मोहन ने चौकीदार से कुछ बात की ,और फिर मेरे रिक्शे के पास आया ।
मैं पास की झाड़ी में छिप गया था ,कौन सा डरहै ,मुझे नहीं मालूम ,यह सभी लोग
मुझे तलासते रहे ,जहाँ मैं छिपा बैठा था वहीं पे एक थैला पड़ा हुआ था । मैंने उसे
ध्यान से देखा ,उस में कुछ था ,पर क्या था ?.....बाहर से पता नहीं चल रहा था ।
मैंने फिर से मोहन को देखना शुरू किया .....यह सभी लोग मुझे ही तलाश
कर रहे थे ,इन्हें ऑटो की क्या जरूरत पड़ गयी ,थोड़ी देर बाद मोहन चला गया ,पास
पड़े झोले को खोल के देखा .....उसमें दो पिस्तौल और दो गड्डी पांच सौ के थे ,यह सब देख
कर मैं घबरा गया ....तभी मेरे पास का मोबाईल बज उठा ,मैंने तुरंत बंद किया ,बार बाला का
फोन था ,वगैर सोचे समझे मैंने झोले को उठाया ,और चुपके से रिक्शा ले कर निकल गया ।
रास्ते में एक जगह ,रिक्शा रोक कर वह झोला ,सीट के अंदर रख दिया ......और
सीधा बार पे पहुंचा .....बार बाला बाहर ही मेरा इन्तजार कर रही थी ,मैंने घड़ी देखी तो
उसमें अभी चार बजने में आधा घंटा बाकी था,मुझमें एक डर छिपा हुआ था । आज जैसे बार बाला
मेरे ऑटो में बैठी ....पहले उसने मेरा नाम पूछा ...और अपना नाम बताया ......बेला नाम था उसका
आज उसने ...पी नहीं रखी थी ,जुहू पे उसने ,रिक्शा रोकने को कहा ,सामने मिश्रापान भण्डार की
दूकान थी ,मुझे सौ रुपया दिया और पान लाने को कहा ....सादा कलकत्ता पान ......मैं पान लेने के लए
गया .........वह अकेली रिक्शा में बैठी रहीं .......मिश्रा जी बनारस के हैं अब तो रहे नहीं ........
मैं पान ले कर ,बेला जी के पास आया ,उन्हें दिया और बाकी पैसे लौटा दिया ...और
रिक्शा ले कर यारी रोड चल दिया ........जुहू से करीब बीस मिनट लगा ......रिक्शे से उतरने
से पहले कहा ......मैं कार खरीदने वाली हूँ ....तुम चला सकते हो ......? बेला जी, मैं ड्राइवर बनने!
नहीं आया हूँ .....! यह क्यों और कैसे कह दिया ,मेरी समझ में नहीं आया । .......बेला ने सुन कर
....कुछ बोला नहीं .....उतरी और अपने घर की तरफ चल दी .....मैं उसे जाते हुए देखता रहा ...
यह मैंने क्यों कहा .......?कहीं यह बात तो नहीं है ......सीट के नीचे छुपा पिस्तौल और रुपया
तो नहीं बोल रहा है ....माँ कहा ...करती थी ......धन आते ही लोगों का सर घूम जाता है ,कहीं यह सब
मेरे साथ तो नहीं हो रहा है ।
कपास बाडी पहुँच कर रिक्शा वहीं सडक पे पार्क किया ...सारा समान अंदर ही रहने दिया
बिरजू सो रहा था .....एक चादर लिया और कुछ सोच के रिक्शे में ही लेट गया । पर नींद नहीं थी
सुबह की पारी ....कोई दुसरा इस रिक्शे को चलाता है । अब एक ही रास्ता था ...मैं इस झोले को
अपनी झोपड़ी में ही रख दूँ ....और मैंने ऐसा ही किया ।
दिन में तो मैं ही रहता हूँ ,बिरजू तो काम पे चला जाता है ....एक बात मेरे मन में बार -बार
आ रही थी ....मैं इन सब चीजों का क्या करूंगा ?....कहीं मुझमें कोई बुराई तो नहीं पैदा हो रही है ?
धन और हथियार पास अगर है ,तो समझो .....या तो मैं बहुत अमीर बन जाऊंगा या फिर जेल की
हवा ......क्या करूं ?यही सोचते -सोचते आँख लग गयी .......
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