Wednesday, March 17, 2010

सत्तू

.....मैं अपने आप से , बार -बार पूछने लगा ,जो कुछ मैं कर रहा हूँ

इसका अंजाम क्या होगा ?........क्या मैं गुनाह की चादर ओढ़ रहा हूँ ?

इसी उधेड़ -बुन में बैठा रहा ........कुछ सोच के, नोट जो अभी निकाले थे ,

दुबारा उसी झोले में रख दिया ......और आँखे बंद कर के सोने की कोशिश

करने लगा ,पर नीद का कोसों तक पता नहीं था फिर सोचा मैं इस झोले

को किसी मंदिर में रख देता हूँ .....फिर ख्याल आया ,काली मंदिर जाउंगा

वहीं दान पेटी में डाल दूंगा ...यही सोच के सोने कोशिश की ....और सच कहता हूँ

कब आँख लग गयी ,पता ही नहीं चला

शाम को करीब छे बजे आँख खुली .....दोपहर को खाना भी नहीं खाया था

भूख भी ,जोरो से लगी थी ......और मन भी कहींजाने का कर रहा था तभी याद आया

माँ का दिया हुआ ,सत्तू का ख्याल आया ...पास ही टंगे झोले को उठाया ,एक कपडे की पोटली

में था ,खोल के देखा लेकिन ,अभी ख़राब नहीं हुआ था एक थाली ली ,उसमें थोड़ा सा लिया ,

पानी मिला कर सान लिया ,थोड़ा सा नमक डाल लिया ,एक हरी मिर्च ली और खाना शुरू

किया .....बहुत दिनों बाद माँ के हाथ का बना कुछ खा रहा था ,सच कहता हूँ ...माँ के हाथ

में अमृत होता है ,खूब मन से खाया ,बाकी सत्तू उसी कपडे में बांध के रख दिया फिर कभी

खाऊंगा .....तभी ख्याल आया ,जेबा जी को भी सत्तू खिलाने का वादा किया था ,नहीं खिला

पाया उन्हें ,अब तो साथ भी छूट गया


रात आठ बजे मैं काली मंदिर पहुंचा ,पहले मैंने ,एक काली माँ की फोटो खरीदी ,मेरे

हाथ में झोला था ,उसे भी दान पेटी में डालना था ,लेकिन दान पेटी का मुहं बहुत छोटा था ,

नोट तो चला गया ,लेकिन पिस्तौल का क्या करूं ....वह कहाँ रखूं ? यही सोचता हुआ ,मंदिर से

बाहर गया ......पास ही एक नाला बह रहा था ,इतना गंदा पानी था उसका , गंदगी को गंदगी

में फेंक दिया .....इसके बाद इतना हल्का हो गया ,जैसे कोई भार मैं ढो रहा था अभी तक

मंदिर में दुबारा गया माँ के सामने खड़ा हो ,माफ़ी मांगी और कहा ....आज के बाद कभी भी

लालच नहीं करूंगा ....माँ कल से आज तक ठीक से सो नहीं पाया ...अब ..मन इतना निश्चिंत था

जिसको मैं बयान नहीं कर सकता ...जैसे मैं मुड़ा मेरी नजरे किसी खूबसूरत लडकी से जा मिली

वो भी ...मेरी आँखों में झांक रही थी .....दुसरे पल हम दोनों एक दुसरे को पहचान गये .....यह जेबा थी

मैं चुप -चाप वहाँसे चल दिया फिर मैंने अपने आप से पूछा ...जेबा जी मंदिर में ?

तेजी से मैं अपने ऑटो के पास आया .....और सीधा यारी रोड की तरफ चल दिया ,रास्ते में कई

पैसेंजर मिले ,पर मैंने किसी को नहीं लिया .....पहले मैं अपनी खोली की तरफ मुड़ा ,काली माँ की फोटो

मैंने चाय वाली बंगाली औरत को दिया ....वह मेरे इस अंदाज से बहुत खुश हुई ...और फिर बोल पड़ी

इतनी जल्दी नहीं थी ....फिर भी तू ले आया ....खूब भालो कह के , फिर माँ जी को उसने प्रणाम किया॥


और हां ....सुन कोई दो आदमी खोजने आये थे ....मैं एक पल को डर गया .....

मैं कुछ बोला नहीं ...और वहाँ से निकल लिया ....मेरे मन में यही ख्याल आ रहा था ..

कौन मुझे खोजने आया था ? रिक्शा ले कर यारी रोड पहुंचा ....बेला जी की बिल्डिंग के सामने लगा

दिया और इन्तजार करने लगा बार बाला का ......

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