Wednesday, March 3, 2010

सत्तू

......जेबा जी का यह पूछना .....मैं हिन्दू बन सकती हूँ ?.........मैं कुछ नहीं बोला ,हमारे

बीच .........एक ख़ामोशी बनी रही । ..........बेबी ने मेरी तरफ देखा ,...कुछ सोच के पूछ

.......इतना चुप क्यों हो गये ?......बस ....ऐसे ही । अच्छा यह बताओ हम जा कहाँ रहें हैं ?

मुझे तो भूख लगी है .....कुछ खिला सकते हो ? रात का दो बज रहा ,क्या खायेगीं ? कुछ भी

जो तुम्हें ..जो आसानी से खिला सकते हो .......मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,वगैर सोचे -समझे

बोल दिया ......सत्तू खायेगीं ......?...यह सुन कर ,उन्होंने कहा ......सत्तू का नाम कई बार सुना है

पर खाया आज तक नहीं ...ठीक है ,खिलाओ । यह कह कर खुद ही की बुने जाल में फंस गया ,अब

क्या करें ? मुझे कुछ सोचते देख कर ,उन्होंने ने पूछा ....क्या हुआ .....सत्तू ख़तम हो गया ?..नहीं नहीं

वह क्या है की .....सत्तू मेरे पुराने घर पे है ,वहाँ चलना होगा । रहने दो घर ही चलो .....रात का सन्नाटा

सूनी सड़कें....मेरे लिए कार चलाना बड़ा आसान था । तेजी से चल दिया ,मुझे वो कन्खीओ से देख लेती ।

बंगले के दरवाजे पे जब कार आ कर खड़ी हुई ......दरवाजा खुला तो सामने हेड लाईट की

रोशनी में ...हीरो खान खड़ा नज़र आया ......मैं इतना डर गया की पूछो मत ....आज यह मुझे जरुर

मारेगा .....गाडी खड़ी हुई .......बेबी गुस्से में कार से बाहर आयीं .....और गुस्से में खान को कहा ...

मुझे क्या समझ रखा ? ...बोलो ..बोलो ...रंडी हूँ ...तुम कहोगे ...और मैं सो जाउंगी ...और तुम्हारी

हिम्मत कैसे हुई ,यहाँ आने की ? यह सुन कर हीरो कहाँ की सिट्टी -पिट्टी गुम हो गयी ....हीरो कुछ

नहीं बोला ....और चुप चाप वहाँ से चलता बना ,पहली बार बेबी का यह रूप देख कर मैं खुद भी डर गया

.....सब लोगों की कही बाते याद आने लगी .....बेबी का गुस्सा ......तोबा ।

बेबी घर में चली गयी .....और मैं नीचे कमरे में जा कर लेट गया .........

रात भर सो नहीं पाया .....सुबह आँख खुली तब ,जब मोहन मेरे लिए चाय ले कर आया । चाय रख कर

...कहने लगा ....सुना रात को हीरो से झगडा हो गया ...बेबी ने बुरा भला कह के ...उसको बहुत डांटा...

ठीक सुना तुमने ....यह सब तुम्हारी वज़ह से हुआ .....तुम न जाते ...कुछ भी न होता ....... । यह सुन

कर मोहन ड्राइवर की जान निकल गयी .....उसका चेहरा पीला पड़ गया ....जैसे उसने ही कोई गुनाह

किया हो .....हम दोनों चाय पीने लगे ..........तभी बेबी की चिल्लाने की आवाज़ आयी ...मोहन के हाथ

से चाय गिरती -गिरती बची । ....भंडारी ,मुझे दुसरा ड्राइवर ला कर दो ,मोहन को बंगले में घुसने मत

देना ..... । अब तो मुझे भी बेबी से डर लगने लगा ......ऐसा लगने लगा ,जैसे किसी जल्लाद रानी के

महल में कैद हो ..... । मन करने लगा मोहन के साथ मैं भी भाग जाऊं ....

मुझसे भी तो कभी गलती हो सकती है ....फिर दूध में गिरी मख्खी की तरहं मुझे भी निकाल फेंक दे गी

भंडारी कमरे में आया .....और मोहन को देख कर बोल पड़ा , मोहन यह तुमने क्या किया ?

बेबी को सब पता चल गया ...तुम क्यों छुट्टी ले कर रात में गये थे ? अब तुम चुप -चाप यहाँ से चले

जाओ वेरना मेरी भी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी । .....मेरी तरफ देख कर भंडारी ने कहा ....तुम्हें बेबी

ने ऊपर बुलाया है .......मेरे अंदर एक डर बैठ गया ... ।

No comments:

Post a Comment