Sunday, March 21, 2010

सत्तू

......मुझे ठीक होते - होते चार दिन लग गया ,बिरजू मेरा बहुत ख्याल रखता ।

मेरे खाने पीने का पूरा ध्यान रखता ,सुबह वह खाना बना कर , खुद खा कर

और मेरे लिए रख कर चला जाता । मैं अपनी तीन दिन की बेहोशी को अभी

तक समझ नहीं पा रहा हूँ । क्या मैं सच में बेहोश था , क्या मेरे साथ कोई खेल

हो रहा है .... ?

वैसे इस शहर से ,अब तो डर लगने लगा ...पैसा तो है ...इंसानियत भी है

पर एक मशीन की तरह जिन्दगी है .....मशीन की तरह जीना है तो .....यहाँ रह लो

......खाने को जरुर मिलेगा ....पर शौचालय नहीं मिलेगा ,सडक के फूटपाथ ,पर सुबह लोग

बैठे मिल जायेगें । सोने की जगह भी नहीं मिलती ....परिवार से दूर रहो .... ।

हर कोई किसी न किसी को फंसाना चाहता है .... कैसे फंसा रहा , आप को पता नहीं

चलेगा ,कुछ महीनो बाद आप जानेगें .....आप एक मकड़ी के जाल में फंस चुके हैं ,अब

निकलना मुश्किल है .....जैसे मुझे ज़ेबा जी फंसाना चाहती हैं ,बार बाला मुझे बंधुआ मजदूर बनाना

चाहती हैं .....बंगाली चाय बेचने वाली ....रिश्ते बना कर ,मुझे लूटना चाहती है ..... ।

मैं सब जानते हुए भी .... उसमें भी अच्छाई देख रहा हूँ ....यह मेरी मजबूरी है ...पैर

जमाने के लिए हम चुप रहते हैं ...अपने आप को हम ठगने देते हैं ...यही सब सोचते हुए ,मेरा

समय बीतता । अब फिर से नौकरी की तलाश होगी .....खाली एक दिन नहीं रह सकते ...किसी

पे भार बनना मेरी फितरत नहीं है .......

वह बंगाली चाय बेचने वाली औरत ,मेरी खोली में आयी ....मेरे लिए जूस ले कर.......

......और आते ही डांटने लगी ..... समझाने लगी ....रात को देख का चलाने की बात ...यह जूस पीओ

यह रिक्शा चलाने का धंदा - बंद करो ....कोई और काम खोजो ....न मिले तो मेरे को बताओ ...मैं

देखूं ....किधर - किधर चोट लगी है ?मैंने कमर की तरफ बताया ...वो बेझिजक हो कर देखने

लगी ...तुझे तो अंदर की चोट लगी है ....मेरे पास मालिश का तेल है ,शाम में मालिश कर दूंगी ...

सब ठीक हो जाएगा ...और अब रिक्शा मत चलाओ ? ......... यह जूश पी कर ख़तम कर ,

.....
यहकह कर वह चल दी ......मैं इसके बारे में सोचने लगा ....कमाल की औरत है ,इतना हक़ तो

मेरी माँ ने मुझ पे नहीं दिखाया अभी तक .....

मेरा मोबाईल भी खो चुका था .....माँ से बात करने मन कर रहा था ...बिरजू ने कहीं मेरे

इस एक्सिडेंट के बारे में बता न दिया हो ...वरना वह सुन कर मर जायेगी ...बिरजू से मुझे बात करनी

पड़ेगी ....यही सब सोच रहा था ,तभी मेरी झोपड़ी में भंडारी साहब ,जेबा जी के मैनेजर आये ।

उन्हें देख कर सकते में आ गया ....उन्होंने मुझे कुछ रूपये दिया ....और हवाई जहाज का

टिकट दिया .....कहा यह सब जेबा जी ने दिया है ....और कहा, कुछ दिन के लिए घर चले जाओ .....

फिर जब मन कहे तब आ जाना ,और जेबा जी के पास ही आ कर काम करना ....ऐसा उन्होंने कहा है ।

इतना कह कर वो चले गये .....मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,यह सब क्या है ?

मैं इतना खाश कैसे हो गया ?....जिसके लिए प्लेन का टिकट आ रहा है ....वैगर बात के पैसे दिए जा

रहें हैं ,कोई तो बात है ?........


मैं अपने से बात करता रहा ......कुछ देर बाद एक सादी ड्रेस में पुलिस का आदमी आया

मुझसे पूछने लगा .......क्या ..क्या पूछा जिसका जवाब मेरे पास नहीं था .....मुझे किसी गैंग से मेरा

नाम जोड़ दिया ...पिस्तौल की बात इन्हें कैसे मालूम हो गयी ...?मैं चुप रहा ,सब बातों से मैं अनभिज्ञ

रहा ....

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