Monday, March 29, 2010

सत्तू

..................हम दोनों डान की कैद से जरुर निकल आये ....

अब ...क्या , क्या मैं ,जो वादा डान से कर के आया हूँ ,

उसे पूरा कर पाउँगा ? इसी सोच में दो दिन गुज़र गया ....

.....मैं अपनी झोपड़ी से निकला ही नहीं .....बिरजू ,मेरा दोस्त

इतना डरा हुआ था ,बस एक ही रट , हमें गाँव भाग जाना चाहिए

.......पर मुझे मालूम है , वह इंसान जिससे वादा कर के आयें हैं

वह हमें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा ....

हम हीरो खान को क्या सजा दे सकते हैं जो मौत से बत्तर हो ,

यह सब मैं झूठ ही बोल के आया था ......भलाई इसी में थी की मैं , ज़ेबा जी

से एक बार मिल के ,अपनी इस झूठी हरकत से निजात पा सकूँ ....

बिरजू को अपने मन की बात बताई ....और उससे कहा ,पहली बार

भी तुमने मुझे ज़ेबा जी के यहाँ काम लगवाया था ....इस बार भी तुम फिर लेकर

चलो ....और मेरी झूठी हरकत .......जो मैं डान के सामने कर के आया हूँ ...

उन्हें सच्चाई से अवगत कराओ......


वह चुप ही रहा ...कुछ बोला ही नहीं । मैंने फिर से कहा ...चुप रहने से कुछ भी

नहीं होगा ...इस बार उसने सिर्फ मेरी तरफ देखा .....लेकिन कुछ बोला नहीं ...

" देख बिरजू ...एक बार तू मुझे ,ज़ेबा जी से मिला दे ......मैं उनको समझा लूंगा

और हम ...इस जंजाल से पार हो जायेंगे ....इस बार बिरजू बोला ठीक है ....मैं बंगले के

अंदर तक पहुंचा दूंगा ,, आगे का काम तुम्हारा ....ठीक है ...मैंने कहा ....

सुबह का इंतजार ...होने लगा , कुछ सोच के मैं माँ काली के मंदिर गया

माँ की भव्य की मूर्ती इतनी डरावनी थी .....एकटक एक मिनट से ज्यादा नहीं देख सका

वहीं बैठ गया ....और मन ही मन कहने लगा माँ ....इस मुसीबत से पार करा दो ...यही

प्रार्थना करता रहा .....मंदिर बंद होने का वक्त हो गया ....एक पुजारी मेरे पास आया ,और

मुझे जाने को कहने लगा ....मैं चुप चाप मंदिर से बाहर निकल आया ...

पास एक जूस की दूकान थी ....भूख लगी थी ...जेब में हाथ डाला ...कई नोट हाथ में

आ गये ....ख्याल आया यह तो डान के दिए हुए पैसे है ....कुल बीस हजार दिया था ....यह धन

भी हमारे लिए भय का कारण है ।

जूस पी कर मैं घर की तरफ चल दिया ......


घर जब पहुंचा तो , बिरजू कहने लगा हमें यह जगह छोडनी है ,

क्यों ......मैंने पूछा ।

डान का हुक्म है ...हमें एक घर दिया गया ...अभी ही चलना होगा ...मैं तुम्हारा ही

इंतजार कर रहा था ....और हमें वहीं रहना होगा आज के बाद ....मैं कुछ बोला नहीं

और चल दिया बिरजू के साथ ......सडक से एक ऑटो किया ....और बिरजू ही ने कहा

यारी रोड चलो ....


ऑटो उसी बिल्डिंग के सामने जा कर खड़ा हुआ...जहाँ से बार बाला आती थी ...

मैं कुछ समझा नहीं .....बिरजू के पीछे पीछे चल दिया .... पहले हमें चौकीदार ने रोक लिया

और बिरजू ने उससे कुछ कहा ,फिर उसने हमे जाने दिया ...लिफ्ट से हम लोग सोलवहीं मंजिल

पे पहुंचे .....बिरजू के पास चाभी थी .....घर खोला .....हम अंदर पहुंचे ........ ,।


घर यह मुझे पहचाना सा लगा ......जैसे मैं यहाँ पहले आ चुका हूँ ......एक बार ख्याल

आया बिरजू से कहूँ .....कुछ सोच के मैं चुप ही रहा ...घर में सब कुछ था एक बेड रूम था ,किचेन

में सब कुछ था ...ऐसा लगा जैसे ....एक गेस्ट हॉउस है ......तभी एक लडका आया ,जिसे मैंने पहले

देखा था इसी घर में .....वह मुझे देख कर थोड़ा सा डर गया ....हम लोग वहीं हाल में बैठ गये...


वह लडका हमारे पास आया ....आप लोगो का इन्तजार बहुत देर से कर रहा था

खाना बन चुका है ,कहें तो लगा दूँ .....बिरजू बोल पड़ा ...हाँ लगा दो .....डायनिंग टेबल पे हम लोग

बैठ कर खाना खाने लगे ....खाना खाते हुए बार बार यही ख्याल आ रहा था ...हम लोग जा कहाँ रहें हैं

एक डर बैठ गया .....हम दोनों एक बकरे की तरह हैं जो काटने से पहले खूब खिला पिला के

तैयार किया जा रहा है ....अभी तक कुछ, सब कुछ झूठ सा लग रहा था .......अब सब बिलकुल सच

लगने लगा ......खाने में क्या नहीं था ....खाया तो सब कुछ ...पर जान नहीं पड़ा क्या क्या खाया

....बिरजू के चेहरे पे अब डर नहीं था ...हम दोनों एक ही बेड पे सोये ....मेरी आँखों में नीद नहीं थी

रात में कब सो गया ......पता ही नहीं चला .....


सुबह जब आँख खुली ....बिरजू बगल में नहीं था ...मैं डर गया ...कहीं यह मुझे छोड़ के भाग तो

नहीं गया । जब मैं हाल में आया , तो देखा बिरजू चाय पी रहा है .... मेरा डर दूर हुआ ...बिरजू ही कहने

लगा ....नौ बज रहा है , चलना नहीं है ज़ेबा जी के यहाँ ....? .....हाँ हाँ ...चलना तो है ,

.......तो फिर तैयार हो जा .....नहीं तो वह शूटिंग के लिए निकल जाएँगी ...........

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