.....दोपहर को ,बिरजू मेरे लिए खाना ले कर आया ,मेरा डरा हुआ चेहरा देख कर ,
उसने पूछा .......क्या बात है ?....चेहरा तेरा इतना मुरझाया हुआ क्यों है ?यह डान,
मुझे कातिल बनाना चाहता है ....उस हीरो खान से मेरी क्या दुश्मनी है ? बता तू,बोल
...बोल ना चुप क्यों है ? बिरजू मेरी तरफ एक -टक देखता रहा .....,देख ...यह डान हमें
उस जुर्म में फसाना चाहता है ,जो हम करना नहीं चाहते हैं .........,और अगर एक बार
गुनाह कर दिया .....फिर हम उस दलदल में फंस जायेंगे ,जिसमें से फिर निकलना नामुमकिन
हो जाएगा .....
बिरजू ने कहा , देख राजेश ......यहाँ से निकलना है तो , हमें वही करना होगा ,
जो यह कह रहा है ....वरना यह हमें मार देगा , तू यह खाना खा ....मैं सोचता हूँ , कोई रास्ता
मिलता है , या नहीं .......
बिरजू खाना रख के चला गया ......खाना खाने का मन नहीं कर रहा था ......बस यहाँ
से भाग निकलने का रास्ता खोज रहा था .....यही सब सोच रहा था ,तभी खिडकी से देखा ......
एक कार अंदर आ रही थी ....इस कार को देख कर ,मैं पहचान गया ....यह तो ज़ेबा जी कार है !
......लेकिन .......यहाँ ..क्यों ... ? कहीं इन्होने ...तो नहीं ...खान को मरवाने के लिए ....यह सब
खेल किया हो .....और मैं ...जो नराज हो कर इन्हें छोड़ आया .....मुझसे बदला तो नहीं .....ले रहीं
है ........,
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ,मैं तो इस कमरे में कैद था ,बाहर निकलने की इजाजत
नहीं है ....जेबा का और डान से कोई रिश्ता तो नहीं है ? ...मैं अपने आप से ,बहुत सारे सवाल कर
रहा था । पर जवाब न था, मेरे पास ,बिरजू मेरे पास आया और कहने लगा ....राजेश तुम्हे
नीचे बुलाया गया है ....मैं फिर डर गया ....कुछ सोच के बिरजू के साथ नीचे चल दिया ....
नीचे हाल में .....डान बैठा हुआ था ....पास रखे हुक्के को पी रहा था ...डान को देख के
डान कम अवध का बादशाह लग रहा था ....मैं उसके पास पहुँच के, मैंने उसे सलाम किया
....सलाम का जवाब न देकर ,सिर्फ बैठने को कहा । ......मैं डरते हुए पास रखे सोफे पे बैठ गया ,
...कुछ देर बाद ,जेबा जी आयीं ...और डान ने जेबा जी को बहन कह के बुलाया ....वह डान के
बगल बैठ गयी ....जेबा जी ने मेरी तरफ देखा ...बस मुस्करा दिया ......राजेश ,खान को नहीं मालूम
जेबा मेरी बहन है .....और उसको इस बात सजा मिलेगी .....मैंने भी समझाया ....पर वह समझना
नहीं चाहता ....तुम्हे इस लिए चुना गया .......यह जेबा की इच्छा थी ....यह काम तुम करो ....
....तुम बोलते कुछ नहीं हो .....हमें धोखा तो नहीं दोगे ....?.और हमारे धर्म में धोखा देने वाले को क्या
सजा मिलती है , मालूम है क्या ? ....मैंने डरते हुए डान की तरफ देखा ..... ।
....... मेरी जबान ,तलवे से जा लगी थी ......हकलाते हुए कहना शुरू किया ....हीरो खान
को ..मौत की सजा देना ही क्या वाजिब है ..?.किसी और ढंग से ,क्या नहीं समझाया जा सकता ...
यह सुन कर ....डान ने खुश हो कर कहा .....बिल्कुल...क्यों नहीं .......फिर डान ने ज़ेबा की तरफ
देखा और ....पूछा क्या कहती हो ज़ेबा ? भाई जान ,जैसा आप ठीक समझते हैं !...वैसे मैं तो
इतना तंग आ चुकी हूँ की ......उसका मरना ही जरुरी है .....
इतनी नफरत ....ज़ेबा जी का .. ......खान के लिए ......इतना गंदा इंसान है वो ....
मुझमे जैसे कहीं से .... हिम्मत आ गयी ....और बोल पड़ा मैं .....नहीं, इसकी सजा मौत से बत्तर होनी
चाहिए ...और वह मैंने सोच लिया है ,वह मुझ पर छोड़ दीजिये ....किस तरह दूंगा ...पर यहाँ रह कर
नहीं ....मैं अपनी कपास बाडी में रह कर दूंगा .........
डान बोल पड़ा .....हमसे दगा मत करना .... वरना मौत की सजा .....तुम्हें मिलेगी
.....साहब जी मुझे मंजूर है .....
....ठीक है ...तुम जा सकते हो ....अपने घर .....जावो तुम आजाद हो ....और कुछ सोच के ...डान ने दो
गड्डी सौ -सौ का मेरी तरफ .बढाया ...यह रख लो काम आयेगा ....और हाँ ..कल से सब काम शुरू कर
दो .......
मैं और बिरजू , कपास बाडी की अपनी झोपड़ी में आ गये ....हम दोनों इस तरह सोये ,
जैसे लोग गदहे......बेच कर सोते हैं ....पूरा दिन सोते रहे ...पूरी रात सोते रहे ....
जब अगले दिन आँख खुली ......डान के सामने ,एक वादा कर के आ गये हैं ......अब उस सजा को
खोजने लगे जो .....हीरो खान को देनी थी ........ ।
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