Monday, March 22, 2010

सत्तू

पुलिस ,पूछ पाछ के चली गयी ,मैं पुलिस के व्योहार से मैं डर गया

इसी सोच में पड़ा रहा ,क्या सच में किसी चंगुल में फंस रहा हूँ ?

मुझे यहाँ से भागने में समझदारी लगी ,सब कुछ था तो ,पैसा टिकट ,

फिर एक ख्याल आया ,मेरे जाने से ,पुलिस का शक पक्का न हो जाय ।

की मैं ही गुनाहगार हूँ .......यही सब सोच कर मैंने जाने ईरादा कैंसिल किया

रात हो गयी ,बिरजू भी आ गया था ,मैंने उससे कहा ,मेरा मन यहाँ

लग नहीं रहा है ......यह सुन कर ,बिरजू बोला ... गाँव जाने का मन हो रहा है ?

........मैंने सर हिला कर जवाब दिया ......फिर कहने लगा ....अभी कैसे जा सकते हो !

पुलिस ...से पूछ कर जाना पड़ेगा ,वरना उनका शक पक्का हो जाएगा ,और मैं भी

तुम्हारे साथ लपेटे में आ जाउंगा ....तो मैं क्या करूं .....कुछ दिन इन्तजार करो ,बिरजू ने

कहा .......

मुम्बई आये थे काम की तलाश में ......और किस जंजाल में फंस गये ,पूरी रात

इसी विचार में गुजर गयी ......सुबह आँख खुली तो बंगाली औरत चाय ले कर खड़ी थी ,अब मैं

हर किसी से डर लगने लगा .....कमरे में बिरजू भी नहीं था ,बंगाली औरत मेरे डर को भांप गयी

.......मुझे चाय देते हुए .....पूछा उसने ....इतना डरा हुआ क्यों है तू ?

......मैंने डरते हुए कहा ...मुझे यहाँ से भेज दो ......गाँव जावो गे ....?

.....मैंने डरते हुए ...हाँ कहा ...

....क्या हो गया ... बोलो ...डरो मत ..मैं कोई रास्ता निकालूंगी ।

.....मुझ में हिम्मत आयी ...मैंने सब कुछ सच -सच बता दिया ... । यह सब सुन कर ,वह औरत

सोचने लगी ......फिर कुछ सोच के बोली ....कोई तुम्हे अपने गैंग में शामिल करना चाहता है ।

....अब तो एक ही रास्ता है ....तुम दोनों को मुम्बई छोड़ के जाना होगा ,वरना तुमको किसी बुरी लाईन

में फंसना पड़ेगा ,और वही करना पड़ेगा जो वह लोग चाहेंगे ....

मैंने पूछा .....पर यह लोग कौन हैं ?

इसका जवाब भी उस बंगाली औरत के पास नहीं था ......

कुछ देर तक वह सोचती रही ....और एक झटके में उठी ....चली गयी । मैं भी कुछ ,समझ नहीं पाया

...फिर मैं कमरे में अकेला रह गया ...तभी एक लडका गली का आया ,और मुझे एक मोबाईल दे कर

चला गया ...मैं कुछ पूछता ....तब तक वह भाग गया .....

मोबाईल देख ही रहा था ....तभी उसकी घंटी बज उठी .....मैं कुछ समझ ही नहीं पाया ...फोन मिलते

ही घंटी बज उठी ,.....फिल्मों की तरह सब हो रहा था ,और मेरे चेहरे का रंग भी उसी तरह बदलने

लगा .... डर के फोन को उठाया .....हेलो बोला था की उधर से ,किसी औरत ने मेरा नाम ले कर ,कहा

.....कैसी तवियत है राजेश ?.....मैं कुछ बोलूँ....इससे पहले वह फिर से बोल पड़ी ,राजेश मैं तुम्हारे

एहसानों को भूल नहीं सकती .....मैंने तुम्हारे लिए एक घर खरीदा है ....उसमें तुम आ कर रह सकते

हो ...आज रात में तुम्हारे पास एक गाड़ी आएगी ,तुम्हे लेने के लिए ....आ जाना वरना जबर्दस्ती

उठवा लुंगी ..... यह सब सुन कर मैं डर गया .....सच में मैं किसी गैंग में फंस गया । अब निकलना

मुश्किल ही है । अब जैसा वह लो कह रहें हैं ,मान लो .....यह सब कुछ मैंने अपने मन से कहा ,नहीं तो

....और किसी बवाल में फंस सकता हूँ ....

पूरा दिन ...गुज़र गया भूख भी मर चुकी थी , मैं किस राह पे जा रहा हूँ ? मैं जीवन में क्या

करने जा रहा हूँ ...क्या मैं गुंडा बदमाश बनने जा रहा हूँ ?.......फिर एक सवाल मेरे मन में उभरने

लगा ....क्या गुंडे बदमाश इसी तरह लोगों को बनाया जाता है ?

वह बंगाली औरत भी मेरा हाल पूछने नहीं आयी ...... शायद वह भी डर गयी ।

बिरजू भी घर ...रात में नहीं आया ......कहाँ है वह ,क्यों अभी तक नहीं आया ?

...मेरी हालत वैसी ही थी ,जैसे किसी बकरे को हलाल करने के लिए ले जा रहें हो ,और वह बकरा

मैं हूँ ....बकरा तो जानवर होता है , मैं तो इंसान हूँ ....मैं भाग भी नहीं सकता ...बस चुप चाप ,देखते

जावो ,किस तरह तुम्हारे साथ पेश आते हैं ,और फिर मुझमें ऐसा क्या मिल गया उन्हें ?

मैंने भी जी को कड़ा कर लिया , एक कहावत मेरी माँ कहा करती थी, जब सर दिया ओखली में

तो मूसलों का क्या डर ,यही सोच लिया मैंने भी ....अब डरना क्या ,देखा जाएगा जो होगा ।

रात करीब एक बजे ,मेरे पास एक आदमी आया और मुझे चलने को कहने लगा .....मैंने उस आदमी

को ध्यान से देखा ...और अपना कुछ समान लिया ,सत्तू की पोटली भी ली ,और उस आदमी के साथ चल

दिया .......








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