Wednesday, March 10, 2010

सत्तू

रात का करीब दस बज रहे थे , मैं रिक्शे से बाहर निकल कर खड़ा हो गया ।

और इन्तजार करने लगा ,उस बार -बाला का ,मन में एक डर था ,कहीं रात

की बात भूल न गयी हो ? मेरी हालत वैसी थी , जैसे आप को भूख लगी हो और

आप ........बार बार कह रहें हो ....नहीं यार मुझे भूख नहीं है । मेरे जैसे और भी रिक्शे

वाले ,इसी इन्तजार में थे ........वो बाला किसके रिक्शे में बैठेगी ...... । बार -बाला

मीटर से ज्यादा एक पैसा नहीं देती .....फिर सब ऑटो वाले क्यों ,इस बाला को अपने

रिक्शे में बैठाना चाहते हैं .....इसका जवाब मेरे पास अभी नहीं है ,पर लगता है ,दो चार

दिन में पता चल जाएगा । ..........मैं क्यों आया हूँ ....इसका भी जवाब मेरे पास नहीं है

............सवा ग्यारह बज गया था ....एक दो रिक्शे वाले निकल गये ,अभी तक बार बाला

आयी नहीं थी ......मैं भी सोच रहा था ,कब तक इन्तजार .......वैसे मुम्बई में रात भर धंदा

रहता है ,कुछ सोच के रिक्शे में आ कर बैठ गया । मैंने यह सोच लिया था ,मैं इन्तजार करूंगा

जब तक वह आती नहीं ।



वह आयी जरुर पर रात के एक बजे .....मेरे रिक्शे में बैठी .....मैंने उनसे कुछ भी बात

नहीं की ........अपनी मस्ती में रिक्शा चलाता रहा .....बार आ चुका था ,मैंने रिक्शा खड़ा किया ,वह

बाहर निकली ,मुझे देखा ...और कहने लगी ...चार बजे निकलूंगी .....यहीं मिलना और वह बार में

चली गयीं .....मुझे कुछ और धंधा करना था ,मालिक को किराया देना जो था ,और सुबह गैस भी भराना

था ........बाला के अंदर जाते ही मैंने रिक्शा मोड़ा और चल दिया धंधा करने ।

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