आज दस दिन बीत चुका था ,बार बाला का काम करते हुए ।
हमारी आपस में कोई भी बात अभी तक नहीं हुई थी , बस वह
रिक्शे में बैठती ,और मैं बार तक पहुंचा देता और वापस करीब चार
बजे तक मैं फिर आता ...उनको रिक्शे में बैठाता और चल देता ,कभी -कभी
खूब शराब पिए होती ,मैं उनको कभी ,जब रिक्शे से ठीक से उतर नहीं पा रहीं
होती ,मैं सहायता के लिय बढ़ता ,तो मना कर देती । मैं उनकों देखता रहता जाते हुए
बिरजू को जब मैंने बताया ,इस बार बाला के बारे में ,उसने छूटते कहा ....यह
मुम्बई किसी पे ,इतना भरोसा मत करना की पछताना पड़े बाद में । मुझे लगा महीने का
धंधा अच्छा नहीं है ,आज पैसे मांग ही लेता हूँ ....क्या भरोसा न दें तो ........?
रात में दस बजे ,जब वह मेरे रिक्शे में बैठी ,मैंने छूटते ही कहा ...मैडम मुझे पैसे चाहिए
यह सुनते ही उन्होंने कहा ....पैसे ....महीने की बात हुई थी न .....जी मैंने कहा , फिर क्यों
अभी चाहिए .......वह क्या हैं .......मुझे घर पैसे भेजने हैं और आप को छोड़ने के बाद इतना
धंधा नहीं होता की मैं अपने मालिक को इस रिक्शे का किराया दे सकूं .......... । मेरी सारी बाते सुन कर
सिर्फ इतना ही कहा ठीक है ...मिल जाएगा ।
बार आ चुका था ....रिक्शे में बैठे -बैठे अपना पर्स खोला ,उन्होंने कोई पांच नोट हजार के निकाले
मुझे दिया ....और भी जरूरत हो तो कहना ...मैं चुप चाप नोटों को देखा ,तभी वो बार में चली गयी
मैं थोड़ी देर वहीं रुका रहा ....और सोचता रहा ,बिरजू ने जो कुछ बतलाया था ,वह कहीं गलत
साबित हो रहा था ।
बार के पास जब मैं खडा था .....तभी तीन लडके बार से निकले और मेरे रिक्शे पे
बैठ गये ,और मुझ से कहा ....फिल्म सिटी चलो .....आज मैं बहुत दिनों बाद उस जगह जा रहा हूँ
जहाँ कभी ....जेबा जीं के साथ आता था , फिल्म सिटी आने से पहले ,उसके चेकपोस्ट पर उतर
गये ,बिल चुकाया और चले गये .....मैं वहीं रिक्शा खड़ा कर के ,इन्तजार करने लगा ....
करीब दो बज रहा था ....आँखों में नीद बसने लगी थी ..... मच्छर भी बहुत थे , सोया नहीं जा
सकता था ....रात का सन्नाटा फैला हुआ था ,कुछ सोच कर चेक पोस्ट के चौकीदार के पास गया
और उनसे बात करने लगा ....यह लोग भी यु .पी . के थे .....मुझ से खुल के बात करने लगे
तभी देखा एक कार पोस्ट पे आ कर खड़ी हुई .......कार देख कर ,मैं पहचान गया यह तो...........
......जेबा जी कार है ....और कार से मोहन ही निकला .....जिसे जेबा जी ने निकाल दिया था.....
जारी ...........
हमारी आपस में कोई भी बात अभी तक नहीं हुई थी , बस वह
रिक्शे में बैठती ,और मैं बार तक पहुंचा देता और वापस करीब चार
बजे तक मैं फिर आता ...उनको रिक्शे में बैठाता और चल देता ,कभी -कभी
खूब शराब पिए होती ,मैं उनको कभी ,जब रिक्शे से ठीक से उतर नहीं पा रहीं
होती ,मैं सहायता के लिय बढ़ता ,तो मना कर देती । मैं उनकों देखता रहता जाते हुए
बिरजू को जब मैंने बताया ,इस बार बाला के बारे में ,उसने छूटते कहा ....यह
मुम्बई किसी पे ,इतना भरोसा मत करना की पछताना पड़े बाद में । मुझे लगा महीने का
धंधा अच्छा नहीं है ,आज पैसे मांग ही लेता हूँ ....क्या भरोसा न दें तो ........?
रात में दस बजे ,जब वह मेरे रिक्शे में बैठी ,मैंने छूटते ही कहा ...मैडम मुझे पैसे चाहिए
यह सुनते ही उन्होंने कहा ....पैसे ....महीने की बात हुई थी न .....जी मैंने कहा , फिर क्यों
अभी चाहिए .......वह क्या हैं .......मुझे घर पैसे भेजने हैं और आप को छोड़ने के बाद इतना
धंधा नहीं होता की मैं अपने मालिक को इस रिक्शे का किराया दे सकूं .......... । मेरी सारी बाते सुन कर
सिर्फ इतना ही कहा ठीक है ...मिल जाएगा ।
बार आ चुका था ....रिक्शे में बैठे -बैठे अपना पर्स खोला ,उन्होंने कोई पांच नोट हजार के निकाले
मुझे दिया ....और भी जरूरत हो तो कहना ...मैं चुप चाप नोटों को देखा ,तभी वो बार में चली गयी
मैं थोड़ी देर वहीं रुका रहा ....और सोचता रहा ,बिरजू ने जो कुछ बतलाया था ,वह कहीं गलत
साबित हो रहा था ।
बार के पास जब मैं खडा था .....तभी तीन लडके बार से निकले और मेरे रिक्शे पे
बैठ गये ,और मुझ से कहा ....फिल्म सिटी चलो .....आज मैं बहुत दिनों बाद उस जगह जा रहा हूँ
जहाँ कभी ....जेबा जीं के साथ आता था , फिल्म सिटी आने से पहले ,उसके चेकपोस्ट पर उतर
गये ,बिल चुकाया और चले गये .....मैं वहीं रिक्शा खड़ा कर के ,इन्तजार करने लगा ....
करीब दो बज रहा था ....आँखों में नीद बसने लगी थी ..... मच्छर भी बहुत थे , सोया नहीं जा
सकता था ....रात का सन्नाटा फैला हुआ था ,कुछ सोच कर चेक पोस्ट के चौकीदार के पास गया
और उनसे बात करने लगा ....यह लोग भी यु .पी . के थे .....मुझ से खुल के बात करने लगे
तभी देखा एक कार पोस्ट पे आ कर खड़ी हुई .......कार देख कर ,मैं पहचान गया यह तो...........
......जेबा जी कार है ....और कार से मोहन ही निकला .....जिसे जेबा जी ने निकाल दिया था.....
जारी ...........
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