Thursday, March 18, 2010

सत्तू

......बेला जी की बिल्डिंग के पास खड़े -खड़े ग्यारह बज गया ,लगा अब वह

नहीं आयेंगी .....या चली गयी होंगी ?कुछ देर बाद एक सवारी मिली उसको

फिल्म सिटी जाना था ....,एक पल को सोचा , ..क्या करूं ... जाऊं ....या ..मना

कर दूँ ......लेकिन ..यह कब तक ....... । तभी पैसेंजर बोल पड़ा ,....वो भाई..चलो गे

क्या सोच रहे हो ...डबल पैसा ले लेना ! ....कुछ सोच के कहा , बैठो साहब .....और मैं

रिक्शा ले कर चल दिया ।

फिल्म सिटी के अंदर चलने को कहा पैसेंजर ने ,मैं अंदर पहुंचा .....उस पैसेंजर

ने किसी से बात की ....फिर मुझसे कहने लगा .....हेली पैड चलो ....यह जगह पहाड़ी के बिलकुल

टाप पे है ....ऊपर पहुँचने पे पूरा मुम्बई दिखता है ....जैसे चारो तरफ दिवाली मनाई जा रही है

.....एक सेट जंगल का लगा था ....जिसमे एक पुरानी हबेली बनी है ...वहीं पे शूटिंग चल रही थी

पैसेंजर ने मुझे पैसे दिए ....उसने मीटर से डबल ही पैसा दिया ...फिर मुझसे कहा यहाँ थोड़ी देर

इन्तजार कर लो शायद कोई पैसेंजर मिल जाय ? ....कुछ सोच कर रिक्शा वहीं खड़ा कर के ....

शूटिंग देखने लगा ....यह शूटिंग वाले लोग भी बहुत कमाल के होते हैं ....जब तक शूटिंग चलती

कमाल का काम करते हैं ...जो साहब आये थे ,मेरे साथ, वह सहायक निर्देशक थे ...उनकी वजह से मुझे

चाय भी पीने को मिल गयी ....और वहीं यूनिट के साथ खड़ा हो कर शूटिंग देखने लगा .....


अभी कुछ ही देर हुई थी ,तभी एक स्पाट बॉय आया और मुझे गोरेगावं तक चलने को कहने लगा

......मैंने उसे रिक्शे में बैठाया और चल दिया ....जब हम लोग हेली पैड से उतर रहे थे ...तभी मैंने

हीरो खान की गाड़ी खडी देखी ...तभी स्पाट बॉय बोल पड़ा ....हमारी लाईन जितनी अच्छी है ,

उतनी ही खराब .....अब इन खान साहब को देखो .....इनको रोज एक नई लडकी चाहिए ...अब भी

किसी लडकी की इज्जत से खेल रहेहोंगे .... मैं तभी बोल पड़ा ... तुम लोग कुछ नहीं कहते .....

क्या कहें ? हीरो है ....इनका ही जमाना है ,सब कुछ करने का इनको हक़ है ....वैसे एक बात और

कहूँ ...लडकियाँ भी वैसी हैं ....अब जेबा जी को देख लीजिये ....उनको कोई तिरछी नज़र से

नहीं देख सकता ...यह सुन कर मैं ,मन ही मन खुश हो गया ।

मेरा रिक्शा ,फिल्म सिटी के गेट के पास ही पहुंचा था ....तभी तेजी से ,आती हुई कर

ने मुझे टक्कर मारा ....मेरा रिक्शा उलट गया .....उसके बाद मुझे याद ही नहीं ....जब आँख खुली

मैं हास्पिटल में था ....सर पैर में पट्टी बंधी थी ......मेरे पास डाक्टर आया और मेरा पता पूछने

लगा ....मैंने सब कुछ बताया .....डाक्टर से ही पता चला ....वह स्पाट बॉय ...एक्सिडेंट में नहीं बचा

.......मैं सोचने लगा .....इंसान की क्या कीमत है .....? पुलिस आयी ...मेरा बयान लेने ...मुझसे

एक्सिडेंट के बारे में पूछने लगी .....मैंने कहा ....ढाल थी ,मुझसे ब्रेक नहीं लगा ...और एक्सिडेंट

हो गया .... । मुझे फिर नीद आ गयी ,और शाम पाँच बजे आँख खुली ......अब मैं अस्पताल में नहीं

था ....और न ही अपनी झोपडी में ....कहाँ हूँ ....यही समझ में नहीं आ रहा था .।

एक नौकर ...मुझे खाना दे गया ....एक डाक्टर आया मुझे चेक कर गया ,और कुछ

दवाई खाने को दिया ...मैंने डाक्टर से पूछा मैं कहाँ हूँ ? डाक्टर ने मुझे चेक करते हुए कहा ,अपने घर

में .....यह सुन कर ...मैं डर गया .....कहीं मैं ....मर तो नहीं गया .....डाक्टर चला गया ,मैं अपने आप

से बात करने लगा ...पास रखे शीशे में अपने आप को देखा .....मैं वही हूँ जिसके रिक्शे का एक्सिडेंट

हुआ था । पास ही बाथरूम था ...मैं बाथरूम में गया ....मेरे पैर में चोट नहीं लगी थी ,चलने में मुझे

तकलीफ नहीं थी .......मैं सोचने लगा ,यह घर किसका है ? मुझे यहाँ क्यों रखा गया है ?

......मैं यहाँ से भाग जाना चाहता था ,,लेकिन बाहर जाने का दरवाज़ा बाहर से बंद था ,

मैं कैद में था ...किसने मुझे कैद किया है मुझे नहीं मालूम ,क्यों किया यह भी पता नहीं ।

क्या चाहता है मुझसे ? सुबह का इन्तजार करने लगा ,बिस्तर पे जा कर लेट गया ,बिरजू भी

मुझे खोज रहा होगा ....

...सुबह जब आँख खुली ...मैं उसी कमरे में था ,एक नर्श नुमा लडकी आयी , मुझे चेक

करने लगी ...मैंने उससे पूछा ,मैं कहाँ हूँ ?.....सर आप अपने घर में है ,यह सुन कर मुझे गुस्सा

आ गया ......तुम लोगो ने झूठ बोलने की कसम खा ली है क्या ...सच क्यों नहीं बताते ....सच कह

रही हूँ आप अपने घर में हैं .....चलो यहाँ से जाओ ...बात -बात में झूठ बोल रहे हो .....मैंने चिल्ला

कर कहा .....यह सुन कर वह भाग गयी ....फिर मैं बाहर निकलना चाहा ...पर दरवाजा बाहर

से बंद है ......सच कह रहा हूँ ,मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ,कहीं मैं किसी चक्कर में तो नहीं

फंस गया हूँ । मैं यहाँ से ,निकलूंगा कैसे ....कहीं उस पिस्तौल और पैसे का चक्कर तो नहीं है ...?

........किस खेल में मैं फंस गया हूँ ....एक तो मर ही गया है ....और मै बचा हूँ ,कोई गैंग तो नहीं

है .....पता नहीं क्यों ....माँ की याद बहुत आने लगी ...बस मन करने लगा कैसे भी कर के मैं अपनी माँ

के पास पहुँच जाऊं ...... ।

अब एक ही रास्ता है ,यहाँ से कैसे भी भाग जाऊं ......उसके लिए मैं रास्ता खोजने लगा

रात का इंतजार करने लगा ......अब मैं इस तरह रहने लगा जैसे यह मेरा ही घर हो ..... ।

...शाम को एक डाक्टर आया ,मुझे चेक किया .....फिर उसने मुझे एक इंजेक्शन दिया ...थोड़ी देर

बाद मैं सो गया ......

सुबह जब मेरी आँख खुली .....मैं यह देख कर दंग हो गया ...मैं अपनी झोपडी ,कपास बाडी

में था ,मेरे बगल बिरजू खड़ा था ....मैं उसे देख कर ...सकते में आ गया ...मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था

....बिरजू से कुछ पूछता ,वह खुद ही कहने लगा .....आज तुम्हे होश आया है तीन दिन बाद .....

मैं था कहाँ ? तीन दिन ...! अस्पताल में .....यह तो जेबा जी की मेहरबानी थी ,जो समय पे तुम्हारा

इलाज हो गया ......मुझे सब झूठ लगने लगा ,बिरजू भी मुझसे झूठ बोलने लगा है .....क्या वजह ,

नहीं मालूम .....या यह भी हो सकता है ....मैं सच में तीन दिन बेहोश ही रहा हूँ ......

.................मैंने सोच लिया है ....अब इस मुम्बई शहर में नहीं रहूँगा ...बस ठीक हो जाऊं एक बार

......जारी ...........


No comments:

Post a Comment