक मिनट ...मैं

घूमा और वहीं खड़ा हो गया । वह मेरे करीब आयीं ,मेरी आँखों में झांक कर देखा ...और दूसरे क्षण उन्होंने

मेरे चेहरे पे एक चपत लगया , और कहा बहुत डरपोक हो ...इतनी डांट से डर गए ...जाओ .... ।

मैं नीचे तो जरूर आ गया ....लेकिन जो एक डरथा ,वह भाग गया । अब लगने लगा मैंने

बेकार में नौकरी छोड़ दी .....कमरे में पहुँच कर ,यहाँ के कपडे बदले ,अपने पुराने कपडे पहने । तभी

भंडरी जी आ गये ,मुझे कुछ पैसे दिए और कहा .....यह तुम्हारी तनखाह है । मैंने पैसे लिए ,उनकी

तरफ देखा ....,मैं कुछ कहता ,इससे पहले भंडारी जी बोल पड़े ,........बेबी दिल की बहुत साफ़ हैं ,

तुम गलती कर रहे हो ,उन्हें छोड़ के ऐसी नौकरी फिर नहीं मिलेगी ।

मैं कुछ नहीं बोला ,और वहाँ से निकल गया ,बंगले के गेट से बाहर आ गया । और पूरा दिन

घूमता रहा ,अपने लिए कुछ कपडे खरीदे ,.......एक बात जानी इस मुम्बई में ,पेट में कुछ हो या न हो

पर तन पे सुंदर पहनावा जरुर होना चाहिए । एक बात आप लोगो से जरुर छिपा के रखा ,सच कहता हूँ

मुझे बेबी से प्यार हो गया .....सुन के आप लोग जरुर हँसे होगें । हमारे जैसे लाखो लोग होंगे ,जो जेबा जी

से इश्क करते होंगे ..........शाम तक मैं कपास बाडी तक पहुंचा ....बिरजू घर पर नहीं था ,बगल वालों से

चाभी ले कर ,खोली खोली ....भूख लगी थी ,पास रखा स्टोप जलाया ,और खिचडी बनाने लगा ..... ।

रात के एक बजे बिरजू आया ...मुझे देख कर खुश हुआ ....और सच्चाई जान के दुखी हो गया

और गुस्से में जो कुछ उसने कहा ,वह हंसने से कम नहीं .......अबे पटा लिया होता ,वो पटना चाहती थी

और तू भाग लिया .....अबे तेरे साथ -साथ हमारा पूरा गावँ अमीर हो जाता और तुम्हारी सात पुसते

अमीर हो जाती ,और गरीबी की जो बुराई तुमसे चिपकी है वह निकल जाती । मैंने कहा ,तुम मुझे कैसी

जिन्दगी जीने को कह रहे हो ?....एक नमर्द की ......औरत के पैसे पे कब तक कोई जी सकता है ?

चल सोते हैं ,और हाँ ....चलते हुए उसके मैनेजरने मुझे यह लिफाफा दिया था डेढ़ महीने का

वेतन ........ ।









1 comment:

  1. हा हा हा!!! बहुत बढ़िया. वैसे बिरजू सही कह रहे थे................ कृपया जारी रखें.

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